कांग्रेस अपने पार्टी के अंदर छुपे प्रशांत किशोरों को जिस दिन पहचान लेगी किसी और किशोर की जरूरत नहीं पड़ेगी...

कांग्रेस अपने पार्टी के अंदर छुपे प्रशांत किशोरों को जिस दिन पहचान लेगी किसी और किशोर की जरूरत नहीं पड़ेगी...

रायपुर डेस्क। देश में कांग्रेस की लगातार गिरती हालत को लेकर दिल्ली में मौजूद पार्टी के शीर्ष नेता लगातार इस उधेड़बुन में लगे हैं कि पार्टी को फिर से एक बार पटरी पर कैसे लाया जाए।इस कड़ी में एक कदम आगे बढ़ाते हुए कांग्रेस ने चुनाव रणनीतिकार के तौर पर जाने जाने वाले प्रशांत किशोर की सेवाएं तक लेने तैयार हो गई।  हालांकि सप्ताह भर चले इस घटनाक्रम पर कल तब विराम लग गया, जब उन्होंने खुद हो कर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से मना कर दिया। तो अब सवाल उठता है।प्रशांत किशोर के हां कहने या उनके कांग्रेस में शामिल हो जाने से क्या कांग्रेस में वाकई जान आ जाती।क्या सब कुछ ठीक हो जाता,जिसकी उम्मीद की जा रही थी।

एक बारकी इसका उत्तर हां भी होता तो,पीके को भी पहले वही करना पड़ता जो कांग्रेस के नेता खुद कर सकते हैं और वह पार्टी के संगठतनात्मक ढांचे को मजबूत करने की प्राथमिकता होती।जो हो सकता है पर कर नहीं रहे हैं। ऐसा भी नहीं कि कांग्रेस इतना भी कमजोर हो गई है कि उसे किसी बैसाखी की जरूरत पड़े।बल्कि मेरा मानना तो ये है कि कांग्रेस पार्टी के अंदर ही प्रशांत किशोरों की भरमार है। दिल्ली में बैठे कांग्रेस वो नेता जो नेतृत्व के करीब हैं,एक बार इनको पहचानने की कोशिश तो करे!!  पर इस बहाने ही सही पार्टी के अंदर एक सक्रियता तो आ गई थी,उसे कांग्रेस अब भूलने की गलती ना करे यही बेहतर होगा।

