क्या टीएस सिंहदेव चुनाव के ठीक पूर्व छत्तीसगढ़ की हालात को लेकर कांग्रेस हाईकमान को अगाह करना चाह रहे हैं...?
रायपुर(छत्तीसगढ़)।कांग्रेस की राजनीति में एक कद्दावर सख्सियत और सरकार में कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव वो नेता हैं, जिनका कोई बयान आये तो समझ लीजिए उसके कुछ गंभीर मायने जरूर होते हैं।हाल ही में उनके एक बयान की खुब चर्चा हो रही है।जिसमें उन्होंने ये कहा है कि चुनाव से पहले अपने भविष्य के बारे में कुछ निर्णय लूंगा, अभी मैने कुछ सोचा नहीं है, उसके बाद ही कार्यकर्ताओं से कुछ कह पाउँगा। मीडिया इसका तरह तरह के कई अर्थ और मायने निकाल रही है,तो राजनीति से जुड़े लोग भी,पर इतना तो तय है कि सिंहदेव आज राजनीति के जिस पड़ाव पर हैं और कांग्रेस से उनका ही नहीं बल्कि सरगुजा राजपरिवार का भी गहरा और लंबा जो नाता रहा है, वे भूल कर भी कांग्रेस छोड़ने जैसी गलती नहीं करेंगे। तो फिर उनके जेहन में ऐसी कौन सी बात है जो कार्यकर्ताओं को पूछ कर अपना भविष्य तय करने की बात कर रहे हैं।उनके बारे में आम जनता ही नहीं बल्कि विपक्षी पार्टी के नेता भी मानते हैं कि बाबा साहब बिन सिरपैर के कोई बात नहीं करते और उनकी बातों में सच्चाई भी होती है,तो आइए जानने की कोशिश करते हैं इसके क्या अर्थ हो सकते हैं।
आपको याद होगा टीएस सिंहदेव का जो सरगुजा का क्षेत्र उनका गढ़ है,वहीं से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले विधानसभा चुनाव में अपनी प्रारंभिक सभाएं कर यह कहा था कि वे साहू जाती से आते हैं और इसकी लंबी राजनीतिक बहस भी हुई थी।बावजूद इस इलाके की सभी 14 सीटों पर अगर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार जीत कर आए थे तो उसके पीछे कहीं न कहीं यह जन आकांक्षा भी थी कि इस बार उनके इलाक़े के टीएस सिंहदेव ही मुख्यमंत्री बनेंगे।परंतु जब इसके चयन का समय आया तो वे रेस से बाहर हो गए और मुख्यमंत्री नहीं बन सके।समय बीतते गया और एक समय ऐसा भी आया कि प्रदेश में ढाई-ढाई साल का कोई फॉर्मूला है को लेकर छत्तीसगढ़ से दिल्ली तक खुब राजनीतिक हो हल्ला होते रही।बल्कि एक तरह से यह प्रसंग तब से लेकर अब तक बनी ही रही।हालांकि इस बात को लेकर सब कुछ अस्पष्ट ही रहा और जो कांग्रेस एकजुट नजर आती थी वह दो खेमों में बंटते नजर आई।
राजनीति को करीब से समझने वाले मानते हैं कि सिंहदेव को सबसे ज्यादा नुकसान उनका सबसे बेहद आत्मीय होना प्रमुख कारण है।हालांकि यही वह वजह भी है जो उन्हें कांग्रेस के दूसरे नेताओं से अलग करती है।जिसका पार्टी को लाभ भी मिलते रहा है।राजनीति में सच बोलना जहां उनकी आदत में सुमार है तो इस बात का छत्तीसगढ़ को लेकर तजुर्बा भी की कांग्रेस पार्टी कल कहां थी और आज कहां है।