राहुल गांधी का वह जवाब जो उन लोगों को आईना दिखाता है जो या तो उनका मजाक उड़ाते हैं या अपने आप को ज्यादा बुद्धिमान समझते हैं...
विदेश।कांग्रेस नेता राहुल गांधी द्वारा इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय में दिए इंटरव्यू की चर्चा चारों ओर हो रही है।उनसे पूछे गए सवालों के जवाब का मीनमेख निकालने की गहन मंत्रणा भी हो रही है।उसी में से एक सवाल के जवाब में राहुल गांधी ने जो जवाब दिया है,वह उन लोगों को आईना दिखता है,जो राहुल गांधी का मजाक उड़ाते हैं या फिर किसी न किसी तरीके से अपने आपको ज्यादा बुद्धिमान समझते हैं। आइये जानते हैं,वह सवाल और राहुल द्वारा दिया गया गंभीर जवाब।
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में मंगलवार को 'इंडिया एट 75' नामक कार्यक्रम में राहुल गांधी पहुंचे थे। जहां पर कॉरपस क्रिस्टी कॉलेज में इतिहास की एसोसिएट प्रोफेसर और भारतीय मूल की शिक्षाविद डॉक्टर श्रुति कपिला ने उनसे कई सवाल पूछे उसी में से एक सवाल जो लोगों को सोचने मजबूर कर रहा है कि राहुल गांधी ऐसा भी जवाब दे सकते हैं!!
उन्होंने पूछा, "मेरी-आपकी पीढ़ी में हिंसा का एक अहम रोल रहा है और आपके मामले में ये व्यक्तिगत भी है। हाल में आपके पिता (राजीव गांधी) की बरसी गुज़री है। मेरा सवाल थोड़ा गांधीवादी सवाल है, वो भी हिंसा और उसके साथ जीने से जुड़ा हुआ। और आपके मामले में ये व्यक्तिगत हो जाता है। क्या आप इसे लेकर सामने आने वाले दबावों से निपटने के व्यक्तिगत तौर-तरीकों पर कुछ बोल सकते हैं और ये भी बताइएगा कि आप भारतीय समाज में हिंसा और अहिंसा के बीच उलझन को किस तरह देखते हैं..."
इसके बाद राहुल गांधी कुछ पल तक चुप रहे और फिर उन्होंने कहा कि मुझे लगता है... जो शब्द दिमाग़ में आता है, वो क्षमा करना है। हालांकि, वो सबसे सटीक शब्द नहीं है।राहुल गांधी फिर चुप हो गए और कुछ लोग ताली बजाने लगे इसके बाद राहुल गांधी ने लोगों से कहा कि वो अभी कुछ सोच रहे हैं।
इसके बाद श्रुति कपिला ने कहा कि मैं आपको परेशानी में नहीं डालना चाहती थी। इस पर राहुल ने कहा कि 'आपने मुझे किसी परेशानी में नहीं डाला और ये सवाल मुझसे पहले भी किया जा चुका है। राहुल गांधी आगे इसके जवाब का विस्तार देते हुए कहते हैं,मुझे लगता है कि ज़िंदगी में आपके सामने... ख़ासतौर से अगर आप ऐसी जगह हैं, जहां बड़ी ऊर्जाओं में बदलाव आता रहता है तो आपको चोट लगनी तय है। अगर आप वो करते हैं, जो मैं करता हूं, तो आपको चोट लगेगी ही। ये कोई संभावना नहीं, बल्कि निश्चितता है।क्योंकि ये बड़ी लहरों के बीच समंदर में तैरने जैसा है। आप कभी ना कभी लहरों के नीचे आएंगे ही, ऐसा नहीं है कि ऐसा कभी नहीं होगा।और जब आप लहरों के नीचे जाते हैं तो सीखते हैं कि किस तरह सही प्रतिक्रिया देनी है।
मेरी ज़िंदगी में अगर सीख देने वाला कोई सबसे बड़ा अनुभव है तो वो मेरे पिता का निधन है। इससे बड़ा अनुभव हो ही नहीं सकता। अब मैं उसे देख सकता हूं और कह सकता हूं कि जिस व्यक्ति या ताक़त ने मेरे पिता को मारा, उसने मुझे भीषण दुख और दर्द दिया। ये बात पूरी तरह ठीक है। एक बेटे के रूप में मैंने अपने पिता को खोया। आप में से कुछ लोगों के साथ भी ऐसा ही हुआ होगा, और ये काफी दर्दनाक बात है। लेकिन मैं इस तथ्य से भी इनकार नहीं कर सकता कि इसी घटना ने मुझे वो चीज़ें भी सिखाई हैं, जो मैं और किसी परिस्थिति में कभी नहीं सीख सकता था। इसलिए जब तक आप सीखने को तैयार हैं, इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग कितने दुष्ट हैं, वो कितने बुरे हैं।
अगर आप सीखने को तैयार हैं तो... अगर मैं पीछे मुड़कर देखता हूं और कहता हूं कि मिस्टर मोदी ने मुझ पर हमला किया है, हे भगवान वो कितने बुरे हैं कि इस तरह मुझ पर हमला कर रहे हैं... ये इस मामले को देखने का एक नज़रिया हो सकता है... लेकिन दूसरा तरीका ये भी हो सकता है कि वाह, मैंने उनसे भी कुछ सीखा है. और करिए ऐसा।
लेकिन आप ये तब महसूस कर पाते हैं जब आप किसी हमले का सामना कर रहे हों... और किसी तरीके से इस बात का अहसास नहीं किया जा सकता। ये उस कविता की तरह है। ये फ़लस्तीन के एक व्यक्ति ने लिखी है, जिन्हें जेल में डाल दिया गया था, वो कविता मैं आपको भेज दूंगा। इस कविता में वो जेलर से कह रहे हैं कि अपनी कोठरी की छोटी खिड़की से मैं आपकी बड़ी कोठरी देख पा रहा हूं। एक तरह से देखें तो सभी लोग जेल में क़ैद हैं... और आपको ये ठीक से देखना आना चाहिए और अगर आप ऐसा कर पाते हैं तो इससे निपटने के तरीके भी खोज सकते हैं।