सच की बुनियाद पर राजनीति करने वाले टीएस सिंहदेव भले ही मुख्यमंत्री न बन सके पर इस चेहरे की दमक कभी फीकी नहीं हुई...

सच की बुनियाद पर राजनीति करने वाले टीएस सिंहदेव भले ही मुख्यमंत्री न बन सके पर इस चेहरे की दमक कभी फीकी नहीं हुई...

दिल्ली डेस्क। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और सरकार में कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच मदभेद को लेकर जनमानस के बीच लगातार चर्चा होते रही है से इनकार नहीं किया जा सकता और वजह भी यही है कि इन दोनों कद्दावर नेताओं की खबरों को मीडिया भी बराबर का तवोज्जो देते रही है। इसके पूर्व छत्तीसगढ़ की राजनीति में इन दोनों नेताओं की खबरें तब चर्चा में आया था जब प्रदेश के दो अलग-अलग छोर से जनसंपर्क का दौरा कार्यक्रम की शुरुआत हुई थी। एक सरगुजा तो दूसरे की बस्तर क्षेत्र से। उसके बाद काफी अंतराल के बाद आज एक संयोग ऐसा भी बना की ये दोनों दिग्गज जनसंपर्क के उसी प्रसंग पर साथ नजर आए और उनके साथ वाली तस्वीरें सोशल मीडिया में तैरने लगीं और आज की सुर्खियां बन गई।

यह देख कांग्रेस के वे कार्यकर्ता जो पार्टी को मजबूती की शिखर पर लगातार बना रहे देखना चाहते हैं के बीच जबरदस्त उत्साह है और अतीत के जय-बीरू की उस जोड़ी को याद कर सपने संजोने लगे हैं की “अब की बार फिर से कांग्रेस की सरकार।“ पर क्या वाकई ये दोस्ती की नई शुरुआत है?

प्रदेश में लगातार 15 वर्षों तक सत्ता से दूर रही कांग्रेस की सत्ता में वापसी के एक साल पूरे होते ही मदभेद की सुगबुगाहट तब शुरू हो गई थी जब विधायकों का एक समूह अनायास ही एक पक्षीय झुकाव की ओर बढ़ने लगा। देखते-देखते दबी जुबान पर इस बात की चर्चा होने लगी कि यहां ढाई-ढाई साल का कोई मसला है और ढाई साल आते तक यह विवाद इस कदर बढ़ गया कि पूरा देश जान गया छत्तीसगढ़ में सब कुछ ठीक नहीं है। हालांकि समय के साथ यह शांत भी हो गया पर कहीं न कहीं यह अंदर ही अंदर सुलगते भी रहा और इसका सच क्या है अब भी भविष्य के गर्भ में दफन है!

इसके बाद हर उस घटना को इस मसले से जोड़ा जाने लगा खास कर सिंहदेव को लेकर जनमानस में एक जिज्ञासा सा होने लगा की वे क्या करने वाले हैं। उन्होंने जब पंचायत मंत्री के रूप में अपना इस्तीफा देते हुए चार पन्नों में विस्तार से अपना पक्ष रखा तब भी इसी मदभेद से इसे जोड़ा जाने लगा।उन्होंने तब यह भी कहा था कि उनके ही विभाग में उन्हें विश्वास में लिए बगैर निर्णय हो जाते हैं। इसके बाद 62 विधायकों ने हस्ताक्षर कर सिंहदेव पर कार्यवाही की मांग भी की। कांग्रेस का एक धड़ा चाहता था कि टीएस को जोगी की तरह कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए।

ऊंचे कदकाठी के टीएस सिंहदेव की ऐसी पहचान, ऐसा व्यक्तित्व की हजारों की भीड़ में भी दूर से कोई सहज ही पहचान लेता है और बोल पड़ता है वो देखो बाबा साहब वहां पर हैं..। सच की बुनियाद पर राजनीति करने वाले सरल, सौम्य और गहरे संकोची स्वभाव के टीएस सिंहदेव के किसी भी निर्णय में आप कभी नहीं पाएंगे कि उनके भीतर कोई अतिरिक्त महत्वाकांक्षा भी है और जब बात दोस्ती, रिश्तों और व्यवहार की हो तो फिर दूसरी तमाम चीजें वैसे भी उनके लिए पीछे रह जाती हैं। मुख्यमंत्री का पद भी उनके लिए कोई मायने नहीं रखता। यही वजह है कि जब सरकार के ढाई साल बाद नेतृत्व परिवर्तन के प्रसंग की बात चली तो बाबा को जानने वाले उन लाखों लोगों को लगने लगा कि इसमें कोई न कोई सच्चाई जरूर है।

हालांकि पार्टी हाईकमान ने अंत तक इस बात का कभी पटाखेप नहीं किया कि वह सच क्या है! और इसके बाद टीएस पार्टी के अन्दर ही एक के बाद एक न जाने कितने अपमान का घूंट पीते रहे। बावजूद उनके व्यवहार व उठाये गए किसी राजनीतिक कदम से इस बात की बू कभी नहीं आई कि वे बगावत के पक्षधर हैं।बल्कि कांग्रेस की मजबूती के लिए विपरीत परिस्थितियों में भी वे काम करते रहे और उनका यही विनम्र स्वभाव का होना शायद आज के परिवेश की राजनीति में फिट नहीं बैठता। नतीजन पार्टी हाईकमान ने भी इन पौने चार साल में एक बार भी उनकी सुध लेना जरूरी नहीं समझा। बावजूद वे जनमानस और सबके पसंद बने हुए हैं।

देखा गया है की टीएस सिंहदेव तथ्यों के साथ बात रखने के आदी हैं और वे मानते हैं इसके लिए तीखे और कड़वे शब्दों का उपयोग बिल्कुल ज़रूरी नहीं है।कम से कम व्यक्तिगत स्तर पर तो हमला बोलने से बचना ही चाहिए के पक्षधर हैं। बाबा साहब का तथ्य के साथ बात रखने की आदत के कारण ही उनके कई सवालों के जवाब मिल नहीं पाते बल्कि उनके सवालों में ही जवाब छिपा होता है। जिसे प्रदेश की जनता स्वतः ही संज्ञान में ले लेती है और उसका मूल्यांक भी खुद करती है।

दंतेवाड़ा भ्रमण के दौरान वहां के तत्कालीन कलेक्टर, एसपी का टीएस से न मिलना राजनीतिक व प्रशासनिक दोनों दृष्टि से बड़ी घटना थी। परंतु बाबा ने जब इस बात को, अपनी उस पीड़ा को मीडिया के समक्ष रखी तो उनके पक्ष रखने की विनम्र तरीके ने जितना उन नौकरशाहों को ठेस पहुंचाई होगी उतना ही जनमानस में सिंहदेव के इस व्यवहार ने वह जगह बना ली कि शायद कोई और नहीं जो बाबा का स्थान ले सके। इसी वजह से काफी अर्से बाद जब वे मुख्यमंत्री के साथ कवर्धा के दौरे पर थे तो चर्चा होने लाजमी था।