कांग्रेस के मजबूत नेता भूपेश बघेल का पार्टी के चर्चित चेहरा प्रमोद दुबे के साथ इस तस्वीर की केमेस्ट्री क्या कहती है...
रायपुर(छत्तीसगढ़)।आज दिन था राजधानी रायपुर के प्रतिष्ठित पश्चिम विधानसभा में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भेंट मुलाकात के कार्यक्रम का,इस कार्यक्रम को लेकर विपक्ष जहां शुरुआती समय से ही असहज महसूस कर रही है तो कांग्रेस पार्टी के लिए यह खास कार्यक्रम बन गया है। मुख्यमंत्री के लिए तो व्यक्तिगत तौर पर इस कार्यक्रम को उनके सबसे सफलम कार्यक्रम में से एक माना जा रहा है।इसी बीच आज उन्होंने नालंदा परिसर में राजधानी के दूसरे मिलेट कैफ़े का शुभारंभ किया और यह तस्वीर उसी समय का है जब वो अंतर्मन से खुश हो कर पूर्व मेयर,वर्तमान में निगम सभापति के साथ-साथ लोगों के बीच लोकप्रिय चेहरा प्रमोद दुबे को व्यंजन का स्वाद चखाते कैमरा में कैद हो गए,जो सोशल मीडिया में खूब शेयर किया जा रहा है।
जब इस तस्वीर को ली गई होगी तब मैं वहां मौजूद नहीं था पर इस तस्वीर में जो बात केमिस्ट्री की है,उसे बयां जरूर किया जा सकता है।बात केमिस्ट्री की है, जिसे मापा नहीं जा सकता, जिसे तर्क से नहीं समझा जा सकता, जिसका वैज्ञानिक विश्लेषण भी कठिन है।बावजूद साफ समझा जा सकता है कि प्रमोद दुबे मुख्यमंत्री के बेहद करीब हैं।ऐसा लगता है कि उन्हें दुबे में अपार संभावनाएं दिखाई देती हैं।प्रमोद दुबे मुख्यमंत्री के तब के संघर्ष के साथी हैं जब कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर भूपेश बघेल पार्टी को पटरी पर लाने जीतोड़ मेहनत कर रहे थे और तब प्रमोद दुबे साये की तरह उनके साथ खड़े नजर आते थे।मेयर के तौर पर राजधानी में उनके कार्यो की तब समीक्षा हो रही थी,जब प्रदेश में कांग्रेस विपक्ष की भूमिका में थी और बताया जाता है कि तब राजधानी के तीन विधानसभाओं में जब कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई तो खुद भूपेश बघेल को भी इसका अंदाजा नहीं था।
और आज जब भूपेश सरकार के साढ़े चार साल के कार्यकाल को देखते हैं तो भूपेश बघेल की छवि उनकी पार्टी से बड़ी हो गई है। वे कईयों के लिए उम्मीद और आकांक्षाओं के प्रतीक बन गए हैं। भूपेश बघेल अकेले अपने दम व क्षमताओं से पार्टी को एक मशीन के रूप में तब्दील कर दिया है।इस दौर में भी वे जब प्रमोद दुबे जैसे साथी को सार्वजनिक तौर पर दुलारते नजर आते हैं तो यह उनका बड़प्पन है। यही लोग हैं जो उनको इस मुकाम तक पहुंचाने भरपूर साथ दिया और आज बघेल के रहते कांग्रेस का जो एक तरह से भौगोलिक विस्तार हुआ है, वह बेहद अहम बदलाव है।उम्मीद की जा सकती है कि इस तरह के बदलाव कहीं देश में हुए तो कांग्रेस फिर से केन्द्र की सत्ता में होगी।
यह भी की भूपेश बघेल की हैसियत में आज प्रदेश में कोई नहीं है, वे आक्रामक अंदाज़ की राजनीति करते हैं। पार्टी का तंत्र केवल चुनावी मौसम में नजर आता हो, ऐसी बात नहीं है।पार्टी स्थायी तौर पर चुनावी अभियान में जुटी नजर आती है।आज जो नजारा दिखाई दिया और दे रहा है वह 2023 के चुनावी अभियान की ही तैयारी है।भूपेश बघेल इस अभियान के बीच निश्चित तौर पर संभावित प्रत्याशियों की तलाश भी कर रहे हों तो उस माहौल को भी महसूस करने की कोशिश में जुटे हों जो शांत प्रदेश छत्तीसगढ़ में साम्प्रदायिकता के बीज बोई जा रही है।मेरा मानना है बीजेपी हिंदुत्व और राष्ट्रवाद को मिलाकर जिस हिंदु राष्ट्रवाद की बात कर रही है, वह सभी भारतीयों को प्रभावित करे, यह ज़रूरी नहीं है।दुनिया में कहीं ऐसी जगह नहीं है जहां इतनी अधिक विविधता है और एकरूपता लाना मुश्किलों से भरा है। इन सब के बीच ऐसा लगता है 15 साल की अव्यवस्था को सुधारने के लिए भूपेश सरकार को पांच साल से ज़्यादा का वक़्त चाहिए और जिस तरह से भेंट मुलाकात में रुझान दिख रहा है आम लोगों ने उन्हें ज़्यादा वक़्त देने का फ़ैसला ले लिया है।