भूपेश बघेल का प्रियंका गांधी से लगातार घंटों मुलाकात के आखिर राजनैतिक मायने क्या हैं?

भूपेश बघेल का प्रियंका गांधी से लगातार घंटों मुलाकात के आखिर राजनैतिक मायने क्या हैं?

नजरिया

ब्रजेश सतपथी

आज कल कांग्रेस के राजनैतिक गलियारों में इस बात के चर्चे जोरों पर है कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कॉग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी से बढ़ती नजदीकियां कहीं उन्हें केन्द्र की राजनीति में ले जाने की तैयारी तो नहीं! वैसे भी देखा जाए तो वर्षों से छत्तीसगढ़ से कांग्रेस के एक भी नेता का नाम केन्द्र की राजनीति में सक्रिय भूमिका में नहीं आ रहा है,ऐसे में राजनीति में कुशल खिलाड़ी के साथ ही संगठनात्मक रूप से परिपक्व नेता के तौर पर शुमार भूपेश बघेल की उपयोगिता कांग्रेस हाईकमान दिल्ली से देश के पूरे राज्यों में करे तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।इन परिस्थितियों में राज्य में बराबर के कद्दावर नेता व सरकार में कैबिनेट मंत्री जो राहुल गांधी के पसन्द भी हैं टी.एस. सिंहदेव को उनके मनमुताबिक मुख्यमंत्री की कुर्सी ढाई साल के पहले ही मिल जाए तो कोई आश्चर्य न होगा।

छत्तीसगढ़ में कांग्रेस लगातार 15 वर्षों तक सत्ता से दूर रही।साल 2018 के विधान सभा चुनाव में सत्ता में लौटने के बाद कांग्रेस की राजनीति में छत्तीसगढ़ से जो एक चेहरा राष्ट्रीय पटल पर भी नजर आया वो भूपेश बघेल का ही चेहरा है। इसलिए भी कि जब इस चुनाव में कांग्रेस बहुमत में आई तो प्रदेश कांग्रेस की बागडोर भूपेश बघेल के ही हाथों था और मुख्यमंत्री के लिए जब नेता चुना जाना था तो स्वाभाविक रूप से उनका पलड़ा अन्य दावेदारों पर भारी था और देखते-देखते भूपेश बघेल की मुख्यमंत्री के तौर पर 17 दिसंबर को दो वर्ष का कार्यकाल सफलतापूर्वक पूरा होने जा रहा है। इन दो वर्ष के कार्यकाल को छत्तीसगढ़ में लोग किसानों की सरकार के रूप में ज्यादा याद करते हैं। जिनके लिए इस सरकार ने हजारों करोड़ रुपये कर्ज लेने भी कोई परहेज नहीं कि बावजूद वित्तीय स्थिति को लेकर मोदी सरकार के समक्ष रोना नहीं रोया बल्कि अपने हक के हिस्से की रकम को माँगने गुहार लगाते रही।

इन 24 महीनों के कार्यकाल में 8 से 9 माह तो सरकार ने कोरोना काल के रूप में ही बिताए। इस बीच देश ने अन्य हस्तियों के अलावे विभिन्न राजनैतिक पार्टियों ने अपने कई नेता खोया कांग्रेस पार्टी को भी अपने बड़े नेताओं को खोने का नुकसान उठाना पड़ा। इसमें तो कुछ ऐसे नेता शामिल हैं जिसकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती। एक नाम जो शामिल है अहमद पटेल का जो हाल ही के दिनों कांग्रेस में ऐसी रिक्तता छोड़ गए जिसे भर पाना मुश्किल सा प्रश्न है। इस बीच भूपेश बघेल की छवि राष्ट्रीय राजनीति में जिस तरह से पर्दे के पीछे उभरकर आ रही है यह कहीं इस बात की आहट तो नहीं कि वर्षों से छत्तीसगढ़ से केन्द्र की राजनीति में रिक्तता को पूर्ण करने उन्हें दिल्ली की राजनीति में लेने की तैयारी हो रही है।भूपेश बघेल ने जिस तरह से हाल ही में हुए बिहार और मध्यप्रदेश के चुनावों में मोदी सरकार को निशाना बना कर कटघरे में खड़ा किया। उन्हें एक विकल्प के तौर पर देखा जाने लगा।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की हाल ही के दिनों दो बार के दिल्ली के दौरों में गाँधी परिवार की बहुत ही ताकतवर सख्श के साथ-साथ  कांग्रेस में निर्णायक भूमिका में अहम किरदार निभाने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गाँधी से घंटों की मुलाकात के आखिर क्या मायने हैं। यह मुलाकात महज छत्तीसगढ़ की राजनीति को लेकर ही हो नहीं लगता। कांग्रेस की राजनीति में प्रथम पंक्ति के नेता के तौर पर कार्य कर रहीं प्रियंका गाँधी एक मुख्यमंत्री से घंटों की मुलाकात में क्या सिर्फ छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष्य में ही चर्चा की होंगी, कतई नहीं! निश्चित तौर पर राजनीति को करीब से समझने वालों की मानें तो प्रियंका गाँधी भूपेश बघेल को उनकी राजनैतिक कुशलता को देखते हुए दिल्ली की राजनीति में सक्रिय करने का मन बना चुकी हैं। छ.ग. में जिस तरह से दो वर्षों में भूपेश बघेल की कार्य कुशलता ने किसानों पर केन्द्रीत राजनीति को बलवती प्रदान की है, निश्चित तौर पर यह पूरे देश में किसानों के बीच एक नया संदेश गया है और जिस तरह से नए कृषि कानूनों को लेकर पंजाब और हरियाणा समेत विभिन्न राज्यों के किसान लामबंद नजर आ रहे हैं और इन किसान नेताओं के समक्ष हर मौके पर अडिग रहने वाली मोदी सरकार झूकते नजर आ रही है, कहीं न कहीं कांग्रेस पार्टी किसानों से जुड़े मुद्दे को लेकर पूरे देश में एक सकारात्मक भूमिका के तौर पर भविष्य में नजर आएगी और कांग्रेस पार्टी भूपेश बघेल को सामने कर आगे बढ़ेगी।

