कांग्रेस पार्टी में अनुशासित नेता की छबि वाले टीएस सिंहदेव में लोगों को सच्चाई नजर आती है। खैरागढ़ चुनाव प्रचार में उतरे बाबा के साथ सेल्फी लेने होड़ मची...

कांग्रेस पार्टी में अनुशासित नेता की छबि वाले टीएस सिंहदेव में लोगों को सच्चाई नजर आती है। खैरागढ़ चुनाव प्रचार में उतरे बाबा के साथ सेल्फी लेने होड़ मची...

खैरागढ़ (छत्तीसगढ़)। हवा का रूख देखकर राजनीति करने वाले अवसरवादी नेताओं के लिए नेतृत्व की मर्ज़ी ही कुतुबनुमा की डिबिया हो सकती है।परंतु छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य मंत्री व वरिष्ठ कांग्रेस नेता टीएस सिंहदेव के साथ ऐसा नहीं है। जब उचित समय आया पार्टी फोरम में उन्होंने बेवाकी से अपनी बात रखी और अतीत के उन वायदों को अनुशासित हो कर याद भी दिलाया भले ही परिणाम अब तक अपेक्षित रहा। इन सब के बावजूद अपने खुद के विरुद्ध निर्मित हुए विपरीत परिस्थितियों में भी पार्टी लाइन के खिलाफ कभी नहीं गए और वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य में अनुशासन का वह मिसाल कायम किया की आज की युवा पीढ़ी के लिए एक उदाहरण बन गया है,जिसे हमेशा याद रखा जाएगा। राजनीति में कहा जाता है कि राजनीतिक फायदे के लिए नेता सच की अपेक्षा झूठ ज्यादा बोलते हैं।परंतु यह बात भी सिंहदेव के साथ लागू नहीं होता।उन्होंने सच को सच कहने कभी परहेज नहीं किया।यह भी की छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं की प्रथम पंक्ति के नेताओं में यदि एक नाम लिया जाए जिसे कांग्रेस पार्टी का विश्वास का चेहरा में गिना जाए तो यह कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि वह नाम टीएस सिंहदेव का ही पहला होगा।

खैरागढ़ की प्रतिष्ठित उपचुनाव के प्रचार में उतरे टीएस सिंहदेव के राजनैतिक अहमियत का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनको देखने व सुनने चिलमिलाती धूप में भी  आम लोगों का जनसैलाब उमड़ रहा है। लोगों के बीच उनके साथ सेल्फी लेने की होड़ सी लग गई है। कांग्रेस के सैकड़ों वर्कर जगह-जगह उनका स्वागत कर पार्टी में उनकी अहमियत का एहसास ताजा कर रहे हैं। टीएस के चुनाव प्रचार में उतरने के बाद पार्टी के अंदर खैरागढ़ के फिजाओं में जबरदस्त सक्रियता के साथ पूरा क्षेत्र कांग्रेसमय हो गया है। सौम्य स्वभाव के बाबा की बातों में लोगों को सच्चाई नजर आती है। वे अपनी बात कुछ इस तरह से रखते हैं कि  अन्य नेताओं से हट कर दिखाई देता है। विपक्ष के बारे में ज्यादा न बोल अपनी सरकार की उपलब्धियों को कुछ इस तरह से लोगों को समझाते हैं कि जनता को कांग्रेस में ही भविष्य नजर आती है।

हिंदी और अंग्रेजी में मजबूत पकड़ रखने वाले सिंहदेव का ऐसा व्यक्तित्व कि जिन्हें नजरअंदाज किया जाना अपने पैर में कुल्हाड़ी मारने जैसा है।किसी विषय पर बगैर लागलपेट के स्पष्ट राय रखना ही नहीं बल्कि उस पर सही बोलना उनकी आदत में सुमार है।जिसे लेकर कई प्रतिष्ठित समाचार चैनल के एंकरों ने सार्वजनिक तौर पर तारीफ भी की है,तो ऐसा ही व्यवहार वे सार्वजनिक जीवन में आम जनों से मुलाकात के दौरान भी कर लोगों को अपने करीब करने कोई कसर नहीं छोड़ते।छत्तीसगढ़ की राजनीति में टीएस सिंहदेव की वो हैसियत की वो जब दिल्ली जाएं तो सबकी निगाहें इस बात पर टिकी रहती है कि गए तो गए क्यों और आएंगे कब।

