मच्छरों को किस ब्लड ग्रुप के लोगों का खून पसंद है और मच्छरों की क्षमता कितनी होती है। जानिए सब कुछ...
रायपुर(छत्तीसगढ़)।इस वर्ष जिस तेजी के साथ ठंड पड़ी ठीक वैसा ही गरमी का भी अब उसी तेजी के साथ अहसास होने लगा है। धीरे-धीरे मच्छर भी भनभनाने लगे हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर मच्छर कैसे तय करते हैं कि किसका खून चूसना है। एक बात तो आप जानते ही होंगे कि सिर्फ मादा मच्छर ही खून चूसती हैं, नर मच्छर ऐसा नहीं करते। तो सवाल यह है कि मादा मच्छर कैसे निर्धारित करती हैं कि किस व्यक्ति को अपना शिकार बनाना है? सोचिए, विज्ञान की दुनिया कितनी मजेदार है कि अब शोध में इसका भी पता लगा लिया गया है।
मच्छरों की सूंघने की क्षमता इतनी तीव्र होती है कि वे 50 मीटर की दूरी से भी चीजों को सूंघ लेते हैं। जिन लोगों का ब्लड ग्रुप ए है उनकी तुलना में ओ ब्लड ग्रुप वाले लोगों के प्रति मच्छरों का आकर्षण दोगुना होता है। तो वहीं बी ब्लड ग्रुप वाले लोगों के प्रति मच्छरों का आकर्षण ए ब्लड ग्रुप वालों से ज्यादा और ओ ब्लड ग्रुप वालों से कम होता है।
मच्छर, हर तरह के कार्बन डाई ऑक्साइड के प्रति आकर्षित होते हैं। बड़े उम्र के लोग अधिक कार्बन डाई आक्साइड छोड़ते हैं। यही वजह है कि बच्चों के मुकाबले बड़ों को ज्यादा मच्छर काटता है। कुछ इसी तरह की परिस्थिति गर्भवती महिलाओं के साथ ही होती है क्योंकि जब कोई महिला गर्भवती होती है तो वह सामान्य दिनों की तुलना में ज्यादा कार्बन डाई आक्साइड छोड़ती है और इसलिए गर्भावस्था के दौरान उसे ज्यादा मच्छर काटते हैं।
वैज्ञानिकों ने रिसर्च के बाद कहा है कि मादा मच्छर को अपने शिकार का पता लगाने के लिए गंध और नजर, दोनों की जरूरत पड़ती है। हम सांस में कार्बन डाइऑक्सइड (CO2) छोड़ते हैं जिसका एक गंध होता है। वैज्ञानिकों की मानें तो मादा मच्छर कार्बन डाइऑक्साइड को सूंघते-सूंघते इंसान के पास पहुंचती हैं और फिर वो अपनी नजर का इस्तेमाल करती हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि मादा मच्छरों में 100 फीट दूर से गंध को सूंघ लेने की क्षमता होती है। हम एक सेकंड में जितनी हवा सांस के जरिए छोड़ते हैं उसमें 5% मात्रा कार्बन डाइऑक्साइड की होती है। इसे सूंघते ही मादा मच्छर इंसान की तरफ तेजी से उड़ती हैं।वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर मादा मच्छरों में सूंघने की क्षमता खत्म कर दी जाए तो हम मच्छरों के काटने से बच सकते हैं।