अब हाईकमान की नहीं बल्कि जिसके समर्थन में होंगे ज्यादा विधायक वही होगा अगला मुख्यमंत्री!

अब हाईकमान की नहीं बल्कि जिसके समर्थन में होंगे ज्यादा विधायक वही होगा अगला मुख्यमंत्री!

दिल्ली डेस्क। कांग्रेस नेताओं के शक्ति प्रदर्शनों ने वर्षों से चली आ रही पार्टी हाईकमान की परंपरा और उसकी मर्जी को ही बदल कर रख दिया है। साल 2018 तक जहां पार्टी हाईकमान के मर्जी पर बहुमत वाले राज्यों में मुख्यमंत्री कौन होगा का चयन हुआ करता था।उसके साल डेढ़ साल बीतने के बाद प्रदेश में निर्मित हुई परिस्थितियों ने वह स्थिति उत्पन्न कर रख दी है कि अब कांग्रेस पार्टी में बॉस वही होगा, मुख्यमंत्री वही बनेगा जिसके पास विधायकों की संख्या ज्यादा होगी। इसलिए माना जा रहा है कि आगामी कुछ महीनों में होने वाले विभिन्न राज्यों के विधानसभा चुनावों में मुख्यमंत्री बनने की चाह रखने वाले नेता इसी रणनीति के तहत अपने समर्थकों को टिकट और उन्हें जीत दिलाने अभी से लग गए हैं।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 के तहत 1 नवंबर 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना हुई तो यह देश का 26वां राज्य बन गया। तब छत्तीसगढ़ का निर्माण मध्यप्रदेश के तीन संभाग रायपुर, बिलासपुर एवं बस्तर के 16 जिलों, 96 तहसीलों और 146 विकासखंडों से किया गया था,जो अब बढ़ कर व्यापक संख्या का आकार ले चुकी है।उस समय छत्तीसगढ़ के हिस्से में आये विधानसभाओं में कांग्रेस विधायकों की संख्या बहुमत पर थी तो पहली सरकार भी कांग्रेस की बनी।तब कांग्रेस के 48,भाजपा के 36,बसपा के 3,गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के 1 और निर्दलीय 2 सदस्य थे।

नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य में प्रथम मुख्यमंत्री कौन होगा को लेकर सबकी निगाहें पार्टी हाईकमान पर टिकी थीं और कांग्रेस के दिग्गज वीसी शुक्ल के साथ लगभग सभी विधायकों का समर्थन होने के बाद भी उन्हें मुख्यमंत्री न बना कर इसके लिए हाईकमान ने अजित जोगी के नाम को आगे कर दिया।बताया जाता है कि तब उनके साथ एकमात्र विधायक मनोज मंडावी ही थे और जोगी प्रथम मुख्यमंत्री बन गए।यह राजनीति का वह दौर था जब पार्टी हाईकमान के एक लाइन का प्रस्ताव सभी विधायकों के लिए आदेश हुआ करता था।परंतु समय के साथ हाईकमान की भूमिका और उसकी ताकत में बदलाव आया है।

पिछले एक दशक में कांग्रेस पार्टी की स्थिति पूरे देश में कमजोर होते चली गई।जहां कांग्रेस की सरकारें कई प्रदेशों में हुआ करती थी,तो अब वह सिमट कर मात्र 3 राज्यों में ही इसकी सरकारें हैं।देश भर में कांग्रेस की स्थिति कमजोर होने के साथ ही केंद्रीय नेतृत्व भी कमजोर होते गया और जहां कभी पार्टी सुप्रीमो सोनिया गांधी के एक इशारे पर सब कुछ बदल जाया करती थी,उसी हाईकमान को अब राज्य स्तर के नेता कभी भी धमका के आ जा रहे हैं।अब वह समय गया जब हाईकमान का एक लाइन का प्रस्ताव आदेश हुआ करता था।अब समय वह है कि किस राज्य में किस नेता के साथ विधायकों की संख्या ज्यादा है।उसी के अनुरूप हाईकमान निर्णय लेती है।

साल 2018 में जब तीन राज्य राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी को बहुमत मिली तो,हाईकमान की इच्छा के अनुरूप मुख्यमंत्रियों का चयन हुआ और तीनों राज्यों में वहां के पार्टी अध्यक्षों को मुख्यमंत्री बनाया गया।पर पंजाब में जब मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह को हटाया गया तो कहा गया।विधायकों का संख्या बल उनके विरुद्ध है।राजस्थान और छत्तीसगढ़ में जब विवाद हुआ और नेतृत्व परिवर्तन की बात उठी तो भी संख्या बल को ही आधार माना गया।ऐसे में अब आसन्न चुनावों में दिग्गज नेताओं की रणनीति यही होगी कि मुख्यमंत्री बनना है तो उनके साथ विधायकों का संख्या बल ज्यादा होना चाहिए।