राहुल गांधी छत्तीसगढ़ के दोनों नेताओं से One-to-one कई दौर की चर्चा की और यह चर्चा ढाई साल के CM पर ही केंद्रित रहा! अंतिम फैसला सोनिया आज करेंगी.

राहुल गांधी छत्तीसगढ़ के दोनों नेताओं से One-to-one कई दौर की चर्चा की और यह चर्चा ढाई साल के CM पर ही केंद्रित रहा! अंतिम फैसला सोनिया आज करेंगी.

दिल्ली/रायपुर। कल जब छत्तीसगढ़ कांग्रेस के दो दिग्गज मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और ढाई-ढाई साल के कथित फ़ॉर्मूले के बाद मुख्यमंत्री पद के दावेदार टीएस सिंहदेव दिल्ली में राहुल गांधी से मुलाकात कर रहे थे तो छत्तीसगढ़ में पूरी कांग्रेस के साथ-साथ विपक्ष और सरकार के नौकरशाहों की नजर दिल्ली पर टिकी हुई थी। राहुल गांधी से यह मुलाकात करीबन 2 घंटा 50 मिनट तक चली।चर्चा खत्म होने के बाद दोनों नेताओं के अलावा राहुल गांधी के निवास पर मौजूद रहे छत्तीसगढ़ के प्रभारी पीएल पुनिया भले ही पत्रकारों को चर्चा कर जो भी वजह बताई हो,इसके इतर विश्वस्त सूत्रों के हवाले से ये खबर है कि यह चर्चा पूरी तरह से ढाई-ढाई साल के CM को लेकर ही केंद्रित रहा और राहुल गांधी ने दोनों नेताओं भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव से इसे लेकर चर्चा ही नहीं कि बल्कि One-to-one कई दौर की चर्चा की ताकि छत्तीसगढ़ में इस मुद्दे को लेकर मचे बवाल का कोई आसान रास्ता निकाला जा सके।

 पूरे देश में आज के हालात में कांग्रेस की क्या स्थिति है किसी से छुपी नहीं है। राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनाव जीतने के बाद से ही कांग्रेस पार्टी के भीतर मुख्यमंत्री पद को लेकर सवाल उठते रहे हैं। पंजाब एक ऐसा राज्य रहा जहां चुनाव जीतने के बाद अमरिंदर सिंह ही प्रबल व एकलौते दावेदार रहे। परन्तु समय के साथ वहां के भी हालात अब बदल चुके हैं और वहां नवजोत सिंह सिध्धु की एंट्री हो चुकी है। आपसी मदभेदों के कारण मध्यप्रदेश में तो कांग्रेस पार्टी को सत्ता से ही हाथ धोना पड़ा। वर्तमान में राजस्थान और पंजाब के झगड़े जगजाहिर तो है ही,अब इस श्रेणी में छत्तीसगढ़ का नाम भी जुड़ गया है।

ढाई-ढाई साल के CM का मुद्दा हमेशा जीवित रहा

पिछले कुछ महीनों से छत्तीसगढ़  में राजनैतिक हालात तेजी से बदले हैं। मुख्यमंत्री पद को लेकर पुराने वायदों की याद दिलाई जा रही है। हाल ही के महीने 17 जून को राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के ढ़ाई साल पूरे होने के बाद से ही आये दिन राज्य में मुख्यमंत्री बदलने की एक तारीख चर्चा में सुमार रहती है। हालांकि भूपेश बघेल के समर्थक इसे महज अफ़वाह बता कर टाल देते हैं और यह दलील देते हैं कि ऐसा कोई फॉर्मूला ही नहीं बना था। जिस राज्य में पार्टी को बहुमत से ज्यादा समर्थन हो उस राज्य में ऐसा होता ही नहीं है, तो टीएस सिंहदेव के समर्थक पूरे आत्मविश्वास के साथ यह कहते देखे जाते हैं कि देखिए आगे जो होगा सही होगा। उन्हें आलाकमान पर पूरा विश्वास है और वक्त का इंतजार है।

