पंजाब में बीजेपी की हार ने देश के पीएम को पहली बार प्रकाश पर्व पर लाल किले से देश को संबोधित करने मजबूर कर दिया

पंजाब में बीजेपी की हार ने देश के पीएम को पहली बार प्रकाश पर्व पर लाल किले से देश को संबोधित करने मजबूर कर दिया

नई दिल्ली।सिख गुरु तेग बहादुर सिंह के 400वें प्रकाश पर्व पर पहली बार कोई प्रधानमंत्री देश को आज संबोधित किया है।आमतौर पर स्वतंत्रता दिवस के मौके पर ही प्रधानमंत्री लाल किले से देश को संबोधित करते हैं। इससे पहले 2018 में पीएम मोदी ने आजाद हिंद फौज की स्थापना के 75 साल पूरे होने के मौके पर लाल किले पर राष्ट्रध्वज तिरंगा फहराया था। वह कार्यक्रम दिन में था जबकि आज का कार्यक्रम सूर्यास्त के बाद का है। इस मौके पर देश को संबोधित करने के अलावा पीएम मोदी एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट भी जारी किये।

गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व के लिए ऐतिहासिक लाल किला को सजाया गया है। कार्यक्रम में 11 राज्यों के मुख्यमंत्री और देशभर के तमाम सिख नेता सम्मिलित हुए,तो 400 सिख जत्थेदारों के परिवारों को भी न्योता दिया गया था। खास बात यह है कि चांदनी चौक स्थित गुरुद्वारा शीशगंज साहिब  लाल किले के ही पास है। ये गुरुद्वारा उसी जगह बना है जहां मुगलों ने गुरु तेगबहादुर का सिर काटा था। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर के 400वें प्रकाश पर्व के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले से देश को संबोधित किया। उन्होंने कहा, "

अभी शबद कीर्तन सुनकर जो शांति मिली, वो शब्दों में अभिव्यक्त करना मुश्किल है। आज मुझे गुरु को समर्पित स्मारक डाक टिकट और सिक्के के विमोचन का भी सौभाग्य मिला है। मैं इसे हमारे गुरुओं की विशेष कृपा मानता हूं।

मुझे खुशी है आज हमारा देश पूरी निष्ठा के साथ हमारे गुरुओं के आदर्शों पर आगे बढ़ रहा है। इस पुण्य अवसर पर सभी दस गुरुओं के चरणों में नमन करता हूँ।आप सभी को, सभी देशवासियों को और पूरी दुनिया में गुरुवाणी में आस्था रखने वाले सभी लोगों को प्रकाश पर्व की हार्दिक बधाई देता हूँ। पीएम मोदी ने कहा,ये लालकिला कितने ही अहम कालखण्डों का साक्षी रहा है। इस किले ने गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को भी देखा है और देश के लिए मरने-मिटने वाले लोगों के हौसले को भी परखा है। ये भारतभूमि, सिर्फ एक देश ही नहीं है बल्कि हमारी महान विरासत है, महान परंपरा है। इसे हमारे ऋषियों, मुनियों, गुरुओं ने सैकड़ों-हजारों सालों की तपस्या से सींचा है, उसके विचारों को समृद्ध किया है।

यहाँ लालकिले के पास में ही गुरु तेगबहादुर जी के अमर बलिदान का प्रतीक गुरुद्वारा शीशगंज साहिब भी है! ये पवित्र गुरुद्वारा हमें याद दिलाता है कि हमारी महान संस्कृति की रक्षा के लिए गुरु तेगबहादुर जी का बलिदान कितना बड़ा था। उस समय देश में मजहबी कट्टरता की आँधी आई थी। धर्म को दर्शन, विज्ञान और आत्मशोध का विषय मानने वाले हमारे हिंदुस्तान के सामने ऐसे लोग थे जिन्होंने धर्म के नाम पर हिंसा और अत्याचार की पराकाष्ठा कर दी थी। उस समय भारत को अपनी पहचान बचाने के लिए एक बड़ी उम्मीद गुरु तेगबहादुर जी के रूप में दिखी थी। औरंगजेब की आततायी सोच के सामने उस समय गुरु तेगबहादुर जी, 'हिन्द दी चादर' बनकर, एक चट्टान बनकर खड़े हो गए थे।

गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान ने, भारत की अनेकों पीढ़ियों को अपनी संस्कृति की मर्यादा की रक्षा के लिए, उसके मान-सम्मान के लिए जीने और मर-मिट जाने की प्रेरणा दी है। बड़ी-बड़ी सत्ताएँ मिट गईं, बड़े-बड़े तूफान शांत हो गए, लेकिन भारत आज भी अमर खड़ा है, आगे बढ़ रहा है। गुरु नानकदेव जी ने पूरे देश को एक सूत्र में पिरोया। गुरु तेगबहादुर जी के अनुयायी हर तरफ हुये। पटना में पटना साहिब और दिल्ली में रकाबगंज साहिब, हमें हर जगह गुरुओं के ज्ञान और आशीर्वाद के रूप में 'एक भारत' के दर्शन होते हैं।

पिछले वर्ष ही हमारी सरकार ने, साहिबजादों के महान बलिदान की स्मृति में 26 दिसंबर को वीर बाल दिवस मनाने का निर्णय लिया। सिख परंपरा के तीर्थों को जोड़ने के लिए भी हमारी सरकार निरंतर प्रयास कर रही है।भारत ने कभी किसी देश या समाज के लिए खतरा नहीं पैदा किया। आज भी हम पूरे विश्व के कल्याण के लिए सोचते हैं। हम आत्मनिर्भर भारत की बात करते हैं, तो उसमें पूरे विश्व की प्रगति लक्ष्य का सामने रखते हैं।