हेमचंद दुर्ग विश्वविद्यालय के हालात धारा-52 की तरह... कुलपति- कुलसचिव के बीच चल रहे शीतयुद्ध अब खुल कर सामने आई। VC क्या कुलसचिव को हटाना चाहते हैं..?

हेमचंद दुर्ग विश्वविद्यालय के हालात धारा-52 की तरह... कुलपति- कुलसचिव के बीच चल रहे शीतयुद्ध अब खुल कर सामने आई। VC क्या कुलसचिव को हटाना चाहते हैं..?

दुर्ग(छत्तीसगढ़)।शासकीय हेमचंद दुर्ग विश्वविद्यालय आज कल चर्चा का विषय बना हुआ है।चर्चा इसलिए नहीं हो रही है,कि हाल ही के दिनों यह विवि कोई ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की हो,बल्कि इसलिए की कुलपति डॉ संजय तिवारी जब से कार्यभार संभाले हैं,उनके आते ही वर्षों से कुलसचिव की जिम्मेदारी संभाल रहे भूपेंद्र कुलदीप को वे किसी न किसी बहाने घेरना चाह रहे हैं,इसलिए। शुरू- शुरू में तो यह शीतयुद्ध की तरह चल रहा था,पर अब दोनों के बीच का विवाद सतह पर आ गया है। बता दें कि राज्यसेवा आयोग से कुलसचिव के पद पर चयनित भूपेंद्र कुलदीप की छबि बेहद ही ईमानदार अधिकारी तौर पर लिया जाता है।उनके किसी गलत कार्यप्रणाली को लेकर आज तक न कोई बड़ा आंदोलन हुआ न ही किसी तरह का विवाद।यहां तक कि यह विवि जब 7-8 माह तक प्रभारी कुलपति के भरोसे चल रहा था,तब भी उन्होंने अपनी बेहतर प्रशासनिक कार्यक्षमता का परिचय देते हुए परीक्षा से लेकर मूल्यांकन, शोध से संबंधित सारी जिमेदारियों को बखूबी निभाया और विद्यार्थियों को कोई परेशानी हो ऐसी नौबत आने नहीं दी।इन सब के इतर वही कुलसचिव अब नए कुलपति के रास्ते का रोड़ा बन गए हैं।आखिर क्या वजह रहती है विश्वविद्यालयों में इस तरह के विवाद का कारण।

गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ के विश्वविद्यालयों में नए कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर शुरुआती समय से ही तरह-तरह की बातें कही जा रही है। कांग्रेस के नेता तो सीधा-सीधा आरोप लगा रहे हैं कि करोड़ों की डील के बाद ही कुलपतियों की नियुक्ति की जा रही है। इसमें राजभवन के एक प्रतिनियुक्ति पर पदस्थ व्यक्ति का नाम प्रमुखता से आ रहा है।बताया जाता है कि इसी व्यक्ति ने गुमराह कर विवादित व्यक्तियों को इस पद पर पहुंचाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।इस वजह से राजभवन का नाम आ रहा है।जिसके विस्तृत खुलासे को लेकर एक बड़ा प्रेस कॉन्फ्रेंस भी होने वाला है। ऐसे में दुर्ग विवि में जो विवाद की स्तिथि निर्मित हो रही है,उसकी आंतरिक वजह को इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है।विश्वस्त सूत्रों की माने तो कुलपति डॉ. तिवारी कुलसचिव को हटा कर किसी अपने पसंद के व्यक्ति को यह जिम्मेदारी देना चाहते हैं।वहीं चर्चा यह भी है कि कोई उनके अधीन कार्य करने इच्छुक नहीं रहता है।

फील हाल हेमचंद दुर्ग विश्वविद्यालय में जो स्तिथि निर्मित हो रही है,उससे तो साफ जाहिर हो रहा है कि इस विश्वविद्यालय में हालात धारा-52 के हैं।इससे बेहतर तो तब की स्तिथि रही है जब यहां प्रभारी कुलपति के तौर पर जिम्मेदारी दुर्ग संभाग के कमिश्नर के पास हुआ करता था।बताया यह भी जा रहा है कि डॉ. संजय तिवारी जब से कुलपति के रूप में पदभार ग्रहण किया है,तब उसी दिन से उनका ध्यान एक मात्र कार्य शैक्षणिक पदों की भर्ती पर है। बता दें कि जगदलपुर विवि के कुलपति मनोज श्रीवास्तव इसी मामले में दोषी पाए गए हैं।जिनके ऊपर गलत तरीके से नियुक्तियों में अनियमितता बरतने और भारी लेन देन के आरोप लगे हैं।विश्वविद्यालय प्रशासन में कुलपति के सम्पूर्ण अधिकार शिक्षकीय पद व उनके नियंत्रण में होता है।वहीं कुलसचिव के अधिकार की बात करें तो वित्तीय मामले में सहमति महत्वपूर्ण होता है। प्रिंटिंग से लेकर परीक्षा आयोजन एवं उसका मूल्यांकन, निर्माण कार्य से संबंधित कार्य कुलसचिव के देखरेख में होता है।

यह भी की कुलसचिव विश्वविद्यालय के प्रशासन, अभिलेखों, कर्मचारी प्रबंधन, और नियमों को बनाए रखने के लिए एक केंद्रीय बिंदु होता है, जिससे विश्वविद्यालय के सभी कार्य सुचारू रूप से चल सकें। एक तरह से कहा जाए तो कुलसचिव राज्य शासन के प्रतिनिधि के तौर पर कार्य करता है। दुर्ग विवि के कुलसचिव कुलदीप की छबि राज्य शासन में अब्वल दर्जा का बताया जाता है,वहीं उनके संबंध सीधे तौर पर मुख्यमंत्री से हैं और जब कोई गलत कार्य करने उनको कोई प्रेसर करता है तो वे सीधे यहीं सूचना देते हैं। कुलपति डॉ. संजय तिवारी इस विवि में कुलपति नियुक्त होने के पहले मध्यप्रदेश के बड़े और पुराने ओपन विवि भोज के कुलपति थे। जब उनकी नियुक्ति हुई तो उनका कार्यकाल 18 माह वहां शेष था। बावजूद उन्होंने दुर्ग विवि में रुचि दिखाई।बताया जाता है कि संजय तिवारी की भोज विवि के कुलसचिव से भी जबरदस्त विवाद था। विवाद इस कदर तक था, कि यह बात सबको खबर थी।कहा जाए तो डॉ. तिवारी की कुलसचिवों से पटती ही नहीं है।इसी वजह से विवि का प्रसाशनिक व शैक्षणिक माहौल प्रभावित होता है और इसका खामियाजा लाखों विद्यार्थियों को भुगतना पड़ता है।अब देखना होगा कि आगे यह विवाद किस मोड़ तक पहुंचती है।