एक समय ऐसा भी आया जब भूपेश बघेल हाईकमान के कहने पर इस्तीफा दे देने की बात कही

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी के सत्ता में आने के एक साल बाद  ही टीएस सिंहदेव ने बिलासपुर संभाग में इस बात को उजागर कर सबको चौका दिया था कि छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री का कोई फॉर्मूला तय हुआ है।इसके बाद कई दफे वे पूरी तरह से अनुशासित हो कर यही कहते रहे हैं कि मुख्यमंत्री बनाने का फ़ैसला आलाकमान पर निर्भर करता है। इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल इसे लेकर लगातार इस तरह के 'ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री' जैसे किसी फ़ॉर्मूले को ही ख़ारिज करते रहे और इसके पीछे वे भी कांग्रेस के भारी बहुमत में होने की वजह बताते रहे। परंतु जब यह मुद्दा समय के साथ बढ़ता गया और विपक्ष भी सवाल करने लगी कि राहुल गांधी को स्वयं हो कर इसे स्पष्ट करना चाहिए तो एक समय ऐसा भी आया कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल आक्रामक मुद्रा में पत्रकारों द्वारा पूछे गए इस सवाल का जवाब देते हुए यहाँ तक कह दिया कि ‘‘अभी मैं आपसे बात कर रहा हूं और आलाकमान का निर्देश आता है कि इस्तीफा दे दो तो मै इस्तीफा दे दूंगा। पार्टी हाईकमान के निर्देश पर यह जिम्मेदारी मैने ली है। हाईकमान बोले तो मै तत्काल इस्तीफा दे दूंगा।’’ उन्होंने कहा कि उन्हें इस पद का मोह नहीं है। उन्हें जो जिम्मेदारी दी गई है उस पद का वह निर्वहन कर रहे हैं। साथ ही उन्होंने कहा कि इस प्रकार से गलतफहमी पैदा करने वाले लोग प्रदेश का हित नहीं कर रहे हैं।

 

पार्टी में सिंहदेव उस स्थिति तक पहुंच गई जहां सफाई देने में उलझे नजर आए

इस पूरे मामले पर छत्तीसगढ़ के पार्टी प्रभारी पीएल पुनिया समय-समय पर ऐसी किसी बातों से इनकार करते रहे। बावजूद यह मुद्दा कभी खत्म नहीं हुआ। पिछले कुछ माह से तो मुख्यमंत्री पद के दावेदार टीएस सिंहदेव पर इसे लेकर पार्टी के ही विधायक अलग-अलग तरीके से घेरने की शुरुआत भी कर दिए हैं और उन्हें इस बात का एहसास दिलाते रहे हैं की सिंहदेव के साथ विधायकों का कोई समर्थन नहीं है।बल्कि 55-56 विधायक एक साथ मुख्यमंत्री निवास में जा कर शक्ति प्रदर्शन करने से भी पीछे नहीं रहे, कभी पार्टी के अपने ही विधायक बृहस्पति सिंह जैसों ने तो सिंहदेव पर हत्या करवाने की साज़िश रचने के गंभीर आरोप तक लगा डाले।सोशल मीडिया में टीएस सिंहदेव के फर्ज़ी बयान वायरल हुए तो कभी उनके भाजपा में शामिल होने की अफवाहें एक रणनीति के तहत फैलाई गईं और टीएस सिंहदेव अपने ही पार्टी में विवश हो कर सफाई देते रहे।

मुख्यमंत्री चयन के साथ ही उसी समय ढाई-ढाई साल का फॉर्मूला  तय हो गया था

गौरतलब हो कि छत्तीसगढ़ में 15 वर्षों के बाद साल 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी 90 में से अप्रत्याशित रूप से 68 सीटों पर जीत हासिल करी।चूंकि चुनाव जब लड़ा गया था तो संयुक्त नेतृत्व में लड़ा गया था और पार्टी ने चुनाव में मुख्यमंत्री का कोई चेहरा घोषित नहीं किया था। इस वजह से विधायक दल की बैठक में नेता चुने जाने के बजाये सारा कुछ पार्टी आलाकमान पर छोड़ दिया गया। कई दिनों तक इसके चार दावेदार दिल्ली में जमे रहे और इस बीच ताम्रध्वज साहू का नाम लगभग तय कर लिया गया।इससे आश्वस्त ताम्रध्वज साहू दिल्ली छोड़ रायपुर के लिए रवाना हो गए। कांग्रेस के सूत्र बताते हैं कि इस निर्णय की खबर से अन्य दावेदार असहज महसूस करने लगे। घोषणापत्र बनाने से लेकर चुनाव की एक-एक रणनीति तय करने वाले टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल इस फ़ैसले के बाद अड़ गये और राहुल गांधी के साथ दुबारा बैठक  करने उन्हें राजी कर लिया। परंतु इस बैठक में भी पेंच वहां जा कर फंस गया कि इन दोनों में कौन और बैठक में फैसला हुआ कि भूपेश बघेल और टीएस सिंहदेव ढाई-ढाई साल के मुख्यमंत्री के फॉर्मूले पर काम करेंगे और यह वही फॉर्मूला है जो आज पार्टी के लिए एक फांस बन गई है।