पिछले कुछ दिनों से कांग्रेस पार्टी की चर्चा सिर्फ इस बात को लेकर सुर्खियों में हो रही थी कि प्रशांत किशोर की एंट्री कांग्रेस में हो रही है या नहीं। उनके द्वारा कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के समक्ष दी गई प्रस्तुति की चर्चा इस बात को लेकर तर्कवितर्क का विषय बने रहा कि आखिर पीके ने क्या सुझाव दिए और अंतिम फैसला क्या होने जा रहा है। जो कल मंगलवार को उनके कांग्रेस पार्टी में विधिवत प्रवेश करने इनकार करने के बाद थम तो गया,पर  इस मुहिम को लेकर जो आस जागी थी और पार्टी में अनायास ही एक सक्रियता आ गई थी,उसे कांग्रेस भूलने की अब गलती ना करे,यही बेहतर होगा। मेरा तो शुरू से मानना रहा है की कांग्रेस पार्टी के अंदर ही ऐसे किशोरों की कोई कमी नहीं,जो आधुनिक सोच के साथ बहुत कुछ नया करने की क्षमता रखते हैं। पार्टी नेतृत्व ऐसे प्रतिभाओं को एक बार पहचानने की कोशिश तो करे। भले ही इन किशोरों में राष्ट्रीय स्तर पर एक साथ रणनीति बनाने की क्षमता न हो पर विभिन्न राज्यों की स्थिति को मजबूत कर उन रास्तों से होते हुए दिल्ली का मार्ग प्रसस्त कर सकने की हौसला तो है उनमें। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में भी ऐसे प्रतिभाओं की कोई कमी नहीं है।जो अपने खुद की रणनीति व छबि के दम पर लोगों के बीच  उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ में हुये पिछले विधानसभा चुनाव 2018 में मिली कांग्रेस को अभूतपूर्व जीत के लिए पार्टी द्वारा जारी वचन पत्र को मुख्य वजह माना जाता है। जबकि मुख्य वजह यह थी कि 15 वर्षों से लगातार भाजपा की सरकार से जनता ऊब चुकी थी। भाजपा के कार्यकर्ताओं की उनके ही नेताओं द्वारा उपेक्षा किया जाने लगा था और कांग्रेस के नेता जिस तरह से डॉ रमन सिंह व उनकी सरकार पर एक के बाद एक भ्रष्टाचार के आरोप लगा कर मुद्दा बना रहे थे,उससे जनता की सोच रमन सरकार के प्रति पूरी तरह से नकारात्मक होते चली गई। जिसका सीधा लाभ कांग्रेस पार्टी को मिला। यहां गौर करने वाली बात है, लाभ पार्टी को मिला। उसके चुनाव चिन्ह पंजा छाप को मिला न कि प्रत्याशी के चेहरे को।यह भी की कुछ चेहरे इसमें ऐसे भी थे जो अपने चेहरे के दम पर जीते, पर इस आंधी में भाजपा के प्रत्याशी बुरी तरह से परास्त हो गए। इस चुनाव में कांग्रेस के 90% नए चेहरे थे। परंतु जनता चेहरे को नहीं पार्टी के छाप को देख कर वोट करि और इस सुनामी में अधिकांश कांग्रेस के प्रत्याशी उनकी कल्पना के विपरीत इतने अंतर से जीत गए कि उन्हें भी लगने लगा वोट उनके चेहरे को देख कर मिला है,जो उनकी खुद की उपलब्धि है और यही लोग आज सर्वे में आई रिपोर्ट में जनता से दूर की गिनती में हैं।

कांग्रेस पार्टी के अंदर उन चेहरों की बात करें जो हाईकमान की नजर में ठीक से कभी आया ही नहीं।जबकि पार्टी में मौजूद कुछ चेहरे किसी प्रशांत किशोर से कम नहीं। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ की बात करें।छत्तीसगढ़ की बात और उदाहरण इसलिए भी बार-बार करना पड़ रहा है। क्योंकि कांग्रेस का सबसे ज्यादा बहुमत का आंकड़ा 90 में 71 सीट अकेले कांग्रेस का इसी राज्य में है।यहाँ कुछ युवा चेहरे ऐसे भी थे जो पिछला चुनाव इसलिए नहीं जीते की उन पर कांग्रेस के आंधी का असर था। बल्कि इसलिए जीते की वे प्रशांत किशोर की तरह पिछले पांच सालों से एक रणनीति के तहत काम कर रहे थे।

आम मतदाता से सतत संपर्क में थे।बूथ स्तर तक कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को मजबूत करने योग्य व निष्ठावान लोगों को चयन करने लगे हुए थे। वे इस बात का सर्वे कर काम कर रहे थे कि भाजपा ने 15 वर्षों में ऐसा क्या नहीं किया कि उसे वे जनता के लिए कर इस बात की गारंटी दे सकते थे कि उनके जीतने के बाद वे ये करके रहेंगे। उनको कांग्रेस के लिए काम कर रहे वर्करों की चिंता थी। उनके सुख दुख में सरीक होना। उनकी जरूरतों को पूरा कर आगे बढ़ने मजबूती दे रहा था। उनकी एक टीम थी जो अलग-अलग चीजों को बेहतर करने काम कर रही थी और आज सर्वे में देख मिलान कर लीजिए जो जीत की स्थिति में हैं। जिनका रिपोर्ट कार्ड अच्छा है ये वही हैं जो पीके के सिद्धान्त पर अभी नहीं शुरू से काम करते आ रहे हैं।