अजीत जोगी की यादें ! 29 अप्रेल जन्मदिवस स्मरण प्रख्यात कानून विद्द कनक तिवारी की कलम से...

अजीत जोगी की यादें !  29 अप्रेल जन्मदिवस स्मरण प्रख्यात कानून विद्द कनक तिवारी की कलम से...

मेरे लिए अजीत जोगी से निजी संबंध ज़्यादा महत्वपूर्ण रहा है। उनके बड़े भाई सत्यरंजन छात्र जीवन से मेरे दोस्त रहे। अजीत से परिचय बाद में हुआ। उनके इजलास में  रायपुर कलेक्टर रहते विद्याचरण शुक्ल के चुनाव पात्रता संबंधी मामले में ग्वालियर के वरिष्ठ वकील पुत्तूलाल दुबे का मैं सहयोगी था। जोगी और मैं एक साथ मध्यप्रदेश कांग्रेस कमेटी के महासचिव रहे। मैं मजा़क में कहता मेरा किरदार दिलीप कुमार जैसा ट्रैजिक है। तुम राजनीति के राजकपूर हो। खुद फिल्म बनाते, निर्देशन करते, हीरो बनते हो। संगीत, एक्शन और थ्रिल भी समझते हो। जड़, जमीन, जंगल से जुड़े रहकर भी आसमानी ऊंचाई तक सियासी पायलट बनकर उड़ना भी चाहते हो। मुस्कराहट अजीत जोगी के हाव भाव की मुख्य किरदार थी। 

कांग्रेसी राजनीति में विरोधी खेमों में होने पर भी हमारा इकतारा छत्तीसगढ़ी अस्मिता को लेकर बजता रहता। मुख्यमंत्री बनने पर जोगी से मैंने जानबूझकर संपर्क नहीं रखा। पहली बार छत्तीसगढ़ के छात्र रहे मोहम्मद हिदायतुल्ला की याद में विधि विश्वविद्यालय खोलने पत्र लिखा था। हिदायतुल्ला नेशनल लाॅ यूनिवर्सिटी बनने का मामला पका, तो जोगी ने मुझे खुश होकर फोन किया। मैं अखबारों में उनके बारे में पक्ष या विपक्ष में लिखता, तो जोगी मेरी नीयत को ताड़ कर उलाहना या प्रशंसा का टेलीफोन ज़रूर करते। 

एक बार उनके परिवार के साथ भोजन करते वक्त मैंने पूछा छत्तीसगढ़ में कौन है, जो तुम्हें डांट सकता है। जोगी ने ठहाका लगाते हुए देखा और कहा ‘कनक तिवारी।‘ उनके साले रत्नेश सोलोमन को कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ने से राजनीतिक गुरु अर्जुन सिंह ने निष्कासित कर दिया। मैं कार्यवाहक अध्यक्ष अरविन्द नेताम के साथ महामंत्री बना। मैंने अर्जुन सिंह की नाराज़गी की परवाह किए बिना रत्नेश को कांग्रेस में शामिल करा लिया। जोगी ने मुझे बाकायदा पत्र लिखा ‘आपने हमारे परिवार पर उपकार किया है।‘ मैंने मुख्यमंत्री जोगी को लिखा था कि माधवराव सप्रे की पत्रिका ‘छत्तीसगढ़ मित्र‘ को छत्तीसगढ़ शासन का मुख पत्र ऐतिहासिक और भौगोलिक कारणों से बनाना चाहिए। वैसे भी यह नाम जोगी के चुनाव क्षेत्र पेंड्रा में ही उन्नीसवीं सदी के अंत में सप्रेजी ने दिया था। जोगी ने बाकायदा 15 प्रस्तावित नामों का सम्पादक मंडल बनते मुझे मुख्य संपादक बनाते लिखित प्रस्ताव अपने सचिव सुनील कुमार के जरिए मेरे बिलासपुर जाते, टाटीबंद के तिराहे पर भेजा था। निजी कारणों से वह प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर पाया। 

मैंने अपने छोटे भाई को राजनांदगांव का सरकारी वकील बनाने अनुरोध जोगी से किया था। वह पहले से अविभाजित मध्यप्रदेश में शासकीय अधिवक्ता था। विधि मंत्री और राजनांदगांव जिले के प्रभारी मंत्री रवीन्द्र चौबे की इच्छा नहीं थी। कुछ दिन बाद मैंने जोगी को कहा उनके आदेश का पालन नहीं हुआ है। मुख्यमंत्री ने अपनी नोटशीट पर सीधी नियुक्ति कर दी और राजनांदगांव कलेक्टर को तत्काल सूचना दे दी। जब भी ऐसा कुछ हुआ अजीत जोगी ने हर वक्त कहा आप यदि काम बताएंगे तो मैं इन्कार नहीं करूंगा। आप मेरा मान रख लेते हैं। 