इसी उपापोह में वे इस बात को लेकर चिंतित हैं कि जो दिखाई दे रहा है या दिखाया जा रहा है वह सच हो जरूरी नहीं। यह भी की पिछले विधानसभा चुनाव के सही मायने में असल रणनीतिकार तो टीएस बाबा ही थे और जिस वचन पत्र को लेकर कांग्रेस आम मतदाता के पास गई उसकी रचना भी उन्होंने ही की थी।परंतु आज उसके कई बेहद गंभीर मुद्दे हैं जिससे पार्टी दूर है। एक मात्र किसान शब्द को वह आकर दे दिया गया है।जिसके सामने अन्य सारे मुद्दे,जरूरतें गौण हो गई है।जबकि अन्य मुद्दे भी चुनाव में ही नहीं बल्कि प्रदेश के विकास में भी प्रभाव डाल सकते हैं।सिर्फ किसानों से सरकार नहीं बन सकती।मैदानी क्षेत्रों में कांग्रेस आज भी पीछे है और किसानों के धान को अब कोई भी पार्टी की सरकार बने जिस कीमत पर खरीदी हो रही है उससे कम नहीं कर सकती।इस बात को किसान भी समझ रहे हैं,तो जरूरी नहीं कि पूरे के पूरे सौ फीसदी वोट किसानों का कांग्रेस को मिल जाए।
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार निश्चित रूप से कई अच्छी योजना चला रही है पर उसके क्रियान्वयन को लेकर नहीं कहा जा सकता है कि सही चल रहा है।कौन सी योजना किस विभाग के अंतर्गत और उसका मंत्री कौन है लोगों को मालूम ही नहीं पड़ता।अनियमित कर्मचारियों के नियमितीकरण से लेकर पुरानी पेंशन योजना का क्या होगा कर्मचारी पेसोपेश में हैं। जिस भ्रष्टाचार को मुद्दा बना कर रमन सरकार को घेरने कोई कसर नहीं छोड़ी गई थी आज कांग्रेस की सरकार खुद इसमें फंसते नजर आ रही है।रमन सरकार में भ्रष्टाचार को लेकर कोई प्रसाशनिक अधिकारी जेल नहीं गया पर आज सूची में ऐसे नाम शामिल हो गए हैं जो सत्ता के शीर्ष में थे।राजनीतिक तौर पर यह कहना सही है कि मोदी सरकार विपक्षी पार्टीयों पर एकतरफ़ा कार्यवाही कर रही है पर सबूत भी तो मिल रहे हैं।उससे कैसे इनकार किया जा सकता है।
इन तमाम कारणों को शायद टीएस सिंहदेव समझ रहे हैं और इस बार वे खुद चुनाव लड़ें की नहीं पर विचार करने मजबूर हैं।बात सिर्फ बाबा साहब की नहीं है ऐसे और भी कई जिग्गज हैं जो इस बात को समझ रहे हैं कि इस बार का चुनाव पिछली बार की तरह आसान नहीं होने वाला।वैसे भी जब कोई पार्टी सत्ता में रहते चुनाव लड़े तो उपलब्धि के साथ-साथ उसके नकारात्मक बातें भी उतना ही खतरनाक होती है।ऐसे में टीएस सिंहदेव का बयान छत्तीसगढ़ में ठीक चुनावी वर्ष में एक तरह से कांग्रेस हाईकमान को आगाह करने जैसा ही है कि समय रहते,उन बातों को ध्यान दिया जाए जिससे कि कांग्रेस को नुकसान होने वाली है।इसका कतई यह अर्थ नहीं है कि वे पार्टी छोड़ने वाले हैं।यह और बात है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व कहीं यह घोषणा कर दे कि टीएस भाजपा का मुख्यमंत्री चेहरा होंगे तो शायद कहते हैं न राजनीति में सब जायज और संभव है तो कुछ भी हो सकता है,जो भाजपा के लिए किसी ब्रम्ह अस्त्र से कम नहीं होगा।इसलिए कि छत्तीसगढ़ भाजपा में आज नेतृत्व की कमी के साथ-साथ विश्वास का कोई चेहरा नहीं जो कांग्रेस का मुकाबला कर सके।