जिस भारतीय जनता पार्टी ने 2014 में कांग्रेस मुक्त भारत का नारा दिया आज वो कांग्रेस युक्त पार्टी बनते जा रही है
नई दिल्ली। भारतीय राजनीति में एक बार नजर डालें तो यह साफ दिखाई देता है कि बीजेपी का उदय और कांग्रेस का पतन साथ साथ हुआ।खास कर साल 2014 के बाद जो देखने मिल रहा है। उससे तो साफ जाहिर है कि बीजेपी ने बिखरते कांग्रेस के कई नेताओं को अपनी पार्टी में शामिल कर कांग्रेस मुक्त भारत के नारा के बजाय अपनी पार्टी बीजेपी को कांग्रेस युक्त पार्टी का दर्जा दे दिया है।यह भी सत्य है कि कांग्रेस से आये नेताओं को यहां वो सम्मान भी मिला जिस उम्मीद से वे भाजपा में आये थे। नतीजन बीजेपी में आज कई बड़े नेता वे हैं,जो एक समय में कांग्रेस में थे।बल्कि कई राज्य के मुख्यमंत्री भी वही हैं जो कभी कांग्रेस पार्टी का हिस्सा हुआ करते थे। उनमें त्रिपुरा के एक और मुख्यमंत्री डॉ. साहा का नाम भी आज जुड़ गया,जो कांग्रेस में लंबे समय रहने के बाद 2016 में बीजेपी में शामिल हो गए।
देश के पूर्वोत्तर राज्य त्रिपुरा में भारतीय जनता पार्टी ने 69 साल के डॉ. माणिक साहा को आज अपना नया मुख्यमंत्री बना दिया है। डॉ. साहा ने अगरतला के राजभवन में आयोजित एक कार्यक्रम में रविवार, 11.30 बजे राज्य के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली।प्रदेश के बीजेपी नेताओं में डॉ. साहा की छवि काफ़ी अच्छी मानी जाती है। हालांकि डॉ. साहा ने अपने लंबे राजनीतिक जीवन में एक भी बड़ा चुनाव नहीं जीता है। इसी साल मार्च में डॉ. साहा त्रिपुरा की एकमात्र सीट से राज्यसभा के लिए चुने गए थे।पार्टी ने उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में बूथ प्रबंधन कमेटी की ज़िम्मेदारी सौंपी थी। इस दौरान उन्होंने ज़मीनी स्तर पर बीजेपी को मजबूत बनाने के लिए काफ़ी काम किए।
त्रिपुरा में विधानसभा चुनाव से महज 10 महीने पहले शनिवार को बीजेपी ने बिप्लब कुमार देव को मुख्यमंत्री की सीट से हटा कर साहा को नया सीएम बनाने का फ़ैसला लिया।इस परिवर्तन के एक दिन पहले तक किसी को इस बात की खबर भी नहीं थी कि बीजेपी इतना बड़ा निर्णय लेने जा रही है। इसके पहले भी बीजेपी ने उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले जिस तरह मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत को हटा कर पुष्कर सिंह धामी को प्रदेश के मुख्यमंत्री पद की कमान सौंपी थी और चुनाव नतीजे पार्टी पक्ष में आया।राजनीति के जानकारों का यह मानना है कि ठीक वैसा ही प्रयोग त्रिपुरा में किया गया है और इस तरह के प्रयोग का साहस अब सिर्फ बीजेपी ही कर सकती है।इसलिए कि पार्टी में अनुशासन व राष्ट्रीय नेतृत्व दोनों मजबूत है।
त्रिपुरा के नए मुख्यमंत्री माणिक साहा एक पढ़े-लिखे और सज्जन व्यक्ति है।वे काफ़ी सालों से राजनीति में है लेकिन उन्हें चुनाव जीतने का कोई अनुभव नहीं है। आज तक उन्होंने विधायक का चुनाव भी नहीं जीता है। इससे पहले कांग्रेस में रहते हुए 1995 में साहा ने केवल एक बार वार्ड कमिश्नर का चुनाव जीता था। उस समय कांग्रेस सरकार ने अगरतला नगर निगम के चुनाव में जीत हासिल की थी। बावजूद बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व की दाद देनी पड़ेगी उसने बगैर हो हल्ला के डॉ साहा पर भरोसा किया।
बावजूद त्रिपुरा के मुख्यमंत्री के रूप में डॉ. साहा को 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले कई चुनौतियों का सामना करना होगा। सीपीएम और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस की ओर से राज्य में मिल रहीं चुनातियों के अलावा डॉ साहा के सामने राज्य में होने वाली 'राजनीतिक हिंसा' को रोकना भी एक बड़ी चुनौती होगी।चूंकि बीजेपी में गुटबाजी के लिए कोई स्थान नहीं होता, पार्टी के सभी नेता एकजुट हो कर सामने वाले का मुकाबला करते हैं,तो तय माना जा रहा है कि त्रिपुरा में फिर से एक बार बीजेपी की सत्ता में वापसी होगी।