सत्ता में वापसी के बाद भूपेश और सिंहदेव के रिश्ते असमान्य होने लगे

विधानसभा चुनाव से पहले तक साथ रणनीति बना कर पूरे प्रदेश में साथ दौरा करने वाले शोले फिल्म के जय-वीरु के किरदार में टीएस सिंहदेव और भूपेश बघेल के रिश्ते सरकार गठन के बाद धीरे-धीरे असमान्य होते गए।भूपेश बघेल के साथ नए चेहरे जुड़ते गए और नई टीम के साथ काम करने की उनकी आदत बनती गई।स्थिति यहां तक पहुँच गई कि टीएस सिंहदेव के मंत्रालय से जुड़े कई शीर्ष अफ़सरों के तबादले किये गये और टीएस सिंहदेव से इसे लेकर कभी कोई राय तक नहीं ली गई। टीएस सिंहदेव को जिस स्वास्थ्य विभाग का मंत्री बनाया गया था, उसकी कई बैठकों से टीएस सिंहदेव को ही दूर रखा गया। स्वास्थ्य विभाग की कई बैठकें ऐसी हुईं, जिसकी अध्यक्षता मुख्यमंत्री स्वयं ने की और स्वास्थ्य मंत्री को इन बैठकों में बुलाया तक नहीं गया।इसे लेकर विपक्ष भी हमलावर रही,विपक्ष ने तब यहां तक कहा था कि जिस विभाग का बैठक है,विभागीय मंत्री ही नदारद हैं और सिंहदेव को बेइज्जत होना पड़ा।

टीएस सिंहदेव की अपने ही विभाग में पूछ परख कम हो गई

धीरे-धीरे बात यहां तक पहुंच गई  कि टीएस सिंहदेव के विभाग से संबंधित कई ज़रूरी और नीतिगत फ़ैसलों की घोषणा मुख्यमंत्री भूपेश बघेल स्वयं करने लगे। टीएस सिंहदेव को इन फ़ैसलों की जानकारी समाचार पत्रों के माध्यम से हुआ किया करता था।किसी को अधिकार विहीन करने का यह तरीका सिंहदेव के लिए एक तरह से किसी अपमान से कम नहीं था। कुछ अवसरों पर टीएस सिंहदेव ने कॉन्फ्रेंस कर अपने ही विभाग के फ़ैसलों का विरोध भी किया और उसकी ठोस वजह भी बताई। परंतु सब कुछ बेअसर रहा।बताया जा रहा है की वजह यही रही होंगी,जिसके कारण वे इस बार छत्तीसगढ़ छोड़ आर-पार के मूड में राहुल गांधी के शरण में न्याय की गुहार के साथ इस आशा में लंबे समय से लगे रहे और इसी को लेकर दिल्ली में पहले दौर की बैठक के बाद आज सोनिया गांधी के साथ बैठक होगी और इसका अंतिम हल निकाला जाएगा।सूत्रों से खबर ये भी है कि अगर टीएस सिंहदेव को मुख्यमंत्री नहीं बनाया जाता है तो वे मंत्री पद छोड़ कर चुपचाप घर बैठ जाएंगे,पर मुख्यमंत्री से कम वे कुछ भी नहीं चाहते।

भूपेश बघेल कांग्रेस पार्टी में ओबीसी का बड़ा चेहरा बन चुके

दूसरी ओर पार्टी हाईकमान के लिए यह भी दुविधा की स्थिति है कि अगर छत्तीसगढ़ में कोई बदलाव किया जाता है तो इसका  सीधा असर राजस्थान सरकार पर पड़ेगा जहाँ सचिन पायलट साल भर से हाईकमान से सीधी लड़ाई लड़ रहे हैं और अब तक उनकी मांगें पूरी नही हुई है।ऐसी स्थिति में आलाकमान ऐसा कोई क़दम उठाना नहीं चाहेगी की छत्तीसगढ़ में किसी तरह के बदलाव का असर राजस्थान और पंजाब में पड़े। दूसरी सबसे बड़ी वजह यह है कि भूपेश बघेल आज की तारीख़ में ओबीसी का एक बड़ा चेहरा बन चुके हैं और समय के साथ ओबीसी वोट बैंक कांग्रेस से खिसक कर बीजेपी की ओर जा रही है।ऐसे में एक मजबूत ओबीसी चेहरा को पार्टी किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहेगी।तीसरी बड़ी वजह भूपेश बघेल के स्वयं का किसान होना। जिन्होंने किसानों के हित में नई- नई योजना ला कर किसान आंदोलन को एक तरह से मात दिया है और कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में चुनाव भी होने हैं।ऐसे समय में उन्हें पद से हटा कर कांग्रेस पार्टी कोई ख़तरा लेगी नहीं लगता वह भी जो राज्य खुद प्रियंका गांधी का केन्द्र बिंदु में है।