छत्तीसगढ़ के 90 विधानसभा वाले 70 सीटों पर काबिज कांग्रेस पार्टी प्रदेश में पूरी तरह से मजबूत की स्थिति में है,एक तरह से देखा जाए तो फिलहाल कांग्रेस का यहाँ कोई और विकल्प नजर भी नहीं आता। ऐसे में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की कुशलता का लाभ कांग्रेस पार्टी केन्द्र की राजनीति में अवश्य ही लेना चाहेगी।आगामी वर्षों में उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव जो देश की राजनीति में दिशा और दशा दोनों तय करती है। भूपेश बघेल की इन चुनावों में पूर्णकालिक उपलब्धता निश्चित तौर पर दिल्ली से अचूक रणनीति बनाने कांग्रेस को मजबूती प्रदान करेगी। वैसे भी छ.ग. के गलियारों में इस बात की चर्चा आये दिन होते रहती है कि दो नेताओं के बीच मुख्यमंत्री को लेकर ढाई-ढाई साल का गुप्त समझौता हुआ था और छ.ग. में कांग्रेस की सरकार को दो साल पूरे होने को है। ऐसे में भूपेश बघेल को केन्द्र की राजनीति में प्रियंका गाँधी का बुला लेना कोई बड़ी बात नहीं होगी। वैसे भूपेश बघेल को करीबी से जानने वालों का मानना है कि वे जितने कांग्रेस के प्रति निष्ठावान हैं उतना ही गाँधी परिवार के प्रति। पद की लालसा उन्हें कभी नहीं रही। जिस तरह अहमद पटेल की निष्ठा गाँधी परिवार के प्रति रहने के साथ ही कांग्रेस के साथ भी रही, ठीक उसी तरह भूपेश बघेल भी अपनी छवि को संवारने इसी मूल मंत्र को अपनाते हैं।

ऐसे में सवाल उठता है कि छ.ग. में अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। वैसे तो बाबा के नाम से विख्यात टी.एस. सिंहदेव साल 2018 में कांग्रेस के बहुमत में आने के बाद से ही मुख्यमंत्री के दावेदारों में बराबर के दावेदार थे, परन्तु उस समय एक बड़े भाई की तरह अपना धर्म निभाते हुए मंत्री के तौर पर ही अपने को संतुष्ट कर लिया। परन्तु बदली राजनैतिक परिस्थितियों में उन्हें ही मुख्यमंत्री बनने का मौका मिले कोई आश्चर्य न होगा और वे राहुल गाँधी के पसंद भी बताए जाते हैं। साथ ही जातिगत समीकरण को दृष्टिगत रखा गया तो सरकार में गृह मंत्री के तौर पर कार्य कर रहे ताम्रध्वज साहू को भी यह मौका मिल सकता है। साहू समाज में गहरी पैठ रखने वाले मृदुभाषी, मिलनसार व्यक्तित्व के धनी ताम्रध्वज साहू की गिनती होती है।