सत्ता से कोसों दूर रह कर भी युवा कांग्रेस को नई उड़ान देने वाले कोको पाढ़ी अपने पूरे कार्यकाल में धूमकेतु की तरह छाए रहे...
रायपुर(छत्तीसगढ़)।छत्तीसगढ़ युवा कांग्रेस में 3 साल बाद नए सिरे से पदाधिकारियों को चुनने चुनाव प्रक्रिया का आगाज हो चुका है।इस बीच प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में कई नाम अभी से सोशल मीडिया में दौड़ने लगे हैं।इन सब के बीच जो खास बात देखी जा रही है वह यह कि वर्तमान अध्यक्ष कोको पाढ़ी को लेकर उनके साथ कंधे से कंधा मिला कर युवा कांग्रेस को मजबूती देने काम किये युवा साथी अपने फेस बुक और अन्य सोशल मीडिया के माध्यमों से इमोशनल पोस्ट शेयर कर उनके कार्यकाल की मीठी यादों को याद कर रहे हैं।कोको की सरलता, सहजता, युवाओं के बीच बगैर भेद भाव के उनके कार्य करने की शैली,न किसी से राग न किसी से द्वेष, फूल टाईम युथ पॉलिटिक्स के अलावा और कुछ नहीं।यही उनकी खूबी ने प्रदेश में युवा संगठन को उस मुकाम तक पहुंचा दिया कि युवाओं को हमेशा ये तीन साल याद रहेगा। कहा तो यह भी जा रहा है, कोको जैसे निष्ठावान कांग्रेसी के कार्यप्रणाली को ही अध्यक्ष पद के लिए अनिवार्य योग्यता क्यों न बना दिया जाता।
छत्तीसगढ़ प्रदेश युवा कांग्रेस के अध्यक्ष का पद अपने आप में किसी के इस पद पर होना ही उस युवा के लिए गौरव की बात है और यह गौरव कोको पाढ़ी को तब मिला जब लम्बे संघर्ष के बाद 15 साल बाद कांग्रेस की प्रदेश में सत्ता की वापसी हुई। तब युवाओं के बीच कुछ समय के लिए यह धारणा जरूर बनी की सरकार के साथ इस पद का रौब के हिसाब से विशेष महत्व रहेगा। इसलिए भी की इसके पूर्व अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल चुके उमेश पटेल को कैबिनेट मंत्री बनाया जा चुका था। पर यह भ्रम कुछ ही दिनों में टूटू गया जब कोको ने संगठन को मजबूत करने रोड़ मैप तैयार किया। जिसमें स्पष्ट था कि सत्ता और संगठन की जिम्मेदारी अलग-अलग होती है और उन्होंने अपने कार्यकाल के पूरे तीन साल में कभी भी संगठन को सत्ता पर हावी होने नहीं दिया। बल्कि सत्ता से कोसों दूर रह कर भी लाखों युवाओं के लिए, प्रदेश युवा कांग्रेस के लिए वो कर दिखाया कि इसकी गूंज दिल्ली तक होते रही और राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास से लेकर संगठन प्रभारी महासचिव केसी वेणुगोपाल के वे विश्वास पात्र बने रहे और पूरे कार्यकाल के दौरान धूमकेतु की तरह युवाओं के दिलों में छाए रहे।
कोको पाढ़ी कांग्रेस में उन नेताओं में सुमार रहे जो सबसे ज्यादा प्रदेश भर का दौरा कर शहर से लेकर ग्रामीण अंचल और एक-एक विधानसभा तक के युवाओं को कांग्रेस संगठन के साथ जोड़ने की मुहिम चलाई और यह सिलसिला पूरे तीन साल चलते रहा इस बीच वे दौरे पर जहां भी गए उधरी उनके साथ रह कर, दिनरात उनके परिवेश में समय गुजारी और यही उनका गुरुमंत्र साबित हुआ। युवाओं को लगने लगा कि उनके बीच का ही कोई है जो अपने से जोड़ रहा है। कोको का आदत व्यवहार भी ऐसा की दुश्मन भी उन पर वार करने सरमा जाए। कोको का जब-जब भी प्रदेश के किसी कोने में दौरा हुआ एक बार भी ऐसा नहीं हुआ जब उनके स्वागत सत्कार में कमी आई हो, सैकड़ों, हजारों की संख्या में मोटरसाइकिल के रैली की शक्ल हो या फिर पैदल यात्रा में युवाओं की हुजूम न लगी हो। कहीं पहुंच जाएं और सभा में जुटे युवाओं की भीड़ देख एक बारकी तो यही लगता कि कल ही चुनाव होने वाले हैं। इस दौरान उनके सुरक्षा को लेकर भी बात आई जब उनके ठहरने या कार्यक्रम स्थल के समीप बस्तर के कई क्षेत्रों में नक्सली वारदात हुए।
