क्या राहुल गांधी के देश हित में सुझाये सकारात्मक सोच को मोदी मीडिया पनपने से रोक रही है...?

क्या राहुल गांधी के देश हित में सुझाये सकारात्मक सोच को मोदी मीडिया पनपने से रोक रही है...?

ब्रजेश सतपथी

(लेखक कांग्रेस नेता व राजनैतिक विचारक हैं।)

भारत का लोकतंत्र अब कहने मात्र के लिए रह गया है, लोकतंत्र वरना जो कुछ अब घटित हो रहा है, सत्ता हथियाने आपातकाल की जरूरत ही नहीं है। विपक्ष बार-बार इंदिरा गांधी के आपातकाल की दुहाई दे कर कांग्रेस को कोसते नहीं थकती, जबकि इंदिरा गांधी ने जब आपातकाल की घोषणा कीं थी तो कम से कम एक कानूनी औपचारिकता तो की गई थी। काग़जों पर ही सही पर ये तो तय था आपातकाल का अंत आज नहीं तो कल होना ही है। पर अब जो अघोषित आपातकाल चल रहा है, उसका अंत किसी को पता ही नहीं है। लोकतंत्र को अब खतरा ही नहीं बल्कि इसे पूरी तरह से मिटाने का प्रयास हो रहा है। 

वर्तमान में भारतीय मीडिया प्रधानमंत्री के मंत्रिमंडल की तरह उनके पूर्ण नियंत्रण में है। जो उसे कहा जाता है उसे ही दिखाया जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संयुक्त राष्ट्र की आर्थिक और सामाजिक परिषद के वर्चुअल भाषण में 2 दिन पहले कहा था कि 'भारत ने कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई को एक जनआंदोलन बना दिया है'। जबकि वास्तविकता ये है कि पूरे भारत में कोरोना को लेकर जन आंदोलन के कोई प्रमाण दिखाई नहीं देते न ही इस तरह का कोई माहौल देखा गया बल्कि हम  कोरोना के संक्रमण से दिन- ब- दिन घिरते जा रहे हैं और पूरे विश्व में अमेरिका, ब्राजील के बाद भारत संक्रमण के मामले में तीसरे नम्बर पर आ गया है। 

इन सब के बावजूद भारतीय मीडिया मोदी के इस भाषण को सभी चैनलों व प्रिंट मीडिया में महिमा मंडित करते रही, किसी ने  मोदी के स्व-घोषित जनआंदोलन के प्रत्यक्ष को लेकर उनसे कोई प्रश्न नहीं किया न ही किसी ने इसके सबूत माँगे। जबकि मीडिया से ये बात भी छुपा नहीं है कि पूरे देश मे अव्यवस्था का क्या आलम है। किसी संक्रमित को अस्पताल में जगह नहीं मिल रहा है तो कोई अस्पताल का चक्कर काट रहा है, कोई बीच रास्ते पर ही दम तोड़ रहा है तो कई अस्पताल के प्रबंधक कोरोना के नाम पर मरीज से मोटी रकम लूट रहे हैं और इसकी कोई सुनवाई नहीं है।

मोदी ने नोट बन्दी की जब घोषणा की थी तो देश की जनता से 50 दिन सिर्फ 50 दिन का समय मांगा था और कहा था वे उनका साथ दे दें उसके बाद कोई परेशानी आएगी तो उन्हें बीच चौराहा में सजा देने की बात तक कर डाली थी, पर वो 50 दिन क्या कई उद्योग व व्यापारी वास्तविकता ये है कि आज तक उससे उबर नहीं सके हैं। इस माहौल को भी मीडिया मोदी के पक्ष में करने उसका साथ दिया।  ठीक इसी के अनुरूप 24 मार्च को जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लॉकडाउन की घोषणा की थी तो उन्होंने पूरे आत्मविश्वास के साथ देश की जनता से दावा किया था कि 21 दिन में कोरोना को नियंत्रण में कर लिया जाएगा।लेकिन आज 4 माह बीत जाने के बाद भी, कोरोना महामारी पूरे देश में तबाही मचा रही है। इसको लेकर भी आपने नहीं सुना होगा कि मीडिया मोदी से कोई सवाल किया होगा की इस दावे का आधार क्या था। बल्कि इसके उलट उन वजहों को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया व दिखाया जाता रहा है,जिससे मोदी के दावे को कोई याद भी न करे और उन्हें इस बार भी बचा लिया गया।

