अमित जोगी पर आप की नजर।क्या अपनी पार्टी का विलय कर केजरीवाल की ओर रुख करेंगे!

अमित जोगी पर आप की नजर।क्या अपनी पार्टी का विलय कर केजरीवाल की ओर रुख करेंगे!

रायपुर(छत्तीसगढ़)।भारतीय राजनीति में क्षेत्रीय दलों का वजूद हमेशा ही रहा है- आजादी से पहले राष्ट्रीय आंदोलन के दौर में भी और आजादी के बाद भी लंबे समय तक। लेकिन उनकी भूमिका सिर्फ उनसे संबंधित राज्यों तक ही सीमित रही।जो समय के साथ बदलते गई। आज देश के दो तिहाई से ज़्यादा राज्य ऐसे हैं, जहां क्षेत्रीय दल न सिर्फ़ पूरे दमखम के साथ वजूद में हैं, बल्कि कई राज्यों में तो अपने अकेले के बूते सत्ता पर काबिज़ भी हैं तो कई राज्यों में राष्ट्रीय दलों के साथ सत्ता में साझेदार बने हुए हैं। इस बीच जो सबसे ज्यादा चर्चा में है,वह केजरीवाल की आम आदमी पार्टी, जो दिल्ली के बाद पंजाब में भी अपने खुद के दम पर सरकार में काबिज हो चूकि है। इतना ही नहीं हाल ही में हुए चुनावों में गोवा जैसे राज्य में भी अपना पैर पसार चुकी है।

बताया जा रहा है अब उसकी नजर देश के अन्य राज्यों में है।इसमें छत्तीसगढ़ भी एक है। जहां संभावनाएं तलासी जा रही है। केजरीवाल को छत्तीसगढ़ में एक ऐसे चेहरे की तलाश है जो पार्टी का नेतृत्व करने सक्षम हो और ठीक इसके अनुरूप उनके एजेंडा को आगे तक ले जा सके। ऐसे में क्या अमित जोगी अपने पिता अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस को आप में विलय कर राजनीति की नई पारी की शुरुआत करेंगे। सूत्रों की मानें तो केजरीवाल खुद इस बात को लेकर उत्सुक हैं कि प्रदेश में अमित जोगी आप का नेतृत्व करें।

साल 2014 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने जिस तरह अपनी जीत का डंका बजाया था और फिर राज्यों के विधानसभा चुनावों में उसने अपनी जीत का सिलसिला शुरू किया, उससे कई राजनीतिक विश्लेषकों ने यह मान लिया था कि अब देश की राजनीति में क्षेत्रीय दलों के दिन लद चुके।

उनकी इस धारणा को 2019 के लोकसभा चुनाव के नतीजों ने भी और ज़्यादा पुष्ट किया। लेकिन उस आम चुनाव के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा और  झारखंड के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने उस धारणा का खंडन करते हुए साबित कर दिया कि क्षेत्रीय दलों का वजूद अभी ख़त्म नहीं हुआ है और वे राष्ट्रीय राजनीति में अपना दखल बनाए रखते हुए राष्ट्रीय दलों की मजबूरी बने रहेंगे।

देश में इस समय देखा जाए तो मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात, कर्नाटक, छत्तीसगढ, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, असम और त्रिपुरा ही ऐसे राज्य हैं जहां किसी भी चुनाव में राष्ट्रीय पार्टियों के बीच सीधा मुकाबला होता है। हालांकि इनमें से कर्नाटक, उत्तराखंड, असम और त्रिपुरा में तो राष्ट्रीय दलों के साथ ही क्षेत्रीय दल भी वजूद में हैं और कई मौकों पर वे सत्ता समीकरणों को प्रभावित भी करते रहते हैं। कुछ राज्य आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, तमिलनाडु, ओडिशा और सिक्किम ऐसे राज्य हैं जहाँ क्षेत्रीय दलों का ही बोलबाला रहा है।

इन राज्यों में कहीं तो भाजपा और कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के मुकाबले अपमानजनक हार का सामना करना पडा तो कहीं पर वे क्षेत्रीय दलों के छतरी के नीचे रहकर ही अपनी उपस्थिति दर्ज करा सकीं। वहीं छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की क्षेत्रीय पार्टी जनता कांग्रेस ने पहली बार चुनाव में 7 सीटें जीत कर उन संभावनाओं को नकार दिया था कि छत्तीसगढ़ में क्षेत्रीय पार्टियों का कोई अस्तित्व नहीं हो सकता।

हालांकि यह तब की बात है जब अजीत जोगी जीवित थे और जब तक वे जीवित रहे राजनीति में एक अहम हिस्सा बने रहे।छत्तीसगढ़ की जनता का उन्हें अपार समर्थन व स्नेह मिला। एक तरह से उनकी पार्टी जनता कांग्रेस का अजीत जोगी ही एक मात्र चेहरा थे,जिसे देख लोग वोट दिये और जब तक वे जीवित रहे पार्टी में एकजुटता भी बनी रही। परंतु उनके निधन के बाद से ही पार्टी में एक तरह का बिखराव आ गया। पार्टी के निर्वाचित सदस्यों के सुर भी बदलने लगे। कई चेहरे जो पार्टी की सुर्खियां बनी थीं वे पार्टी छोड़ कर अन्य पार्टीयों में चले गए।

वर्तमान में पार्टी की बागडोर अमित जोगी के हाथों है जो पढ़े लिखे तीब्र बुद्धि के युवा नेता हैं। नियम कायदों पर बारीकी का पकड़ है। किसी मुद्दे को कैसे उठाना है,अच्छे से जानते समझते हैं,बावजूद उनमें वो बात नहीं जो उनके पिता की थी। पार्टी के संचालन में सबसे बड़ा रोड़ा धन का भी है,जो निश्चित रूप से पार्टी का अभाव बना हुआ है। वैसे भी राजनीति में चेहरा कौन है और किस चेहरे का चलन वर्तमान परिवेश में जनता के अनुकूल है,महत्वपूर्ण होता है। ऐसे में केजरीवाल के चेहरे से बेहतर कुछ नहीं हो सकता। बहरहाल देखना ये होगा कि क्या अमित जोगी अपनी पार्टी का विलय कर किसी नई विकल्प पर आगे बढ़ेंगे।