योगी सरकार के प्रियंका गांधी को रोकने की रणनीति ने प्रियंका को यूपी की सियासत में शिखर तक पहुंचा दिया
सार्थक न्यूज़ डेस्क।बुधवार देर रात कांग्रेस नेता राहुल गांधी और प्रियंका गांधी लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गए किसानों के परिवार से जैसे ही मिले और पूरी मीडिया में यहाँ की तसवीरें आनी शुरू हुई तो योगी सरकार ने सोचा भी न होगा कि प्रियंका गांधी के इसे लेकर उठे कदम पूरी भाजपा को यूपी से दिल्ली तक हिला कर रख देगी। लखीमपुर में राहुल और प्रियंका के साथ छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, पंजाब के सीएम चरणजीत सिंह चन्नी, कांग्रेस महासचिव रणदीप सूरजेवाला, भूपेंद्र हुड्डा और यूपी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू मौजूद थे।
प्रियंका गांधी ने इस दौरान कहा कि जबतक अजय मिश्रा टेनी भारत सरकार में मंत्री बने हुए हैं तबतक इस मामले की निष्पक्ष जांच कैसे हो सकती है। मृतक किसानों के परिवारों से मिलने के बाद कांग्रेस के नेता स्थानीय पत्रकार रमन कश्यप के परिजनों से भी मिले।लखीमपुर खीरी हिंसा में चार किसानों के अलावा जिन चार अन्य लोगों की मौत हुई है उनमें रमन कश्यप शामिल हैं। इससे पहले सीतापुर में प्रियंका गांधी को 60 घंटे से अधिक समय की हिरासत के बाद रिहा किया गया था और राहुल गांधी को भी लखीमपुर जाने की इजाज़त दी गई।
लखीमपुर खीरी के इस पूरे मामले में प्रियंका गाँधी ने जिस हौंसले और सब्र के साथ सियासत की एक नई इबारत लिख दी हैं उसका अंदाजा भी योगी सरकार को नहीं रहा होगा। इस घटनाक्रम से प्रियंका गांधी ने चुनाव की दहलीज़ पर खड़े यूपी के बाकी विपक्षी दलों को एक तरह से पीछे छोड़ दिया है। राजनीति में अमूमन ऐसा बहुत कम ही होता है, जब विपक्ष के किसी एक नेता की जिद को पूरा करने के लिए सरकार को बैकफुट पर आना पड़े या उसे यू टर्न लेने के लिए मजबूर होना पड़े।लेकिन प्रियंका ने अपनी दादी इंदिरा गांधी के नक्शे कदम पर चलते हुए अपनी बात मनवाने के लिए न सिर्फ सरकार को मजबूर किया बल्कि इस बहाने पार्टी कार्यकर्ताओं में भी नई जान फूंकने की राह आसान बना डाली।
पिछले 3-4 दिनों से मीडिया में मिलते लगातार कवरेज और इसके चलते प्रियंका के बढ़ते हुए कद योगी सरकार को भी इसका अहसास नहीं रहा होगा कि पीड़ित किसान परिवारों से मुलाकात के लिए प्रियंका इस हद तक अड़ जाएंगी कि वो सरकार के लिए इतना बड़ा बवाल बन सकता है। बीजेपी की हर बार की तरह प्रियंका गांधी के इस तरह के कदम को राजनीतिक तमाशा करार देने की भूल ने समूचे भाजपा नेतृत्व को सोचने एक बार मजबूर कर दिया है कि प्रियंका गांधी आगामी चुनाव में उनके लिए एक चुनौती बन चुकी हैं। लगातार तीन दिन तक प्रियंका के इस साहसी अंदाज़ को जिस तरह से देश-दुनिया के मीडिया में कवरेज मिला है,उससे प्रियंका का न सिर्फ राजनीतिक कद बढ़ा, बल्कि वे लोगों के बीच ये छाप छोड़ने में भी काफी हद तक कामयाब रहीं कि विपक्ष में होने का मतलब ही ये है कि लोगों की लड़ाई को सड़क पर उतरकर लड़ा जाये।सबसे बड़ी समानता जो दिखी इस पूरे मामले में दोनों भाई बहन का स्टेंड एक समान था और राहुल- प्रियंका का वक्तव्य में भी एक सुर दिखाई दी।