कोरोना संकट ने यक़ीनन 80 साल बाद लोगों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लामबंद किया है। जबकि दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दुनिया गुटों में बंट कर एक दूसरे से लड़ रही थी। लेकिन कोरोना संकट काल में कई देश साथ आए हैं। उम्मीद है इस संकट के बाद दुनिया, नए तेवर के साथ बहुत से सकारात्मक सुधारों के साथ फिर से खड़ी होगी। इन 4 महीनों में भारत को ही देख लें स्वास्थ्य सेवाएं पहले से कुछ बेहतर स्थिति में हैं, कई अस्पतालों को अपग्रेड कर बिस्तरों की संख्या बढ़ाई गई है, आईसीयू यूनिट,वेंटिलेटर भी बढ़े हैं. अब पहले से ज़्यादा टेस्ट किट हैं, तो जाहिर तौर पर टेस्ट भी प्रति रोज ज्यादा हो रहे हैं। कई प्रदेशों में तो इसी बीच नए चिकित्सकों की नई भर्ती तक हुई है पर इसको लेकर जन आंदोलन का स्वरूप कहीं नहीं दिखता पूरा का पूरा सिस्टम चिकित्सक, नर्स स्टॉप व प्रशासन की जवाबदेही तक ही सीमित नजर आता है।

मीडिया को लेकर पूर्व से ही ये प्रचारित है कि वह हमेशा से सत्ता में बैठे लोगों को ज़िम्मेदार ठहराती रही है और सही मायने में इसका जवाबदेही सत्ता पक्ष की होनी भी चाहिए। मानक परिस्थितियों की तुलना वास्तविकता से किया जाना ही उचित है,परन्तु भारतीय मीडिया में ये फासला काफी बड़ चुका है और मीडिया जब किसी एक के हाथों नियंत्रित हो जाये तो निष्पक्षता वाली बात कहाँ रह जायेगी।

कांग्रेस नेता राहुल गांधी की मोदी को चुनौती न दे पाने को लेकर सोशल मीडिया के जरिए आलोचना करवाई जाती रही है। जबकि राहुल गांधी विपक्ष के एक मात्र नेता हैं जिन्होंने मोदी से असहज और परेशान करने वाले सवाल पूछे हैं और लगातार पूछे हैं। वे विभिन्न मुद्दों पर लगातार ट्वीट कर रहे हैं। कोरोना महामारी को लेकर तो सरकार को उस समय उन्होंने चेता दिया था जब मोदी सरकार में कोरोना को लेकर किसी का कोई सरोकार नहीं था। लद्दाख में चीन की घुसपैठ पर भी उन्होंने जमकर तीखे व तार्किक सवाल पूछे हैं, लेकिन आमतौर पर राहुल गांधी की आलोचना या सवालों को राष्ट्रविरोधी या हिंदू विरोधी कहकर मीडिया खारिज कर देती है। या कहें मोदी द्वारा नियंत्रित मीडिया तबज्जो नहीं देती बल्कि कई मौके पर सरकार के प्रतिनिधि की तरह उनके सवालों का खंडन करती नजर आती है और इस तरह जनता की नजर में राहुल गांधी को कमजोर साबित करने का प्रयास हो रहा है। इस बीच राहुल गांधी कई बार प्रेस कॉन्फ्रेंस लेकर देश के महत्वपूर्ण मुद्दों को मीडिया के सामने बेवाक हो कर रखी पर जो कवरेज मिलना चाहिए वो नहीं मिला। उनकी कही बातों को उस तरह प्रचारित नहीं किया गया जैसे होना चाहिए था।

इसके ठीक उलट प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत के ऐसे पहले प्रधानमंत्री हैं जिन्होंने अपने पांच साल के पहले कार्यकाल में एक बार भी औपचारिक प्रेसवार्ता नहीं की। दूसरे कार्यकाल में भी अभी तक उन्होंने कोई प्रेसवार्ता नहीं की है। इसकी बड़ी वजह निश्चित रूप से ये रही होगी कहीं कोई ऐसा पत्रकार जो आज भी उनके नियंत्रण में नहीं है, तीखे व असहज सवाल पूछ न ले,इस बीच ऐसा नहीं कि मोदी मीडिया को कुछ साक्षात्कार नहीं दिए हैं, लेकिन इन साक्षात्कारों में मुश्किल सवाल न पूछे जाने के शर्त भी कहीं न कहीं शामिल रहे हैं। जिसके कारण उनकी कुछ निष्पक्ष मीडिया में आलोचना ही हुई है।

मोदी के शासक काल में अघोषित आपातकाल के कई उदाहरण देखने मिला है। हाल ही के दिनों राजस्थान में जारी राजनैतिक संकट को भी इससे कमतर नहीं आंका जा सकता जहाँ सियासी संकट के दौरान केंद्रीय एंजेंसियों ने छापेमारी की है। बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में सीबीआई और ईडी जैसी केंद्रीय जांच एजेंसियों की छापेमारी की कार्रवाइयां बढ़ी हैं।अधिकतर छापे सरकार के आलोचकों या विरोधियों के ठिकानों पर पड़े हैं। कई बार तो छापेमारी के बाद छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में इन जाँच एजेंसियों को मुँह खानी भी पड़ी है।