Exclusive: सुबोध हरितवाल के जन्मदिन पर उनके प्रति सत्तापक्ष की तरह लोगों का उत्साह क्या सुबोध के नए नेतृत्व का उदय है...।

Exclusive: सुबोध हरितवाल के जन्मदिन पर उनके प्रति सत्तापक्ष की तरह लोगों का उत्साह क्या सुबोध के नए नेतृत्व का उदय है...।

रायपुर। सामान्य तौर पर देखा यह गया है कि राजनीत से जुड़े व्यक्तियों के लिए खास कर उनके जन्मदिन और अन्य राजनीतिक आयोजनों की भव्यता इस बात पर निर्भर करता है कि वह व्यक्ति सत्ता पक्ष से है की विपक्ष।सत्ता में है तो कैसा और विपक्ष में है तो कैसा।पद में है तो कैसा और पद विहीन है तो कैसा।ऐसे अवसरों में खास कर सत्ता में रहते हुए किसी राजनेता का जो जलवा व बैनर पोस्टर हर तरफ दिखाई देता है, शायद ही किसी नेता के विपक्ष में रहते हुए यह कायम रह पाता है या कहें किसी नेता का जन्मदिन हो तो यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि वह सत्ता पक्ष का है कि विपक्ष का।दोनों परिस्थिति में जमीन आसमान का अंतर होता है अर्थात उनके समर्थक व्यक्ति का नहीं उसके पद और पॉवर का स्वागत करते हैं।इन सब से इतर इस बार जिस तरह से कांग्रेस के एक युवा नेता सुबोध हरितवाल का जन्मदिन वह भी चुनावी शोरगुल के बीच दिखाई व सुनाई दिया, निश्चित तौर पर लोगों को एक नया नेतृत्व की तलाश है नजर आई। उन्होंने साबित कर दिया कि व्यक्ति विशेष की महत्ता इन सब से कहीं ऊपर है और यही वह अवसर है जब सुबोध को कांग्रेस की राजनीति में एक नए उदय की शुरुआत कराएगी।

राजनीति' की बात करें तो हमारे ज़हन में एक ऐसे पेशे की छवि उभरती है जिसमें लगे लोग समय के मुताबिक़ अपने दोस्तों को दुश्मनों और दुश्मनों को दोस्तों में बदल सकते हैं।ऐसे लोग जो सत्ता के लिए तमाम समझौते कर सकते हों और व्यक्तियों और घटनाओं को अपने हित में इस्तेमाल करना जानते हों।सुबोध हरितवाल को ठीक इसमें फिट बैठते देखा जा सकता है।तत्कालीन कांग्रेस सरकार के वक्त संगठन ने उनके इस योग्यता की वजह से कई ऐसे नगर पंचायत व निगमों में उन्हें जिम्मेदारी दे कर पार्टी के पक्ष में सफलता हासिल की थी।जिसकी चर्चा आज भी होती है।

सुबोध कहते हैं मेरे लिए दोस्तों से ज्यादा आसान दुश्मनों को गिनना है। क्योंकि मेरे दुश्मन बहुत कम हैं।इसके पीछे की वजह भी यह है कि सुबोध बहुत ही सांस्कारिक के साथ लोगों के साथ विनम्रता से पेश आते हैं।आज कुछ सालों में देखेंगे कि उनके विरुद्ध जो लोग खड़े नजर आते थे आज उनके साथ कदम से कदम मिलाते,चलते नजर आ रहे हैं।उन्होंने अपने मधुर व्यवहार और कुशल कार्य क्षमता से उन तमाम चेहरों को अपने साथ जोड़ लिया है जो कभी कहीं और नजर आते थे।उनके यही सेना अब उस पुल का निर्माण करने लग गए हैं जब मंजिल दूर नहीं होगी।

बात उनके इस बार के जन्मदिन पर बने वातावरण पर हो रही थी।वह भी ऐसे समय जब पूरी कांग्रेस दक्षिण के उपचुनाव में लगी हुई थी।बावजूद पूरे राजधानी से लेकर जिस विधानसभा में उनका निवास है पश्चिम के लोगों ने,उनके समर्थकों ने जगह-जगह स्वागत के साथ सैकड़ों की संख्या में केक कटिंग कर उनका नेतृत्व करने के लिए आव्हान किया वह अद्भुत था।कहने को तो कईयों के जन्मदिन आये व गए जिसमें सत्ता से जुड़े भी कई बड़े चेहरे हैं पर सुबोध हरितवाल का यह जन्मदिन उनके व्यक्तिगत योग्यता व हुनर को लेकर था।राजधानी में ऐसा कोई जगह नहीं।ऐसा कोई कोना नहीं जहां कोई होर्डिंग न लगी हो।उन्होंने साबित कर दिया कि कर्म से ही व्यक्ति महान बन सकता है।यह नए नेतृत्व करने का आव्हान नहीं तो क्या है।

सुबोध कांग्रेस पार्टी के बहुत ही सुलझे हुए वक्त हैं।अपनी बात को प्रभावी तरीके से रखते हुए पार्टी के पक्ष में मजबूती से पेश आते हैं।किसी विषय पर त्वरित टिप्पणी करने की क्षमता है।मीडिया से भी सुबोध का हमेशा अच्छा रिश्ता रहा है। ख़ास तौर से टीवी से। जिस रिपोर्टर को कहीं भी किसी भी मुद्दे पर जल्दी बाइट लेनी हो तो सबसे पहली पसंद सुबोध हरितवाल ही होते हैं। टीवी के हर डिबेट में सुबोध का आत्मविश्वास साफ दिखाई देता है और जो नेता बोलता है,अच्छा बोलता है लोग उसे ही पसंद करते हैं।उनका ऊंचा कद काठी,फोटोजेनिक चेहरा भी एक नेता के तौर पर फिट बैठता है।जो उन्हें भीड़ में भी अन्य से हट कर पहचान कराती है।