क्या पूर्व मंत्री मूणत की टिकट वाकई खतरे में है!अब जो वो कर रहे हैं...राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई तो नहीं?

क्या पूर्व मंत्री मूणत की टिकट वाकई खतरे में है!अब जो वो कर रहे हैं...राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई तो नहीं?

रायपुर(छत्तीसगढ़)। डॉ.रमन की भाजपा सरकार में लगातार 15 वर्षों तक केबिनेट में ही नहीं बल्कि सरकार के महत्वपूर्ण विभागों के ताकतवर मंत्री रहे राजेश मूणत जो स्वतंत्र रूप से अपने विभागों के खुद निर्णय भी लिया करते थे या कहें की सरकार में उनकी तूती बोलती थी,वो अब क्या राजनीतिक ढलान पर आ गया है।

जिस नेता के विरुद्ध विधानसभा चुनावों में डेढ़ दशक तक पार्टी ने अन्य किसी विकल्प पर न ही कभी विचार किया न ही कोई अन्य दावेदार अपना नाम सामने लाने का साहस कर पाया तो क्या वह नेता अब कमजोर हो चुका है,की कई दावेदार अब दो-दो हाथ करने की तैयारी में हैं। भाजपा के तमाम कार्यकर्ता क्या इस बात को अब भांप चुके हैं की मूणत अब वर्तमान राजनीति के पैमाने में फिट नहीं बैठते,तो शायद इसका उत्तर हाँ में होगा।

वे अब जिस तरह से अपनी राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आ रहे हैं,चाहे "नेकी की दीवार" के पुनर्निर्माण की बात हो या फिर हालिया समय में जिस कथित चौपाटी को लेकर अनिश्चित कालीन धरना पर बैठे हैं।एक तरह से लोगों को दिग्भ्रमित कर रही है,क्या वाकई इसके निर्माण से छात्र हित का नुकसान होने वाला है।इसलिए कि इस प्रोजेक्ट का वास्तविक स्वरूप ही लोगों को ठीक से पता नहीं है।चौपाटी शब्द से जरूर इस बात का बोध होता है की जैसे यह ऐसा कोई स्थल बनने जा रहा है कि जहां असामाजिक तत्वों का जमावड़ा रहेगा।इसलिए जानबूझकर कर धरना स्थल के बैनर पोस्टर को चौपाटी शब्द से ज्यादा हाईलाइट भी तो नहीं किया गया है।

एजुकेशनल हब के परिधि में निश्चित तौर पर ऐसा कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए कि जिसकी वजह से वहां का शैक्षणिक वातावरण दूषित हो पर विज्ञान महाविद्यालय के मैदान से लगे मुख्य मार्ग के समीप जिस स्थान पर यह विवादित कर दी गई वास्तविक रूप में बन रहे "युथ हब" के बजाय चौपाटी के नाम पर इसकी चर्चा हो रही है,के निर्माण से पूरे क्षेत्र की सुंदरता तो बढ़ेगी ही साथ में उन तमाम विद्यार्थियों की जरूरतें भी पूरी होंगी जो आज लावारिस की तरह रोड़ पर लगे ढ़ेले और गुमटियों में देर रात तक खड़े नजर आते हैं।इस निर्माण को लेकर लोगों को गुमराह तो किया ही जा रहा है।साथ ही दो विपरीत धर्म से जोड़कर इसे नया रंग देने का प्रयास भी हो रहा है।

ऐसे में निगम प्रशासन की यह जिम्मेदारी होनी चाहिए कि इस पूरे प्रोजेक्ट को लेकर क्या पारदर्शिता बरती जा रही है और इसके निर्माण से विद्यार्थियों को किस तरह का लाभ होने वाला है को विस्तार से बताए।इसलिए कि संभवतः यह प्रदेश में अपने तरह का पहला प्रोजेक्ट है जो स्मार्टसिटी के अंतर्गत राजधानी रायपुर के पश्चिम विधानसभा में छात्र हित को देख कर बनाया जा रहा है।

सत्ता में काबिज किसी भी पार्टी के अच्छे बुरे दोनों तरह की चर्चा लोगों में होती है और कोई भी विपक्षी पार्टी सत्ता की खामियों को लेकर जनता के बीच जाता है।स्वाभाविक तौर पर कांग्रेस सरकार की अच्छाइयां है तो खामियां भी हैं।खास कर शहरी क्षेत्र में तो ऐसे बहुत सारे मुद्दे हैं।जिसके माध्यम से जनता के बीच जाया जा सकता है और सरकार के विरुद्ध एक बड़ा आंदोलन खड़ा किया जा सकता है।परंतु बीते चार वर्षों में मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा के कद्दावर मंत्री के साथ-साथ पश्चिम विधानसभा में 15 वर्षों तक विधायक रहे राजेश मूणत एक भी ऐसा जनहित से जुड़ा मुद्दा नहीं उठा सके जिससे कि आम जनता उनसे सीधा संपर्क में जुड़ सके।

चुनावी वर्ष की शुरुआत में अनायास ही उनकी बेतुका मुद्दे को लेकर सक्रियता समझ से परे है।मूणत का नाम न कभी छात्र राजनीति में लिया जाता है और न ही जमीनी नेता के तौर पर ऐसे में अचानक से छात्र हित से जुड़े मुद्दे को लेकर उनका आंदोलन करना भी लोगों को आश्चर्य कर रहा है।

राजनीतिक गलियारे में इस बात की चर्चा खुब हो रही है कि पूर्व मंत्री राजेश मूणत को क्या वाकई इस बार पश्चिम विधानसभा से टिकट कटने की चिंता सताए जा रही है,जो एक चौपाटी के नाम पर धरना के बहाने तमाम बड़े अपने नेताओं को ला कर बताना चाह रहे हैं कि यहां से अब भी मैं ही दावेदार हूँ।जबकि वास्तविक रूप में आम जनता से उनका जुड़ाव कोसों दूर हो चुका है। बल्कि जो उनके कार्यकर्ता झंडा उठा कर मूणत के नाम का जयकारा लगाया करते थे,जो उन्हें जीत दिलाने कोई कसर नहीं छोडते थे वो अब जनता के करीब नेता के तौर पर पहचाने जाने लगे हैं।ऐसे ही पिछड़े वर्ग से आने वाले भाजपा के युवा नेता आशु चंद्रवंशी अब जनता के हितैषी के तौर पर देखे जा रहे हैं। सुबह से लेकर रात तक जनता के बीच उनके साथ रह कर उनकी मूलभूत समस्याओं के निदान करने से लेकर पारिवारिक समस्याओं को तक सुलझाने लगे हैं।किसी कार्यकर्ता के घर खुशी हो या गम साथ खड़े नजर आने वालों में आशु चंद्रवंशी जैसे नाम याद किया जाने लगा है,तो चुनाव लड़ने का हक भी तो अब इस नई पीढ़ी को मिलना चाहिए।

एक तरह से यह भी चुनाव जीतने का मूलमंत्र ही तो है,जो मूणत आज तक नहीं कर सके। यही वजह है कि अब समय के साथ पश्चिम में भाजपा के दावेदारों की फेहरिस्त बढ़ते जा रही है।मृत्युंजय दुबे,गज्जू साहू से लेकर प्रफुल्ल विश्कर्मा जैसे नाम भी अब दावेदारों में गिनती होने लगी है।