भूपेश बघेल ने राहुल गांधी के भरोसा को प्रदेश अध्यक्ष रहते से मुख्यमंत्री के सफर तक कभी टूटने नही दिया और छत्तीसगढ़ में उस कांग्रेस की रचना की जहाँ गुटबाजी के लिए कोई जगह नही

भूपेश बघेल ने राहुल गांधी के भरोसा को प्रदेश अध्यक्ष रहते से मुख्यमंत्री के सफर तक कभी टूटने नही दिया और छत्तीसगढ़ में उस कांग्रेस की रचना की जहाँ गुटबाजी के लिए कोई जगह नही

रायपुर। राजनैतिक पार्टियों के नेताओं में जिस प्रदेश में भी गुटबाजी के साथ-साथ कार्यकर्ता यदि अलग-अलग नेताओं के खेमें में बंटे नजर आते हैं, तो इसका खामियाजा देर सबेरे पार्टी को ही भुगतान पड़ता है।इसका ताजा उदाहरण हाल ही के महीनों में मध्यप्रदेश सहित कई प्रदेशों में देखने मिला। छत्तीसगढ़ प्रदेश भी नव गठन के बाद से दशकों तक इस हालात से गुजरा है। राहुल गांधी द्वारा प्रदेश कांग्रेस की कमान भूपेश बघेल के हाथों सौंपने के बाद से लेकर मुख्यमंत्री के रूप में उनके 18 महीने कार्यकाल के बाद भी उनकी जादुई शक्ति ने आज तक छत्तीसगढ़ कांग्रेस में किसी तरह की कोई खेमे बाजी को पनपने नही दिया। इस बात को कल घटित घटनाक्रम ने एक बार फिर साबित कर दिया। जब मंत्री टी एस सिंहदेव के बगावती तेवर को किसी कांग्रेसी ने तवज्जो नहीं दी और उस मंत्री को बोलना पड़ा उनकी भूपेश बघेल से आज भी "जय और बीरू" की जोड़ी है।

90 विधानसभा वाले इस खनिज संपदा से परिपूर्ण छत्तीसगढ़ी संस्कृति से ओत-प्रोत छत्तीसगढ़ राज्य का गठन हुआ तो मध्यप्रदेश से अलग हुए छत्तीसगढ़ के हिस्से में कांग्रेस विधायकों की बहुमत के आधार पर साल 2000 में कांग्रेस की सरकार बन गई। परन्तु तब तक 5 वर्ष के कार्यकाल में 2 साल बीत चुके थे और कांग्रेस को महज 3 साल ही शासन करने का मौका मिला। इसके बाद 15 वर्ष तक कांग्रेस को सत्ता से बाहर रहना पड़ा।इसका सबसे बड़ा कारण कांग्रेस पार्टी में लगातार गुटबाजी चरम सीमा पर होना और कांग्रेस के कई नेताओं के इर्द गिर्द कार्यकर्ताओं की खेमेबाजी ही मुख्य कारण बना रहा।

इस बीच कांग्रेस के कई दिग्गजों को प्रदेश कांग्रेस की कमान समय के साथ सौंपी गई पर खेमेबाजी पर अंकुश नहीं लग सका। नतीजन कांग्रेस के कार्यकर्ता अलग- अलग गुटों में बंटेते गए और इस बात का फायदा मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा लगातार उठाते रही। प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार होने के बावजूद विधानसभा चुनावों में महज कुछ ही प्रतिशत के अंतर से पीछे रही कांग्रेस को 15 वर्षों तक विपक्ष में बैठना पड़ा।

झीरम घाटी की घटना के बाद राहुल गांधी के लिए ये एक तरह की बड़ी चुनौती थी कि प्रदेश के तमाम बड़े नेता जो प्रथम पंक्ति में आते थे, हत्या हो गई है तो ऐसे हालात में कांग्रेस को कौन संभाल सकता है और राहुल गांधी ने तमाम अटकलों को विराम लगाते हुए भूपेश बघेल पर भरोसा जताया और छत्तीसगढ़ की कमान उनके हाथों सौंपा दिया। उस समय लोगों को विश्वास नहीं हो रहा था कि वे कांग्रेस पार्टी को एक नए मुकाम तक ले पाएंगे।

ये वो समय था जब प्रदेश कांग्रेस के प्रथम पंक्ति के दिग्गज नेता विद्याचरण शुक्ल, नन्द कुमार पटेल, महेन्द्र कर्मा जैसे लोग अब मार्गदर्शन करने इस दुनिया मे नही थे। भूपेश बघेल के सामने थी तो सिर्फ चुनौतियाँ वो भी विपक्षी पार्टियों से ज्यादा अपने ही पार्टी के अंदर और वे जानते थे जब तक गुटबाजी,खेमेबाजी पूरी तरह से खत्म नही होगा तब तक सत्ता में आ पाना मुश्किल है। प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर उनकी जो आक्रामकता उस समय दिखाई देती थी, पार्टी नेताओं के अलावा भी कार्यकर्ताओं को लगने लगा कि अब किसी तरह की धोखेबाजी नही चलने वाली और एक के बाद एक कारवाँ बनते चला गया।

