क्या बाबा साहब के अनुयाई दलितों का झुकाव अब आम आदमी पार्टी केजरीवाल की ओर बढ़ रहा है...

आंबेडकर के देहांत के 34 साल बाद पहली बार संसद के सेंट्रल हॉल में उनकी तस्वीर लगाई गई

क्या बाबा साहब के अनुयाई दलितों का झुकाव अब आम आदमी पार्टी केजरीवाल की ओर बढ़ रहा है...

बाबा साहब भीमराव आंबेडकर जयंती पर विशेष: बाबा साहब भीमराव आंबेडकर आख़िरी सांस तक जातीय भेदभाव पर चोट करते रहे और दलितों के हक़ की लड़ाई लड़ते रहे। इस संघर्ष में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने ख़ुद हिंदू धर्म त्यागकर बौद्ध धर्म अपना लिया था। साल 1956 में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के देहांत के बाद दलितों के हक़ की लड़ाई अलग-अलग राजनीतिक दलों में बँट गई और वो धीरे-धीरे एक राजनीतिक प्रतीक बनते चले गए। साल 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना के बाद कांशीराम की सभाओं में एक नारा ज़ोर शोर से गूंजता था- ''बाबा तेरा मिशन अधूरा, कांशीराम करेंगे पूरा।"वही बहुजन समाज पार्टी जो दलितों की राजनीति करते रही इस समय उत्तर प्रदेश में अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है,तो कांशीराम के बदले अब अरविंद केजरीवाल का नाम जुड़ गया है। ये नया नारा है, ''बाबा तेरा सपना अधूरा, केजरीवाल करेगा पूरा।'' जो पंजाब के चुनाव परिणाम इस बात को प्रमाणित भी करते हैं।

गौरतलब हो कि पिछले तीन दशकों से बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के जरिए देश की ज़्यादातर राजनीतिक पार्टियों ने अपनी राजनीतिक ज़मीन मजबूत करने की कोशिश की है।वहीं इस समय उत्तर प्रदेश में दलितों की राजनीति करने वाली बहुजन समाज पार्टी अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है। वहीं बिहार में रामविलास पासवान के निधन के बाद राज्य में दलित जनाधार बिखर चुका है। रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी अब बहुत कमज़ोर हो चुकी है। उधर महाराष्ट्र के दलित नेता रामदास आठवले की रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया का प्रभाव क्षेत्र बहुत सीमित है। 

आप यदि चालीस साल पहले के चुनावों में दृष्टि डालें तो भीमराव आंबेडकर का कोई नाम तक नहीं लेता था। कांग्रेस को भी दलितों का वोट दलित नेता जगजीवन राम के नाम पर मिलता था। 80 के दशक में कांशीराम और 90 के दशक में मंडल कमिशन के समय राजनीति में आंबेडकर एक बड़े प्रतीक बन कर उभरे और आंबेडकर के नाम पर दलितों को एकजुट किये जाने की कवायद शुरू हुई।'' बदली परिस्थितियों में अब अंबेडकर के दलित का फायदा यदि किसी को मिल रहा है तो वह आम आदमी पार्टी अरविंद केजरीवाल को।

केजरीवाल इन दिनों अलग-अलग मंचों से और इंटरव्यू में बार-बार इस बात को दोहराते हैं कि बाबा का सपना अब वही पूरा करेंगे। सिर्फ़ नारा ही नहीं आम आदमी पार्टी के दफ़्तरों से लेकर पोस्टरों तक में, बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की तस्वीरें दिखाई दे रही हैंबता दें कि साल 2011 में जन लोकपाल क़ानून की मांग को लेकर अन्ना आंदोलन में अरविंद केजरीवाल एक नायक की तरह उभरे। उस समय मंच पर गांधी की तस्वीर और अरविंद केजरीवाल के सर पर गांधी टोपी दिखाई देती थी। तब तक बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का कहीं ज़िक्र तक नहीं था।

आम आदमी पार्टी का गठन हुआ तो चुनाव चिह्न मिला- झाड़ू और यही चिन्ह बेड़ापार लगाने अहम भूमिका निभाई। दिसंबर 2013 में आम आदमी पार्टी ने बिजली पानी के मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा का चुनाव लड़ा।उस समय भी आम आदमी पार्टी के मंच से बाबा साहब भीमराव आंबेडकर का नाम सुनाई नहीं दिया। पर झाड़ू चुनाव चुनाव चिह्न के चलते दलितों का अच्छा ख़ासा वोट मिला। बड़ी संख्या में दलित कांग्रेस छोड़कर आम आदमी पार्टी के साथ चले गए। इसमें वो तबका भी था, जो सफ़ाई के काम से जुड़ा था और उनके लिए झाड़ू की अपनी अहमियत थी।''

समय के साथ कमज़ोर होती कांग्रेस और सिमटते नजर आ रही बीएसपी के दलित जनाधार पर आप पार्टी की पैनी नज़र है। ऐसे में बाबा साहब भीमराव आंबेडकर आम आदमी पार्टी के लिए एक ज़रूरत बन गए हैं।एक तरफ़ अरविंद केजरीवाल सॉफ़्ट हिंदुत्व की राह पर हैं। वो मंच से हनुमान चालीसा का पाठ करते हैं, बुज़ुर्गों को धार्मिक तीर्थ स्थल की मुफ़्त में यात्राएं करवाते हैं। दूसरी तरफ़ वो बाबा साहब भीमराव आंबेडकर की राह पर चलने की बात भी करते हैं।ज़ाहिर है अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी एक ख़ास तरह का राजनीतिक संतुलन बनाने की कोशिश में है, ताकि हर वर्ग में उनका जनाधार स्थापित हो सके। हाल ही में हुए पंजाब राज्य के चुनाव में दलितों की आबादी क़रीब 32 फीसदी है।इस लिहाज़ से यह देश के सभी राज्यों में सबसे ज़्यादा है। जहां आप के सामने कांग्रेस के दलित मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी की चुनौती थी। परंतु दलितों ने केजरीवाल की पार्टी को समर्थन दिया और ऐतिहासिक जीत हासिल की।

आम आदमी पार्टी ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर और भगत सिंह के नाम पर अपना जनाधार बढ़ाने की लगातार कोशिश कर रही है जो आने वाले अन्य राज्यों में भी दिखाई दे तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।