क्या भूपेश बघेल का छत्तीसगढ़ मॉडल ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के मामले को धराशाही कर दिया?

क्या भूपेश बघेल का छत्तीसगढ़ मॉडल ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के मामले को धराशाही कर दिया?

नजरिया

छत्तीसगढ़ की राजनीति में तूफान ले आने वाला मसला जिसमें यह कहा जा रहा था कि छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार में ढाई-ढाई साल का ऐसा कोई पेंच है कि जिसके चलते नेतृत्व परिवर्तन होगा और शेष आधे पारी के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव मुख्यमंत्री की सपथ लेंगे। यह भी की इसे लेकर हाल ही के दिनों जिस तरह से छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से देश की राजधानी दिल्ली तक एक तरह से शक्ति प्रदर्शन या कहें इस परिवर्तन को रोकने एक लॉबी चली आखिरकार वह अब  थम सा गया है! तो क्या इसके पीछे वजह यह मान लिया जाए कि भूपेश बघेल का छत्तीसगढ़ मॉडल इस तूफान को आगे बढ़ने से पहले ही धराशाही कर दिया? क्या पार्टी हाईकमान छत्तीसगढ़ में इस तरह के किसी परिवर्तन से डर गई? वहीं टीएस सिंहदेव जो एक उम्मीद व विश्वास के साथ राहुल गांधी के इस तरह के किसी निर्णय का बेसब्री से इंतजार कर रहे थे और अब उन्हें हासिये पर डाल दिया गया।

छत्तीसगढ़ सरकार को अस्थिर करने की कोशिशें अब लोगों को सरकार के स्थिर रहने की उम्मीद लगने लगी हैं।लोग अब उस मंजर को भूलने लगे हैं जब कांग्रेस का एक विधायक अपने ही पार्टी के एक केबिनेट मंत्री पर जान से मारने का आरोप लगा रहा था। लोग अब यह भी भूलने लगे हैं कि कुछ दिन पहले कांग्रेस के दो तिहाई से भी ज्यादा विधायक दिल्ली में धमक गए थे जो समाचार पत्रों व चैनलों की सुर्खियां बटोर रहा था, हां इस बीच यह खबर आज भी जरूर सुर्खियों में बना हुआ है की क्या वाकई राहुल गांधी का छत्तीसगढ़  का कोई दौरा होगा और होगा तो उसका उद्देश्य क्या है। आखिर ढाई साल बाद राहुल गांधी को ऐसी क्या आन पड़ी जो छत्तीसगढ़ के विकास का मुआयना करने पड़ रहे हैं और यह तब जब छत्तीसगढ़ मॉडल को लेकर राहुल गांधी देश में कई मौकों पर बोलते रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 27 अगस्त को दिल्ली में राहुल गांधी के निवास पर उनसे 3 घंटे से भी ज्यादा समय तक चली बैठक के बाद जब बाहर निकल कर मीडिया से बात की तो यही कहा कि उनके आमंत्रण पर राहुल गांधी अगले सप्ताह छत्तीसगढ़ आ रहे हैं और 2-3 दिन रुक कर पूरे छत्तीसगढ़ का दौरा कर विकास कार्यों को देखेंगे।पर आज 13 दिन बीत जाने के बाद भी उनके छत्तीसगढ़ आने का कोई कार्यक्रम नहीं बन सका है।इस बीच उनका 9 सितंबर को जम्मू में पहुंचकर वैष्णो देवी के दर्शन के लिए पैदल यात्रा पर जाना प्रस्तावित है, इसके बाद अगले दिन वे जम्मू में पार्टी नेताओं, कार्यकर्ताओं, पूर्व विधायकों, पूर्व मंत्रियों से मिलेंगे। राहुल गांधी 10 सितंबर को दिल्ली लौट भी आते हैं तो उसके तीन दिन बाद 13 तक तो छत्तीसगढ़ आने का कोई कार्यक्रम नजर नहीं आता।इसलिए कि कम से कम उनके दौरे के तीन दिन पहले प्रोटोकॉल जारी हो जाता है जो अब तक जारी नहीं हुआ है।इस तरह वे 20 सितंबर के पहले छत्तीसगढ़ का दौरा पूर्ण कर दिल्ली नहीं लौट जाते तो जिस अस्थिरता की बातें हो रही है उसे स्थिर मान लिया जाए सही नहीं होगा।

गौरतलब हो कि इस साल पितृ पक्ष 20 सितंबर से शुरू होकर 6 अक्टूबर तक रहेंगे।हिंदू धर्म में पितृ गण देवतुल्य होते हैं और इस दौरान किसी तरह का कोई महत्वपूर्ण कार्य या नवीन निर्णय लिया जाना हर दृष्टि से वर्जित माना जाता है। इस तरह से छत्तीसगढ़ में 6 अक्टूबर तक यथा स्थिति बनी रहेगी यह तय है। इसके बाद कोई कार्यक्रम तय भी होता है तो उसमें भी समय लगना है और इस तरह से अगले महीना भी इसी तरह के उपपोह में गुजर गया तो समझ लो यह मुद्दा कई महीनों के लिए टल गया।इसलिए कि इसके बाद यूपी के चुनाव का नवंबर में शंखनाद हो जाएगा और ऐसे समय में किसे फुर्सत है कि वहां का महत्वपूर्ण चुनाव छोड़ छत्तीसगढ़ जैसे मुद्दे में उलझना चाहेगा।

इन तमाम योग संयोग व तिथि पर यदि गौर किया जाए तो सार यही निकल कर आता है कि भूपेश सरकार के छत्तीसगढ़ मॉडल और उनकी राजनीतिक ताकत के सामने सभी धराशाही हो गए हैं। इस बीच राहुल गांधी के सम्भावित बस्तर दौरे को लेकर भी तैयारियां जोरों पर है तो इन ढाई वर्षों में भूपेश बघेल द्वारा लाई गई नई योजनाओं को राहुल गांधी के समक्ष प्रस्तुतिकरण देने की तैयारी भी है पर सवाल उठता है क्या राहुल गांधी भूपेश सरकार की कार्ययोजना को आधार मान कर उस मसले को सुलझाने की सोच रहे हैं,जिसमें यह शर्त थी ही नहीं  जिसमें ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का फॉर्मूला बना था।

मेरे बहुत कोशिश के बाद कांग्रेस की राजनीति में गहरी पैठ रखने वाले एक विधायक ने अपना नाम न छापने की शर्त पर इस पूरे मामले पर कहा,यह सच है कि पिछला चुनाव हम सब ने बगैर गुटबाजी के साथ लड़ा था और यही कारण था कि जनता ने कांग्रेस पर विश्वास जताया।परंतु जिस तरह से पिछले कुछ महीनों में कांग्रेस के अंदर जिस तरह की बातें हो रही है और यह सार्वजनिक हुई है वो कांग्रेस पार्टी के लिए ठीक नहीं है।जिस मुद्दे से आम जनमानस का कोई सरोकार ही नहीं उसे लेकर बातें हुई है।हालांकि उन्होंने ये भी कहा,यह मुद्दा बहुत समय तक नहीं टिकने वाला। छत्तीसगढ़ में जिस तरह से विकास के कार्य हो रहे हैं।जनता आखिरकार उसे ही याद रखती है। आज हम वो समय से हम गुजर रहे हैं,जहां चुनावी मुद्दा विकास ही है न कि जातिवाद या अन्य।इसके अलावे भी और लोगों से बात करने की कोशिश हुई पर मौजूदा हालातों को लेकर कोई कुछ कहने से बचते नजर आए।