जिन अनुभवी नेताओं को पार्टी ने सब कुछ दिया वही अब पद लालसा में कांग्रेस की युवा पीढ़ी को बर्बाद करने तुले हैं...
नई दिल्ली।आज से पंद्रह-बीस साल पहले यदि सोनिया गांधी दिल्ली से एक फ़ोन भी कर देतीं तो राज्य में बिना किसी विरोध के नेतृत्व में बदलाव हो जाया करता था। लेकिन आज स्थिति ये हो गई है कि कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता गांधी परिवार को अपनी ताक़त दिखाकर डराने लगे हैं और तब जब कांग्रेस का कमान खुद गांधी परिवार के हाथों में है।कल्पना करिए जब यही कमान गांधी परिवार से इतर किसी के हाथ में गया जैसा कि संभावना बन रही है,तो इतनी पुरानी पार्टी कांग्रेस का क्या हश्र होने वाला है।
पद और कुर्सी पर रहते हुए किसी नेता का गांधी परिवार और पार्टी के प्रति बार-बार वफादारी दिखाना और बात है, पर वही व्यक्ति अपनी कुर्सी छीनते देख कितना बदल जाता है और कुर्सी में बने रहने के लिए बगावती तेवर ही नहीं पार्टी का नुकसान करने भी तूल जाता है।इस तरह के प्रसंग पिछले 2 सालों से हम देखते आ रहे हैं।यह बात राहुल गांधी को अच्छी तरह से मालूम है कि जब भी केंद्र कमज़ोर होता है तब क्षत्रप सिर उठाने लगते हैं। कांग्रेस में केंद्रीय नेतृत्व कमज़ोर हो गया है, हाई कमान कमज़ोर हो गया है।इसीलिए उसी को मजबूत करने जब राहुल गांधी जनमानस के बीच निकल पड़े हैं तो उन्हीं के लोग उन्हें कमजोर करने अपने राज्य में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
कांग्रेस की कमजोर होती परिस्थितियों को समझने के लिए ज्यादा दूर नहीं अपने मोहल्ले का ही उदाहरण ले लीजिए।जहां कोई परिवार है जो आये दिन लड़ाई झगड़ा में लगे रहता है।इससे पूरा मोहल्ला परेशान रहता है।किसी को इसकी खबर न हो तो पड़ोसी जा कर बोल देता है,अरे उसके घर तो रोज का महाभारत है।इसका असर ये होता है कि लोग उस परिवार से दूरी बना लेते हैं या उस परिवार के लोगों से किसी तरह का ज्यादा संबंध नहीं रखते।ठीक उसी तरह कांग्रेस के बीच अंतर्कलह किसी और राज्य में होता है,पर देखता और सुनता पूरा देश है। इसलिए कि ऐसी समाचार को कवर करने खास कर मीडिया विशेष रूप से मौके पर मौजूद रहती है और स्वाभाविक रूप से जनमानस के जेहन में यही बात आती है कि अरे इस पार्टी के लोग तो आपस में ही लड़ते रहते हैं।ये भला जनता की क्या करेंगे।
ताजा उदाहरण राजस्थान का है जहां कांग्रेस की सरकार है और नेतृत्व परिवर्तन के चयन के बीच पार्टी में अंतर्कलह चरम पर है। कांग्रेस आलाकमान जिस शख्स के बारे में यह समझता है कि वह पार्टी का अध्यक्ष बनने लायक है वही शीर्ष नेतृत्व की बात नहीं सुन रहा है। कांग्रेस के लिए इससे बड़ी त्रासदी क्या होगी? इससे पार्टी में सोनिया गांधी के वर्चस्व पर भी सवाल पैदा होता है।
गौरतलब हो कि राहुल गांधी ने 2019 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद अध्यक्ष पद छोड़ दिया था। तब से ही कांग्रेस अध्यक्ष का पद खाली है और सोनिया गांधी अंतरिम अध्यक्ष हैं।इस बीच कई प्रस्ताव पास हुए।बार-बार राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभालने देश भर के कांग्रेस नेताओं, कार्यकर्ताओं ने आवाज बुलंद की परंतु राहुल गांधी अपनी बात पर अडिग रहे।निश्चित तौर पर उनका यह निर्णय दूरगामी परिणाम दे सकता है।राहुल गांधी की सोच कांग्रेस पार्टी का ही चीफ नहीं बल्कि देश का नेता बनने की सोच है और उदयपुर में तय हुआ कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए वे भारत जोड़ो यात्रा पर निकल पड़े हैं।इस यात्रा से राहुल गांधी की व्यक्तिगत छबि में भी अभूतपूर्व उछाल आया है। अपेक्षा से कहीं अधिक लोग इस यात्रा से जुड़ रहे हैं।
इस बीच कांग्रेस को नए अध्यक्ष के चुनाव पर भी ध्यान देना था, मगर उससे पहले पार्टी दूसरी ही उलझन में फँस गई है।जिस व्यक्ति को कांग्रेस आलाकमान ने विश्वास किया वही शंका के दायरे में आ गया है और पूरी पार्टी की किरकिरी हो रही है।ऐसा भी नहीं कि गहलोत को पार्टी से कुछ मिला नहीं है। उनको पार्टी ने अब तक वह सब कुछ दिया जो सब को नसीब में नहीं होता।बावजूद अब भी पद की लालसा खाये जा रही है।उनके इस कृत्य से उनका तो कुछ बिगड़ने वाला नहीं है पर जो कांग्रेस के युवा नेता मेहनत कर अभी-अभी पटरी पर उतरे हैं और मानव सेवा को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं।उनकी उड़ान का क्या होगा।एक सोचनीय विषय है!