मोहन मरकाम को पोस्टरों में छोटा कर गायब तो किया जा सकता है,पर हाईकमान की नजरों से उन्हें ओझल कर पाना मुश्किल है...।

मोहन मरकाम को पोस्टरों में छोटा कर गायब तो किया जा सकता है,पर हाईकमान की नजरों से उन्हें ओझल कर पाना मुश्किल है...।

रायपुर(छत्तीसगढ़)।प्रदेश के नक्सल प्रभावित क्षेत्र कोंडागांव से विधायक व पढ़े लिखे आदिवासी समाज में बड़ा चेहरा मोहन मरकाम को कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष की जिम्मेदारी सफलता पूर्वक संभालते तीन वर्ष से भी ज्यादा समय हो चुके।इस बीच उन्होंने एक के बाद एक अपने कार्यकाल के कई चमत्कारिक परिणाम प्रमाण के तौर पर हाईकमान को दे कर साबित किया है कि वे अध्यक्ष से आगे की योग्यता भी प्रदेश की राजनीति में रखते हैं।

शायद यही वजह है की उन्हें पूरे कांग्रेस नेतृत्व के समक्ष नीचा दिखाने कोई रणनीति बनाई गई और इतने बड़े अधिवेशन के प्रचार प्रसार के पोस्टरों से या तो उनकी फोटो को गायब कर दिया गया या फिर इतनी छोटी साइज की प्रिंट कराई गई कि 10 मीटर की दूरी के बाद वह आंखों से ओझल सा हो जाये।पर उनकी सादगी से काम करने का तरीका,कार्यकर्ताओं को जोड़ कर रखने की कला के साथ-साथ पार्टी को जीत दिलाने की क्षमता ने मरकाम को हाईकमान की नजरों में इतना बड़ा कर दिया है की उन्हें ओझल कर पाना एक चुनौती होगी।

कांग्रेस राष्ट्रीय नेतृत्व ने जिस आदिवासी चेहरा मोहन मरकाम को विश्वास के साथ प्रदेश संगठन की जिम्मेदारी सौंपी उस व्यक्ति को ही तस्वीरों से गायब कर दिया गया।नया रायपुर का मुख्य मार्ग होर्डिंग से पटा हुआ है।तरह-तरह के महंगे रंगबिरंगी होर्डिंग्स व कट आउट से पूरे रास्ते को सजा दिया गया है।पर इनमें मोहन मरकाम की उपेक्षा,उनकी प्रोटोकॉल की अनदेखी या कहें एक तरह से उनका अपमान साफ दिखाई देती है। छत्तीसगढ़ का कांग्रेसी जानता है इसलिए मान लेगा की मरकाम अब भी अध्यक्ष हैं पर दूसरे प्रान्त का कोई कांग्रेस नेता या व्यक्ति इन नजारों को देख सोचने मजबूर हो जाएगा कि छत्तीसगढ़ कांग्रेस का अध्यक्ष आखिर है कौन।

तेजतर्रार प्रदेश प्रभारी कुमारी शैलजा ने इसे गंभीरता से लेते हुए जरूर अनुशासन की सिख देने की कोशिश की है,पर उनको यह भी समझ आ गया है कि प्रदेश कांग्रेस में अंदरूनी तौर पर गुटबाजी किस स्तर तक हॉबी हो चुकी है,जो सतह में दिखाई देने लगी है।जबकि छत्तीसगढ़ में चुनावी वर्ष का दौर है और चुनाव को महज 7 माह शेष है।इस अंतराल में जनता के बीच जा कर इन्हीं कांग्रेस के नेताओं को एकता का संदेश भी देना है।ऐसे में यह कैसे संभव हो जाएगा।

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर मरकाम अपने पदभार ग्रहण समय से ही कांग्रेस पार्टी के उन तमाम कांग्रेस कार्यकर्ताओं को जोड़ने का काम कर रहे हैं,जो संघर्ष के दिनों से पार्टी के साथ रहे।कोई भी कांग्रेसी उपेक्षित न रहे इसके लिए कई मौकों पर वे संघर्ष करते भी नजर आए।यही वजह है कि उनके कार्यक्रमों में व तमाम सम्मेलनों में कांग्रेस कार्यकर्ताओं की लगातार एक सैलाब के साथ हुजूम देखी गई।उन्हीं को साथ लेकर वे आगे बढ़ते चले गए और अपने कार्यकाल में प्रदेश में हुए हर चुनाव में कांग्रेस को जीत दिलाने एक ऐतिहासिक रिकार्ड कायम कर संदेश देने का प्रयास किया कि उन्हें कमतर न आंका जाए और यही वह समय था जब राष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान बनाने का उन्हें एक अवसर मिला।पार्टी के शीर्ष नेताओं में राहुल गांधी से लेकर अन्य सभी ने मोहन मरकाम को दिल से स्वीकार किया और वे हाईकमान की नजर में चढ़ते चले गए।पर राजनीति में इस तरह की स्वीकार्यता सहज नहीं होती बल्कि जब खुद के पार्टी की सरकार रहे तो और भी यह असहज हो जाती है।बावजूद मोहन मरकाम सब के पसंद बने रहे।

छत्तीसगढ़ यही वह प्रदेश है जब सत्ता में लौटने के पूर्व सभी कांग्रेस नेताओं में अभूतपूर्व एकता देखी जाती थी।यहां तक कि कांग्रेस के उस एकता की ताकत के सामने बीजेपी के 15 साल का शासन काल भी टिक न सका।तब किसी कांग्रेस कार्यकर्ता के मुख से किसी नेता के बारे में चारिचुगली सुनाई तक नहीं देती थी।बल्कि सबका एक ही लक्ष्य हुआ करता था सत्ता की वापसी...और आज जब आप उस अतीत को निहारते हैं तो वर्तमान कितना परे दिखाई देता है।

गुटबाजी रह रह कर सामने आ रही है।छोटे कार्यकर्ताओं में हताशा और निराशा घर करते जा रही है।बड़े नेताओं को एक के बाद एक अपमानित करने के किस्से सुनाए जा रहे हैं।लोगों में सकारात्मकता की कमी आ रही है। कांग्रेस का एक कार्यकर्ता यह सोचने मजबूर हो गया है,की किसी नेता से मिलने वह क्या पूरी तरह से स्वतंत्र है या उसे और गुट का कोई  देख ले तो आफत न आ जाये।ऐसे में कैसे गढ़बो नवा छत्तीसगढ़ की बात हो रही है।