प्रमोद दुबे लोकसभा जीत जाते तो आज राहुल गांधी के इनर सर्कल में छत्तीसगढ़ के सबसे ताकतवर नेता होते...
रायपुर(छत्तीसगढ़)।प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद दुबे का वो नाम जो छात्र राजनीति के उस शिखर पर रहे जहां मौजूदा समय के राजनेताओं में न ही कांग्रेस से कोई पहुँच पाया था और न ही भाजपा से।अविभाजित मध्यप्रदेश के दौरान छत्तीसगढ़ में मात्र दो ही विश्वविद्यालय हुआ करते थे।जिसमें सबसे पुराना और बड़ा पंडित रविशंकर शुक्ल विवि के वे निर्वाचित अध्यक्ष रहे।प्रमोद दुबे का राजनैतिक कैरियर ऐसा की जब भी चुनाव लड़े उन्हें जीत ही मिली सिवाय पिछले लोकसभा चुनाव के।राजनीति के जानकारों का मानना है कि वे पिछला लोकसभा चुनाव जीत जाते तो आज राहुल गांधी के इनर सर्कल में छस्तीसगढ़ के सबसे ताकतवर नेता होते।
प्रमोद दुबे वो करिश्माई नेता हैं कि न्यूट्रल मतदाताओं को भी अपनी ओर आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं, वे बीजेपी को वोट देने वाले लोगों में भी पैठ बना सकते हैं और इस बात को वे छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार रहते रायपुर मेयर का चुनाव जीत कर साबित भी किया है और यह तब जब मेयर का चुनाव प्रत्यक्ष मतदान प्रणाली से सम्पन्न हुआ था।
छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस नेता प्रमोद दुबे का नाम उन अति सक्रिय नेताओं में एक है जो अपनी लोकप्रियता को लगातार कायम रख पाने मौजूदा समय के राजनीति में भी सफल हैं।इसके पीछे की सबसे बड़ी वजह यह है कि प्रमोद दुबे किसी पहचान के मोहताज नहीं, जो व्यक्ति छात्र राजनीति से ही अपनी कैरियर की शुरुआत की हो वह नाम वैसे भी राजनीतिक जगत में हमेशा के लिए याद किया जाते रहा है। देश में राष्ट्रीय स्तर पर चंद्रशेखर, वीपी सिंह,लालूप्रसाद यादव जैसे कई नाम हैं, जिनको उनके मूल पार्टी से इतर छात्र राजनीति के किस्से से ज्यादा याद किया जाता है और ऐसा व्यक्ति या नेता हर परिस्थिति में जूझने और समझने की क्षमता भी रखता है।प्रमोद दुबे तो इसके शिखर पर रहे। 80-90 का दशक वह समय था जब नेताओं की पहचान उनके छात्र राजनीति से हुआ करती थी और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं को इसकी समझ भी हुआ करती थी।
प्रमोद दुबे बहुत कम उम्र में ही वह मुकाम हासिल कर लिया था,जो ताउम्र लोग नहीं कर पाते,1985-86 में महाविद्यालय में छात्र संघ उपाध्याय के पद पर और इसके अगले साल ही 86- 87 में अध्यक्ष निर्वाचित हो गए। सबसे पुराना छत्तीसगढ़ महाविद्यालय तब छात्र राजनीति का केन्द्र बिंदु हुआ करता था और प्रमोद दुबे इसी महाविद्यालय के छात्र हुआ करते थे। उस दौर में छात्र संघ चुनाव भी बहुत रोचक हुआ करता था इसलिए कि मतदान प्रत्यक्ष प्रणाली से होता था जो किसी विधानसभा चुनाव से कम नहीं।इसके साथ ही विश्वविद्यालय अध्यक्ष के लिए भी चुनाव होते थे।परंतु इसके लिए प्रत्याशी को किसी महाविद्यालय का अध्यक्ष होना जरूरी होता था।जबकि मतदान इसके लिए भी प्रत्यक्ष प्रणाली से ही होते थे।इस तरह से विश्वविद्यालय अध्यक्ष का क्षेत्राधिकार और रूतबा अपने आप में मायने रखता था।छत्तीसगढ़ की मौजूदा राजनीति में प्रमोद दुबे एक मात्र राजनीति पार्टी कांग्रेस के नेता हैं जो 1986-87 में विश्वविद्यालय के अध्यक्ष रहे।
समय के साथ-साथ छात्र संघ चुनाव की प्रक्रिया बदलते गई कभी चुनाव हुए तो कभी वर्षों तक कोर्ट का ही छात्र संघ चुनाव पर प्रतिबंध लग गया।एक तरह से छात्र राजनीति को कमजोर करने की कवायद शुरू हुई जो अब तक जारी है।इन हालातों में युवाओं का रुझान राजनीतिक पार्टीयों की ओर बढ़ने लगा। 1990 से 2000 का वह समय था जब छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की स्थिति बहुत मजबूत हुआ करती थी और जब पार्टी मजबूत रहे तो स्वाभाविक तौर पर पार्टी के अंदर नेताओं में प्रतिस्पर्धा भी खुब हुआ रहती है। बावजूद उस बार भी प्रमोद दुबे बाजी मार गए और अविभाजित रायपुर जिला युवक कांग्रेस के अध्यक्ष बना दिये गए,जो 1997 से 2000 तक इस पद पर बने रहे।इसके बाद प्रमोद दुबे कई बार पार्षद और रायपुर नगर निगम के मेयर तक कि सफर तय की।
कांग्रेस की राजनीति में प्रमोद दुबे वो शख्सियत हैं,जो हर वर्ग के लोगों को आकर्षित करने की क्षमता रखते हैं।कहा जाता है राजनीति में सफल वही है जिसमें बोलने की कला हो और प्रमोद दुबे में यह गुण कूट-कूट कर भरी है। चाहे हिंदी में भाषण देना हो या फिर ठेठ छत्तीसगढ़ में प्रमोद दुबे के टक्कर का कोई नहीं।राजनीतिक कुशलता भी ऐसा की प्रदेश के भाजपा शासन काल में भी नगर निगम में वह काम कर दिखाया कि लोग आज भी याद करते हैं और सबसे बड़ी जो खासियत रही प्रमोद दुबे के कार्यकाल में भाजपा उनके खिलाफ कोई बड़ा प्रदर्शन नहीं कर सकी।बल्कि उनके अच्छे कार्यप्रणाली का नतीजा था कि विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस को इसका जबरदस्त लाभ मिला और 4 में से 3 विधानसभा में पार्टी प्रत्याशी को जीत हासिल हुई।प्रमोद दुबे को जानने व मनाने वालों का कहना है इन्हें अब तक विधानसभा का सदस्य हो जाना था।अब इंतज़ार 2023 के चुनाव का है क्या पार्टी इस बार इन्हें मौका देती है या नहीं।