अब बचा था जोगी फेक्टर जो कांग्रेस में होते हुए भी प्रदेश में पृथक पार्टी की तरह एकला चलो के कहावत को चरितार्थ करता था। छत्तीसगढ़ कांग्रेस में तो नहीं पर दिल्ली के नेताओं में ये भ्रम घर कर गया था कि छत्तीसगढ़ में बगैर जोगी के कांग्रेस कुछ नही और इसी के चलते 2003 से लेकर 3 चुनावों तक उनको ही आगे कर चुनाव लड़ा जाते रहा पर हर बार नतीजा उलट रहा। भूपेश बघेल भली भाँति जानते थे कि आखिर कांग्रेस जीत से दूर क्यों है और वे मौके के तलाश में थे कि पार्टी विरोधी कोई तो ऐसा प्रमाण हाथ आ जाये जिससे हाईकमान को विश्वास में लिया जा सके कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के हार का असल जड़ क्या है?

किस्मत देखिए मंतु पवार का ऐसा प्रकरण सामने आ गया कि दिल्ली ही नही छत्तीसगढ़ के एक-एक कांग्रेस कार्यकर्ता को एहसास हो गया कि आखिर हम इतने दिनों तक सत्ता से बाहर क्यों रहे और बगैर विलम्भ किये भूपेश बघेल ने वो साहसिक कदम उठाया जिसकी कल्पना भी किसी ने नही की थी और पूरे प्रदेश कांग्रेस में उन्होंने ये संदेश दे दिया कि पार्टी के विपरीत कोई भी बाहर जा कर कुछ करने का सोचे भी मत। भूपेश बघेल यहीं से कांग्रेस के सर्वमान्य नेता बन गए।

अब समय कम था और काम ज्यादा। अब उसी गति से भाजपा सरकार को वे हर मोर्चे पर कटघरे में खड़ा करते गए। डॉ रमन सरकार के एक के बाद एक घोटालों का पर्दाफाश कर प्रदेश की जनता का विश्वास जितने सफल होते गए और उन्होंने सब को ये संदेश दे दिया कि कांग्रेस के हाथों ही प्रदेश सुरक्षित है और इसी का परिणाम है जो पिछले चुनाव में कांग्रेस को ऐतिहासिक बहुमत मिला।

मुख्यमंत्री के रूप में भी 18 महीने का उनका कार्यकाल उपलब्धियों से भरा एकदम शानदार रहा। मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहले उन्होने राहुल गांधी के वचन को पूरा करने 10 दिन हुए भी नही थे और किसानों का कर्ज माफ कर राजनीतिक गलियारों में उस आहट का एहसास दिला दिया कि अब ये मुख्यमंत्री रुकने वाला नही है, तो  विपक्ष को भी मजबूर कर दिया कि इस कर्मवीर के सामने अब वे टिकने वाले नहीं हैं। इसके बाद ताबड़ तोड़ 15 साल के रमन सरकार के भ्रष्टाचार को एक के बाद एक प्रमाणित कर बता दिया कि प्रदेश की जनता के साथ कितना अन्याय हुआ है।

आज स्थिति ये है कि किसी पान ठेला में खड़ा व्यक्ति भी चर्चा में भूपेश सरकार की तारीफ करते नहीं थकता,जबकि सही मायने में इन 18 माह में भूपेश बघेल को काम करने समय कम मिला। सरकार गठन के बाद ही लोकसभा चुनाव फिर पंचायत, नगरी निकाय के लगातार चुनाव के चलते प्रशासनिक निर्णय लेने आचार सहिंता बाधा बनते रहा वहीं पिछले 3 महीनों से कोरोना प्रकोप ने भूपेश सरकार को इसके संक्रमण को रोकने ही बाँध कर रख दिया।

इस काल में भी उनकी संवेदनशील कार्यप्रणाली ने आम जनता को एक बार फिर से ये सोचने मजबूर कर दिया कि भूपेश बघेल हर चुनौती से उन्हें बखूबी से उबार सकते हैं।आज पूरे के पूरे विधायक उनके साथ खड़े हैं जो लगातार उनसे मुलाकात कर अपने क्षेत्र के नई कार्ययोजनाओं को जनता के हित में पूर्ण करने लगे हुए हैं। किसी राष्ट्रीय पार्टी में बगैर गुटबाजी के स्वतंत्र रूप से कार्य करने वाला मुख्यमंत्री बहुत कम प्रदेशों में मिलता है, जो आज छत्तीसगढ़ में देखने मिल रहा है। कल एक मंत्री द्वारा असफल कोशिश कर कांग्रेस में दूसरे विकल्प की खोज भी की गई पर भाजपा नेताओं के चुटकी लेने के अलावा और कुछ नही मिला और उनको बोलना पड़ा हमारी तो आज भी "जय और बीरू" की जोड़ी है।