भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त पुरन्दर मिश्रा भाजपा के लिए इतने अहम कैसे होते चले गए...!

भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त पुरन्दर मिश्रा भाजपा के लिए इतने अहम कैसे होते चले गए...!

रायपुर (छत्तीसगढ़)। प्रदेश की राजनीति में हाल ही के महीनों में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनाव के टिकट वितरण से लेकर सरकार गठन व मंत्रिमंडल में सम्मिलित नामों की मंथन तक एक नाम जो चर्चा में आज भी बना हुआ है। वह भाजपा नेता पुरन्दर मिश्रा का है। भगवान जगन्नाथ के अनन्य भक्त पुरन्दर मिश्रा के पूरे राजनीतिक सफर का अध्ययन करेंगे तो यह बात साफ दिखाई देता है कि उनके जीवन में कोई भी प्रसंग ऐसा नहीं कि जिसे वे वास्तविकता से हट कर बढ़ाचढ़ा कर दिखावटी प्रस्तुत किये हों। अपने निर्णयों पर अटल रहने वाले मिश्रा जी अपने मेहनत व दम पर सामाजिक विचारधारा के साथ प्रदेश के 35 लाख से भी ज्यादा उत्कल वासियों के दिलों में राज किया है।साल 2004 में भाजपा में सम्मिलित होने के बाद उनकी सक्रिय रूप से काम करने की गति ने उन्हें पार्टी के और करीब ला दिया और समय के साथ वे भाजपा के लिए अहम होते चले गए।

महासमुंद जिला के सरायपाली से लगे एक गांव दुर्गा पाली में 3 जनवरी 1959 को जन्म लिए पुरन्दर मिश्रा,स्व गौतम मिश्रा व स्व गुफा देवी मिश्रा के पुत्र हैं।उनके दादा त्रिलोचन प्रसाद मिश्रा स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भी रहे हैं।उच्च शिक्षित मिश्रा जी की रुचि विधि के क्षेत्र में शुरू से रही है। और कानून की पढ़ाई के बाद आयकर सलाहकार को उन्होंने अपना व्यवसाय बना लिया। इस क्षेत्र में भी उन्होंने खूब नाम कमाया।आज भी रायपुर के छोटा पारा में उनका पुराना कार्यालय पुरन्दर मिश्रा एन्ड कंपनी संचालित है।इन सब के बावजूद जन सेवा में उनकी गहरी रुचि रही।जिसके लिए उन्होंने राजनीति को एक रास्ता के रूप में चुना  और विगत 35 वर्षों से भी ज्यादा समय से राजनीति में सक्रिय हैं।

वे लंबे समय तक कांग्रेस की राजनीति में सक्रिय रहे।मिश्रा जी तब और चर्चा में आ गए जब कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह कांग्रेस छोड़ तिवारी कांग्रेस का गठन किया तो पुरन्दर मिश्रा उनके साथ हो गए।इतना ही नहीं वे दिग्विजयसिंह के भी बेहद करीब रहे और छत्तीसगढ़ बनने के बाद अजित जोगी के भी। इन तमाम संबंधो और काबिलियत के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें विधानसभा चुनावों में कभी प्रत्याशी नहीं बनाया।अन्यथा आज वे सीनियर विधायक रहते।

छत्तीसगढ़ गठन के बाद कांग्रेस की राजनीति में पुरन्दर मिश्रा की सक्रियता और उत्कल समाज को एक सूत्र में बांधे रखने की कला ने उन्हें सामाजिक रूप से भी सर्वमान्य नेता बना दिया।इस बीच जब 2003 में पहली बार प्रदेश में चुनाव हुए तो बसना विधानसभा क्षेत्र के लोगों ने पुरन्दर मिश्रा को कांग्रेस से प्रत्याशी बनाये जाने की मुहिम शुरू कर दी।जिसे देखते हुए पार्टी ने उन्हें यहां से तैयारी करने के इशारे भी कर दिये परन्तु जब नामों की घोषणा हुई तो उनका नाम नहीं था और जनता के भारी दवाब पर उन्हें निर्दलीय चुनाव लड़ना पड़ा।हालांकि इस चुनाव में उन्हें जीत नहीं मिली पर अपने दम पर काफी संख्या में उन्हें वोट मिले।

इसके बाद कांग्रेस पार्टी से उनका मोह भंग सा हो गया और उन्होंने तय कर लिया कि अब उनको इस पार्टी में रहना नहीं है। धार्मिक प्रवृत्ति के मिश्रा जी के पास भाजपा सबसे अनुकूल विकल्प था और उन्होंने तय कर लिया कि उनका शेष जीवनकाल अब भाजपा के लिए ही समर्पित रहेगा। पुरन्दर मिश्रा यह निर्णय तब ले रहे थे जब लोकसभा चुनाव 2004 के लिए सभी पार्टीयों का प्रचार प्रसार तेज था और उनके संसदीय क्षेत्र महासमुंद से कांग्रेस प्रत्याशी अजित जोगी खुद थे।

बताया जाता है कि तब कांग्रेस में मजबूत चेहरा रहे अमित जोगी खुद उन्हें मनाने छोटा पारा स्थित कार्यालय में गए थे।बावजूद अगले ही दिन रायपुर में लालकृष्ण आडवाणी की सभा में वे भाजपा में सम्मिलित हो गए।भाजपा विचारधारा के अनुरूप मिश्रा जी का नेचर पूरी तरह से मेल खा रहा था और देखते ही देखते वे पूरी तरह से भाजपा में ऐसे समाहित हो गए कि आज लगता नहीं कि वे कभी कांग्रेस का हिस्सा भी रहे हों। उनका अनुशासित रह कर काम करने की शैली संघ को भी मोहित कर गया और बहुत कम समय में ही उन्हें कृषक कल्याण परिषद का उपाध्यक्ष बना दिया गया।सरकार के दूसरे टर्म में क्रेडा जैसे महत्वपूर्ण स्थान में अध्यक्ष बना कर राज्यमंत्री का दर्जा दे दिया गया और तो और जब मोदी काल के स्वर्णिम समय में भाजपा पूरे भारत वर्ष में शीर्ष पर है।पार्टी में कोई निर्णय ले लिया जाता है तो कोई ऊं का चूं तक नहीं करता। उन्हें अचानक से रायपुर उत्तर विधानसभा से टिकट दे दिया जाता है और वे भारी अंतर से जीत भी जाते हैं।यह पार्टी का उनके प्रति एक विश्वास है और यही विश्वास कभी उत्कल समाज जो कांग्रेस का एक बड़ा हिस्सा था। अब पूरी तरह से भाजपा मय हो गई है।इस तरह पुरन्दर मिश्रा भाजपा के लिए अहम होते चले गए।