राजस्थान संकट के हल को लेकर क्या सुप्रीम कोर्ट एक नई इबादत लिखने जा रही है......

राजस्थान संकट के हल को लेकर क्या सुप्रीम कोर्ट एक नई इबादत लिखने जा रही है......

ब्रजेश सतपथी

रायपुर। राजस्थान सरकार में छाई राजनैतिक संकट देश के विभिन्न राज्यों में चल रहे उठा पटक के बीच पहला मामला नहीं है, जब विधायकों ने विधानसभा अध्यक्ष के फैसलों के ख़िलाफ अदालत की शरण ली हो, ये बात और है कि राजस्थान का मामला इस बार पूर्व से कुछ हट कर है। तो क्या सुप्रीम कोर्ट इस बार एक नई इबादत लिखने तो नहीं जा रही है। जिसे भारतीय राजनीति में एक नए नियम के रूप में जाना जाएगा।

राजस्थान विधानसभा के स्पीकर सीपी जोशी के नोटिस को चुनौती देने वाली सचिन पायलट और उनके गुट के विधायकों की याचिका पर राजस्थान हाईकोर्ट ने कल सुनवाई पूरी कर 24 जुलाई को फैसला सुनाये जाने का तिथि तय किया है। इसके पहले जैसे कि कयास लगाया जा रहा था कि यह पूरा मामला जब तक सुप्रीम कोर्ट नहीं जाएगा इसका अंत नहीं होने वाला और आज यही हुआ।

भारत में कई बार ऐसे मौक़े आए हैं, जब विधान सभा अध्यक्षों की भूमिका और उनके अधिकारों को लेकर अदालतों में बहस हुई हैं।सब को याद है, 2011 में कर्नाटक में भी इसी तरह का मामला सामने आया था। तब कर्नाटक विधानसभा अध्यक्ष ने बीजेपी के 11 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी और  मामला हाई कोर्ट पहुँचा। कोर्ट ने तब विधानसभा अध्यक्ष के फैसले पर मुहर लगाई थी और विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने के पक्ष में फैसला आया।

लेकिन जब ये मामला सुप्रीम कोर्ट पहुँचा, तो तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश अल्तमस कबीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने विधायकों की सदस्यता रद्द नहीं करने का फैसला सुना दिया। इसके पहले भी एक विधायक की सदस्यता को लेकर 1992 में मामला कोर्ट तक पहुंचा था।

कई ऐसे मौके आये जब विधान सभा अध्यक्षों की भूमिका और उनके अधिकारों को लेकर अदालतों में बहस हुई हैं उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गोवा में छिड़े राजनीतिक उठा पटक और उनमें विधानसभा अध्यक्ष की भूमिका के कई ताजा उदाहरण देखने मिला है।

इसी तरह राजस्थान सरकार में चल रहा पूरा मामला आज सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के वकील आज सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करने जा रहे हैं। ज्ञात हो कि कल राजस्थान हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई पूरी कर 24 तारीख शुक्रवार को फैसला सुनाये जाने की तिथि तय की है। इसके पाहले ऐसा माना जा रहा था कि अगर पायलट खेमे को हाई कोर्ट से राहत नहीं मिली तो वे सुप्रीम कोर्ट जाने पर विचार कर सकते हैं। इसके पहले आज विधानसभा अध्यक्ष पीसी जोशी खुद ही सुप्रीम कोर्ट का रुख कर लिया है।

इन परिस्थितियों को देखने के बाद सवाल उठता है कि संविधान ऐसी स्थिति पैदा होने पर विधान सभा अध्यक्ष को क्या अधिकार देता है। जिसे जानना बेहद जरूरी है।

सबसे पहले साल 1985 में पास किए गए दल बदल क़ानून का सहारा ले कर कोई भी विधानसभा का अध्यक्ष किसी राजनीतिक संकट के बीच सदस्यता रद्द करने इन परिस्थितियों पर निर्णय ले सकता  है।

1.अगर कोई विधायक ख़ुद ही अपनी पार्टी की सदस्यता छोड़ देता है तब ये स्थिति बनती है।

2.अगर कोई निर्वाचित विधायक पार्टी लाइन के ख़िलाफ जाता है।

3.अगर कोई विधायक पार्टी व्हिप के बावजूद मतदान नहीं करता है।

4.अगर कोई विधायक विधानसभा में अपनी पार्टी के दिशानिर्देशों का उल्लंघन करता है।

तो संविधान की दसवीं अनुसूची में निहित शक्तियों के तहत विधान सभा अध्यक्ष फैसला ले सकता है। लेकिन साल 1991 में सुप्रीम कोर्ट ने 10वीं सूची के सातवें पैराग्राफ जिसमें अंतिम फैसला स्पीकर का हुआ करता था,को अवैध करार दे दिया। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि स्पीकर के फैसले की कानूनी समीक्षा हो सकती है।

परंतु हाल ही में चल रहे राजस्थान के मामले में अब तक विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधायकों की सदस्यता रद्द किए जाने पर कोई फैसला नहीं लिया है। बल्कि पायलट खेमें को  नोटिस भेज कर ये कहा गया है कि आपकी सदस्यता क्यों न खत्म कर दी जाए। इसके खिलाफ सचिन पायलट राजस्थान हाईकोर्ट चले गए थे और उनकी याचिका पर सुनवाई भी हुई और कल पूरी भी हो गई है। देश के टॉप मोस्ट वकील में सुमार साल्वे इसकी पैरवी पायलट खेमा के पक्ष से कर रहे हैं। राजस्थान हाईकोर्ट 24 तारीख को इसकी सुनवाई पर फैसला देगा। इसके पहले मामला आज सुप्रीम कोर्ट पहुँच गया है। अन्य प्रदेशों से कुछ हट कर राजस्थान के मामले तो क्या सुप्रीम कोर्ट एक नई इबादत के साथ नियम बनाने जा रही है या पुराने नियम कानून से ही इसका रास्ता निकालेगी। इस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं।