कुमारी शैलजा नहीं चाहतीं पीसीसी चीफ मोहन मरकाम की हार हो, मरकाम के नये पैंतरे से भाजपा बैकफुट पर ...
रायपुर (छत्तीसगढ़)। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम द्वारा संगठनात्मक फेरबदल और अपने स्टेण्ड में बने रहने के नये पैंतरे ने भाजपा के तमाम बड़े नेताओं के जुबान पर ताला लगा दिया है। बताया जा रहा है कि भाजपा के ये नेता संगठन में हुए नये फेरबदल और उसके निरस्त होने की खबर को एक अवसर के रूप में पाकर बयानबाजी करने उतारू हो गए थे, जिसका मकसद सिर्फ यह था कि कांग्रेस पार्टी के अन्दर किसी तरह का अंतरकलह को उजागर करना। परन्तु जिस तरह से पूरे घटनाक्रम में नया मोड़ आया उससे यही साबित हुआ कि छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी शैलजा किसी भी सूरत पर मोहन मरकाम को हारते नहीं देखना चाहतीं। इसके बाद मरकाम की छवी भी अब कांग्रेस पार्टी में फायर ब्राण्ड की तरह सामने आया है।
पिछले दो दिनों से छत्तीसगढ़ की राजनीति में कांग्रेस पार्टी के अन्दर संगठनात्मक प्रभार में फेरबदल को लेकर समाचार सुर्खियों पर रहा। इस बदलाव को लेकर जहाँ कांग्रेस के अन्दर चर्चा हो रही थी वहीं इससे कहीं ज्यादा भाजपा के तमाम बड़े नेता बयान देकर पूरे प्रकरण को नया मोड़ देने का प्रयास कर रहे थे। भाजपा नेताओं के बयानों में प्रत्यक्ष रूप से वो चेहरे निशाने पर रहे जिन्हें मोहन मरकाम अपने विश्वस्त समझते हैं। इस बहाने विपक्ष के नेताओं ने भर्सक यह कोशिश भी की कि मुख्यमंत्री और मोहन मरकाम के बीच संबंधों में सार्वजनिक रूप से दरार के संकेत मिले। परन्तु राजनीति में पूरी तरह से परिपक्व हो चुके मोहन मरकाम के अगले कदम को लेकर किसी को यह अंदाजा भी नहीं था कि इस पूरे प्रकरण में वे ऐसा कुछ रास्ता निकालेंगे कि पक्ष-विपक्ष के किसी भी नेता के पास ऐसा कुछ नहीं रह जाएगा कि वो आगे कुछ बोल सकें।
गौरतलब हो कि पीसीसी चीफ मोहन मरकाम द्वारा जारी संगठनात्मक फेरबदल की सूची को कांग्रेस प्रभारी कुमारी शैलजा ने निरस्त कर सिर्फ एक व्यक्ति रवि घोष को संगठन व प्रशासन का महामंत्री बनाये जाने की सिफारीश की थी, इसी के साथ ही बयानबाजी का सिलसिला शुरू हुआ और विपक्ष ने आदिवासी चेहरा मरकाम को अपमानित करने से लेकर तमाम तरह की बातें बोलना शुरू कर दी। इसके बाद आज जब प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने उक्त सूची को यथावत् रख आगामी आदेश तक तमाम पदाधिकारी कार्य करते रहेंगे की बात कही तो किसी को अंदाजा भी नहीं था कि सरल स्वभाव व राजनीति में शांत दिखने वाले मोहन मरकाम इस तरह का कोई कड़ा निर्णय भी ले सकते हैं। इसके बाद से सभी की बोलती बंद हो गई है।
हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि मोहन मरकाम इस तरह का निर्णय जिसमें जारी की गई सूची को यथावत् रखने की बात कही है, छत्तीसगढ़ प्रभारी कुमारी शैलजा की सहमति के बगैर लेने की साहस किये हों। परन्तु राजनीति के जानकार यह सोचने मजबूर हैं कि मोहन मरकाम भी राजनीति के माहिर खिलाड़ी हो गए हैं। निश्चित तौर पर उन्होंने अपने दलीलों से कुमारी शैलजा को संतुष्ट किया होगा अन्यथा यह संभव ही नहीं था कि उनके मर्जी के बगैर इस फेरबदल को यथावत् रखा जा सकता हो। इससे यह भी स्पष्ट हो गया है कि मोहन मरकाम पर पार्टी हाईकमान का एकतरफा समर्थन है और आने वाले चुनाव में मरकाम के चेहरे को आदिवासी क्षेत्रों में पूरी तरह से भुनाने की कोशिश होगी। इससे यह भी तय हो गया है कि मरकाम का विरोध करने किसी को भी अब सौ बार सोचना होगा।
अब सवाल यह उठता है कि पीसीसी चीफ मोहन मरकाम आखिर राजनांदगांव के प्रभारी रहे अरूण सिसोदिया को इतना तबज्जो क्यों दे रहे हैं कि उन्हें राजनांदगांव से लाकर सीधे प्रदेश प्रभारी महामंत्री के साथ ही संगठन और प्रशासन की जिम्मेदारी सौंपने आमादा हो गए। बताया जाता है कि अरूण सिसोदिया कांग्रेस के उन नेताओं में हैं जो गुटबाजी से दूर बहुत ही बुद्धिमान व्यक्तियों में उनकी गिनती होती है। सिसोदिया कई भाषाओं के जानकार के साथ ही राजनीति में गहरी सोच के साथ ऊंची पैठ रखते हैं। उन्हें अच्छे रणनीतिकार के रूप में भी जाना जाता है। सिसोदिया पार्टीहित को छोड़ किसी बात को लेकर किसी के सामने समझौता नहीं करते, ऐसे में आगामी महिनों में होने वाले विधानसभा चुनाव एवं योग्य व्यक्तियों को टिकट दिलायी जाये को लेकर मरकाम के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण कड़ी साबित होंगे।मरकाम अपने अध्यक्षीय कार्यकाल को उस बुलंदी तक पहुंचाने की रणनीति में हैं कि आज की पीढ़ी हमेशा के लिए याद रखेगी।