कोको पाढ़ी के लोकप्रियता व इस उपलब्धि में उनकी लम्बे संघर्ष की कहानी भी है। भानुप्रतापपुर जैसे आदिवासी अंचल से एक साधारण परिवार से आने वाले किसी युवा को यदि यह मुकाम हासिल हुआ है तो निश्चित ही इसके पीछे उनकी पार्टी के प्रति प्रथम दृष्टिया तो ईमानदारी ही होगी। कोको के करीबियों का कहना है,जब छत्तीसगढ़ में अजीत जोगी का कांग्रेस की राजनीति में डंका बजता था,तब कोको पाढ़ी उनके खास करीबियों में से एक थे और पार्टी की मजबूती से लेकर समाज में प्रभावशाली लोगों को उनके साथ जोड़ने में खास भूमिका निभाया करते थे। परंतु जब जोगी ने अलग पार्टी बना ली तो बगैर बिलंब किये कोको उनसे अलग हो गए। इसलिए कि कांग्रेस पार्टी ने ही इनको उनसे जोड़ रखा था। जबकि कई युवा चेहरे कांग्रेस छोड़ कर जोगी के साथ हो गए थे। हालांकि कांग्रेस की सत्ता में वापसी के बाद वे सब कांग्रेस में शामिल हो गए।इससे भी साबित होता है कि इस युवा नेता का कांग्रेस पार्टी के प्रति प्रेम किस हद तक है। इसके बाद संघर्ष के दिनों में कोको तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल से कदम से कदम मिला कर उनके आन्दोलनों में बढ़चढ़ कर भाग लेते रहे। खास कर बस्तर क्षेत्र में कांग्रेस को मजबूती दिलाने उन्होंने दिन रात एक कर दी और अपेक्षाकृत चुनाव परिणाम भी कांग्रेस के पक्ष में आया और इसके बाद लगातार कांग्रेस का ग्राफ इस क्षेत्र में बढ़ते गया।
कोको पाढ़ी अपने कार्यकाल के तीन साल के अंतराल में भी कई विपरीत परिस्थितियों से गुजरते रहे।एक बार तो ऐसा भी मौका आया कि उनको तय करना था कि वे संगठन में जुड़े रहें कि घर परिवार को अनदेखा कर दें। उस कठिन वक्त में भी उन्होंने कांग्रेस पार्टी को चुना और पूरे आत्मविश्वास के साथ काम करते रहे। सरकार की योजनाओं को अपने तरीकों से लोगों के बीच अधिक से अधिक पहुंचाने की बात हो, कांग्रेस पार्टी में अधिक से अधिक संख्या में सदस्य बनाने का समय हो या फिर राष्ट्रीय नेतृत्व से मिले कार्यक्रमों को वृहद स्तर में आयोजित कर जन-जन तक पहुंचाने की बात हो,किसी काम में वे कभी पीछे नहीं रहे। खास बात यह भी रही कि कोको द्वारा आयोजित युवक कांग्रेस के हर कार्यक्रम में राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीनिवास दिल्ली से छत्तीसगढ़ आ कर हमेशा शामिल होते रहे। इतना ही नहीं अन्य बड़े पदाधिकारी भी कोको के किसी कार्यक्रम की अनदेखी कभी नहीं कि। यही वजह है कि वे अपने काम के दम पर राष्ट्रीय नेतृत्व का विश्वास जीता और जब तक वो चाहे तब तक छत्तीसगढ़ की कमान अपने हाथ में थामे रखा। कोको अपने राजनीतिक आदर्श राहुल गांधी को मानते हैं। उनका सोचना है राहुल गांधी मेहनत करने वालों को पहचानते हैं और वक्त आता है तो ऐसे लोगों को मौका भी देते हैं।