छत्तीसगढ़ में लगातार 15 सालों तक सत्ता से दूर रही कांग्रेस पार्टी पिछला विधानसभा चुनाव सामुहिक नेतृत्व से राहुल गांधी के चेहरे पर लड़ा था। यह भी गौर करने वाली बात है कि पिछला चुनाव 2018 का ही है जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस नेताओं के बीच गजब की एकजुटता देखी गई।हालांकि इसके पीछे छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पुनिया की ही वह रणनीति रही जो वे ऐसा कर पाने सफल रहे।महत्वपूर्ण बात एक यह भी रही कि पार्टी ने चुनावी घोषणा पत्र तैयार करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी टीएस सिंहदेव को दी इसलिए कि वो तब भी कांग्रेस के विश्वास का चेहरा थे और हैं तो आज भी,जिस पर प्रदेश की जनता ने विश्वास जताया।

इस तरह से कांग्रेस सरकार की वापसी में यदि किसी का सबसे बड़ा योगदान रहा तो वो टीएस सिंहदेव थे। लगातार 15 सालों तक विपक्ष में रही तब के कांग्रेस प्रत्याशियों के लिए भाजपा के धनकुबेरों से मुकाबला कर पाना उतना आसान नहीं था, पर यहां भी मदद के हाथ बढ़े तो सिंहदेव के ही जो व्यक्तिगत तौर पर कांग्रेस प्रत्याशियों को मदद कर मुकाबले की स्थिति में ला खड़ा कर दिया।यही वजह थी कि मुख्यमंत्री न बन पाने के बावजूद विधायकों का एक बड़ा समूह उनके साथ सालों तक खड़ी रही।

प्रदेश में बीते साल भर से कथित नेतृत्व परिवर्तन की खबरों के बीच यहां की जनता ने कांग्रेस के कई रूप देखे। खुद सिंहदेव इसके एक किरदार होने की वजह से उन्हें विभिन्न मौकों पर अपमानित करने कोई मौका नहीं छोड़ा गया। कहा जाता है राजनीति में धैर्य सबसे बड़ी बात होती है और सही मायनों में उन्होंने इस अंतराल में जो धैर्य का परिचय दिया है,धैर्य खुद सरमा जाय। बावजूद उन्होंने इस बीच गलती से भी पार्टी हाईकमान को लेकर ऐसी कोई बात नहीं कि न ही उनका तेवर कभी ऐसा रहा कि वह अनुशासन हीनता के दायरे में गिना जा सके। निश्चित रूप से उनका यह व्यवहार वर्तमान पीढ़ी के नेताओं के लिए एक मिसाल है। वरना पंजाब और राजस्थान के उदाहरण सबके सामने है।

पार्टी हाईकमान के समक्ष सिंहदेव को नीचा दिखाने सोशल मीडिया में कई समाचार भी चले कि वे भाजपा में जा रहे हैं और इससे तंग आ कर उन्हें कहना पड़ा कि यह गलत है, खबर जानबूझकर चलाई जा रही है। विगत महीनों राहुल गांधी के रायपुर आने के पहले कथित जमीन मामले में भी उन्हें घसीटा गया।इसके लिए भी उन्हें बोलना पड़ा और अब शायद आप पार्टी, केजरीवाल को लेकर कोई समाचार चलता उसके पहले ही उन्होंने खुद मीडिया को बता दिया कि आप के नेता उनसे संपर्क किये थे।इसके मायने यही हैं कि उन्होंने राजनीति करने झूठ का सहारा कभी नहीं लिया।