व्यक्ति विशेष: टी एस सिंहदेव छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक बेदाग और विश्वास का चेहरा।जिन्हें कोई बाबा तो कोई महाराज जी कह कर पुकारता है...
रायपुर(छत्तीसगढ़)।आज के दौर में जब अधिकांश नेता चाटुकारिता करने में अपने आपको गौरवान्वित होते नजर आते हैं, वहीं टीएस बाबा वो शख्स हैं जो पार्टी हित के लिए सत्ता से टकराने में भी कभी नहीं घबराते,चाहे चुनावी घोषणा पत्र का सही मायने में अमल की बात हो या फिर अपने को मिले अधिकारों के हनन की।चाहे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के नाराजगी की बात हो या फिर सरकार के खिलाफ बन रहे माहौल के बारे में बोलने। उन्होंने कभी इस बात की परवाह नहीं की कि वक्त उनके साथ क्या करेगा। उनकी यही स्पष्टवादिता और बेबाक बोल जहां जनता और आम जनमानस को उनके और करीब ला दिया है,तो अन्य से हट कर पार्टी के अंदर एक स्वच्छ छवि भी बनाई है।
हिंदी और अँग्रेज़ी दोनों भाषाओं पर बाबा साहब की पकड़ अद्भुत है। विभिन्न राष्ट्रीय और प्रादेशिक समाचार चैनलों के साथ डिबेट कार्यक्रमों में उनकी ये प्रतिभा पूरे देश ने देखी और उसे सराहा है।किसी प्रश्न का त्वरित और सटीक जवाब देने की क्षमता उनकी बौद्धिक विद्वता को एक पायदान और ऊपर पहुँचा देता है। छत्तीसगढ़ की राजनीति में ऐसे कांग्रेस पार्टी के लिए विश्वास का चेहरा बन चुके बेदाग छबि के वरिष्ठ कांग्रेस नेता और सरकार में कैबिनेट मंत्री टीएस सिंहदेव का आज 70 वां जन्म दिन है।आइए इनके बारे में वो सब कुछ जानते हैं,जो कईयों को अब तक पता ही नहीं है।
राजनीति में इस बात को लेकर अक्सर चर्चा होती है कि कोई व्यक्ति आज जिस मुकाम पर है।उसका शुरुआती समय कैसा रहा होगा,जो यहाँ तक पहुंचने सफल हुआ। टीएस सिंहदेव भी उन्हीं में से एक हैं। उन्होंने जब राजनीति में क़दम रखा तो उसकी शुरुआत उन्होंने किसी छोटे-से राजनीतिक कार्यकर्ता के तौर पर ही की। जिन्हें लगता है कि बाबा साहब तो सरगुजा रियासत के राजा हैं और उन्हें यूं ही सब कुछ मिल गया होगा,पर ऐसा नहीं है और न ही उनका जमीनी स्तर से कोई जुड़ाव नहीं रहा है, लोगों को यह पता होना चाहिए कि उन्होंने 1983 में अम्बिकापुर शहर के वार्ड नंबर 20 से पहली बार पार्षद का चुनाव लड़ा था और वे 10 वर्षों तक पार्षद के साथ अंबिकापुर के नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष भी रहे।
एक नवंबर 2000 को छत्तीसगढ़ जब पृथक राज्य बना तो जोगी सरकार में उन्हें वित्त आयोग का अध्यक्ष बनाया गया।तब तक अम्बिकापुर विधानसभा आरक्षित श्रेणी में हुआ करता था। 2008 में जब यह सामान्य सीट घोषित हुआ तो टीएस सिंहदेव पहली बार में ही विधानसभा पहुंच गए। मानो ऐसा लग रहा था जैसे यहां की जनता इस बात का वर्षों से इंतजार कर रही थी कि अपने महाराज जी को कब विधानसभा भेजे। इसके बाद वे लगातार 2013 और 2018 के चुनावों में भी भारी बहुमत से चुनाव जीत कर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते आ रहे हैं।
टीएस सिंहदेव के बारे में कहा जाता है कि उनसे किसी तरह की चूक की गुंजाइश नहीं होती। न खेल में और ना ही राजनीति में।यही वजह रही कि पिछले चुनाव में सरगुजा क्षेत्र की जनता यह मान कर चली थी कि इस बार कांग्रेस को जीत मिली तो उनके महाराज जी मुख्यमंत्री बन कर रहेंगे और नतीजा यह हुआ कि पूरे के पूरे इस इलाकों के 14 सीट कांग्रेस की झोली में जा गिरी।यहां तक कि प्रदेश की भाजपा जिस मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही थी वह भी काम न आया,खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस आशंका के चलते अपनी शुरुआती चुनावी सभाएं यहीं से की थीं जो "बाबा" के चेहरे सामने बेअसर साबित हुआ। तब कांग्रेस के ये सभी 14 विधायक बाबा के अनुयायी माने जाते थे।परंतु वर्तमान में परिस्थितियां कुछ और है।
बाबा साहब को दिल से चाहने और मानने वाले लोग,यहां की जनमानस इस अंतराल में वो सब कुछ उनके साथ होते देखा।जिसकी कल्पना भी उन्होंने नहीं कि होगी। यह भी की क्षेत्र के लोगों का लगाव अनायास ही वर्तमान परिस्थिति या रियासत से नहीं है बल्कि बाबा साहब का वह विरासत है जिसका कांग्रेस पार्टी के शुरुआती दौर से ही रहा है। इसके तार जहां 1930 में हुए त्रिपुरी में कांग्रेस के अधिवेशन से जुड़ते हैं,तो उनकी माता देवेंद्र कुमारी सिंह देव तब विधायक और मंत्री भी रही हैं।इतना ही नहीं परिवार में ऐसे कई लोग हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में राजनीति में महत्वपूर्ण पदों पर आज भी सक्रिय हैं। इसलिए यह कहना मुश्किल होगा कि आगामी विधानसभा के चुनाव में निर्मित हुए विपरीत परिस्थितियों के चलते इस बार क्षेत्र की जनता क्या निर्णय लेगी।