रायपुर पश्चिम की जनता का जुड़ाव विकास उपाध्याय से भावनात्मक...हर कोई चाहता है वे बार-बार जीतें और अपने बीच रहें।

रायपुर पश्चिम की जनता का जुड़ाव विकास उपाध्याय से भावनात्मक...हर कोई चाहता है वे बार-बार जीतें और अपने बीच रहें।

रायपुर(छत्तीसगढ़)।भारतीय लोकतंत्र का नियम है कि हर पांच साल में चुनाव हो,पर पश्चिम की जनता वर्तमान विधायक विकास उपाध्याय से इस कदर भावनात्मक रूप से जुड़ गई है कि यहाँ के लोग नहीं चाहते यहां कोई चुनाव हो।विकास को वे हमेशा के लिए अपना जनप्रतिनिधि मान चुकी है।यहां की जनता विकास उपाध्याय के व्यवहार,आचरण से इस कदर रम गई है कि उनके सामने किसी को वे प्रतिद्वंद्वी मानने तैयार ही नहीं हैं।इस चुनाव में प्रचार के दौरान जिस तरह के नजारे व उनके प्रति लोगों का जुड़ाव दिखा अद्भुत था।

समय के साथ राजनीति में अब जनप्रतिनिधियों की व्यक्तिगत छवि हावी होते जा रही है।लोगों को क्षेत्र का विकास तो चाहिए पर उससे ज्यादा जरूरी उनका जनप्रतिनिधि व्यवहारिक हो।इतना व्यवहारिक हो की कोई भी व्यक्ति आसानी से उनसे मिल सके।अपनी बात रख सके।अपना गुस्सा दिखा सके और यह सब गुण विकास उपाध्याय में कूट-कूट कर भरी नजर आती है।कोई तो कहे उनका विधायक कभी गुस्सा होता है।कोई तो कहे कि उनसे मिलने कतराता हो।जो पूरे समय इन जनता के बीच अपना समय व्यतीत करता हो।उनके दुख सुख में साथ हो।लोगों से मुस्कुरा कर बात करता हो।कोई बनावटी नहीं बस जनसेवा ही उसका सब कुछ हो,आज कहाँ ऐसे उदाहरण मिलते हैं।

विकास उपाध्याय के कार्यकाल का वह कोरोना काल जब पश्चिम की जनता ने उनको करीब से देखा व पहचाना।पहली बार जब 19 मार्च 2020 को रायपुर के समता कालोनी में कोरोना का पहला केस आया तो राजधानी ही नहीं पूरा प्रदेश दहल गया था।लोगों में डर और भय का वातावरण था।कोई घर से निकलने की हिम्मत तक नहीं कर रहा था।ऐसे में विकास उपाध्याय खुद उस 23 वर्षीय युवती के घर बगैर कोई भय व डर के पहुंच  गए बल्कि एम्स में भर्ती भी कराया और यही समय था जब उन्होंने इस पूरे अवसर को सेवा में बदल दिया।

विकास उपाध्याय ने हजारों लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे कर उन्हें स्वस्थ करवाने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।उन्होंने कोई जात पात नहीं देखा न ही पार्टी।बताया तो यह भी जाता है कि उन्होंने बीजेपी के सैकड़ों को नया जीवनदान दिया।इसमें पश्चिम ही नहीं पूरे चारों विधानसभा के लोग शामिल रहे।विपरीत परिस्थिति में वे लोगों के बीच रहे।उनके दुख में दुख होता।सुख में खुशी।यह समय एक तरह से क्षेत्र में और अस्पताल में बिता।उन्होंने अपना घर छोड़ लोगों के बीच समय गुजारी।

विकास उपाध्याय की इसी मानवता ने ही उन्हें एक जनप्रतिनिधि से जीवन रक्षक बना दिया और आज जब फिर से एक बार उन्हें जनप्रतिनिधि चुनने की पारी आई है तो भला किसी अहंकारी को कैसे चुन सकते हैं।पश्चिम की जनता एक तरह से इस चुनाव में विकास उपाध्याय का कर्ज चुकाने लगी है।चारों तरफ लोग उनके मानवता का परिचय दे रहे हैं।क्या युवा।क्या बुजुर्ग।क्या महिला।क्या गरीब और अमीर सब के सब की इच्छा सिर्फ विकास उपाध्याय बन गया है।वर्तमान परिवेश में इस तहत का वातावरण शायद ही कहीं देखने मिलते होगा।इसे देख लगता है यह चुनाव एक तरह से व्यवहार और अहंकार के बीच हो गया है और अभी से क्षेत्र के लोग जीत की खुशी बांटने लगे हैं।