नेताम के कार्यवाहक अध्यक्ष और मेरे महामंत्री बनने के बाद अर्जुन सिंह गुट के धाकड़ नेताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी से विरोध जताने जोगी के बंगले 44, अशोका रोड, नई दिल्ली में बैठक बुलाई। जोगी ने मुझे टेलीफोन कर इस बात की जानकारी दी। हम दोनों की सहमति से मैं नेताम के साथ सीधे उनके बंगले पहुंच गया। आपसी बहस मुबाहिसे के बाद हमारे विरोध का पूरा मामला ही ठंडा पड़ गया। अजीत जोगी ने यह भी चाहा था मैं अमित को विधि स्नातक होने के बाद अपने जूनियर के रूप में रखूं। अमित मेरे पास आया भी। मैंने जोगी को फोन किया कि अमित किसी भी हालत में वकालत के तालाब का तैराक नहीं है। उसे तो राजनीति की नदी में तैरते हुए समुद्र में कूदने का मन होगा। इसलिए अपने पुत्र के भाग्य पर पिता का कोष्ठक नहीं लगाओ। जोगी ने मान लिया। मुझ पर भरोसा करते उन्होंने कुछ मुकदमों में मेरी सलाह को तरजीह भी दी। मैंने उनकी सदैव मदद की। 

मेरे घर जब भी मांगलिक या विषाद का कार्य हुआ, अजीत जोगी की हाजिरी सुनिश्चित होती रही। रिश्तों का जो निर्वाह कर ले, वही मनुष्य है। छत्तीसगढ़ के राजनेताओं में अजीत जोगी सबसे प्रतिभाशाली, जनसरोकारों के लिए प्रतिबद्ध, विवादग्रस्त, महत्वाकांक्षी, आत्ममुग्ध और कई बार गलत लोगों पर भरोसा करने के कारण अपना राजनीतिक करियर और भविष्य संदिग्ध कर सके। 

मैं मजा़क में कहता तुमने शेक्सपियर के अमर चरित्र ‘हैमलेट‘‘ गढ़ा है? यह करूं या न करूं के चक्कर में इतनी गफलत कर गया कि बेचारे का अंत हो गया। मेरा तीखा इशारा समझकर भी जोगी मुस्करा भर दिए। राज्यपाल दिनेशनंदन सहाय के सामने एक बार झल्लाकर मैंने जोगी से कहा था कि संस्थापक मुख्यमंत्री के रूप में इतिहास रच सकते हो, लेकिन देख रहा हूं सरकार तुममें तानाशाही बढ़ जाने के लक्षणों के कारण रेल की पटरी से गिर रही है। इतिहास गढ़ सकते थे, लेकिन इतिहास से टकरा रहे हो। इतनी कड़ी बात सुनकर भी जोगी ने केवल इतना कहा मैं कहां मैं इतिहास में कहां याद रखा जाने वाला हूं। राज्यपाल मुझसे अपरिचित थे। उन्होंने फुसफुसाकर पूछा यह कौन सज्जन हैं जो इतनी कड़ी बात कह रहे हैं। जोगी ने पलटकर जवाब दिया ये मेरा भला ही चाहते हैं। 

जोगी के साथ कुदरत ने अत्याचार ही किया। भयानक चोट के बावजूद केवल अजीत जोगी का हौसला था जो इतने साल जिए और पूरी तौर पर स्वस्थ व्यक्ति की तरह सक्रिय रहे। मुझे जब हार्ट अटैक हुआ। तब मैंने आमिर खान की फिल्म ‘थ्री इडियट्स‘ के वाक्य ‘आल इज़ वेल‘ खुद को कहते यह भी याद किया था कि जब जोगी ने इतना कुछ सह लिया तो मैं क्यों इस हार्ट अटैक के कारण मर जाऊं। यह बात मैंने बाद में उन्हें बताई थी। अजीत में अगर बहुत सी बुराइयां नहीं होतीं, जो वैसे हर इंसान में होती हैं, तो उनके पास प्रदेश को आगे ले जाने की बहुत पूंजी थी। वह ठीक से खर्च नहीं हो पाई। वह राजनीति के बियाबान में बिखर गई। मुख्यधारा में नहीं रह पाई वरना मुख्य ही बने रहने की उनमें कूबत थी।

टिप-:यह प्रख्यात कानून विद्द और उच्च विचारक कनक तिवारी जी द्वारा उनके फेस बुक पर लिखी गई लेख पर आधारित है।