द कश्मीर फाइल्स को प्रमोट करने विवेक अग्निहोत्री ने आखिर मोदी,शाह और मोहन भागवत को प्लेटफार्म क्यों बनाया?

कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार के वक्त कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगा था और केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार थी, जिसके पीछे बीजेपी खड़ी थी

द कश्मीर फाइल्स को प्रमोट करने विवेक अग्निहोत्री ने आखिर मोदी,शाह और मोहन भागवत को प्लेटफार्म क्यों बनाया?

दिल्ली डेस्क। आज कल फिल्म 'द कश्मीर फ़ाइल्स' को लेकर चर्चा गर्म है। खास कर राजनीतिक गलियारों में फिल्म चर्चा का केंद्र बिंदु बनी हुई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक फिल्म की तारीफ कर चुके हैं।इसमें सबसे खास बात ये है कि फिल्म के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री अपने कलाकारों के साथ इस फिल्म को प्रमोट करने पहली बार नए प्लेटफार्म का चयन किया और सीधे केन्द्र में सत्तासीन भाजपा के शीर्ष नेता नरेंद्र मोदी,अमित शाह और आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत से मुलाकात कर एक तरह से यह संदेश दे दिया कि इस फिल्म के प्रायोजक भाजपा खुद है। बता दें कि फिल्म में जिस समय के कथित घटनाओं का जिक्र कर हिंसा दिखाई गई है  उस अंतराल का कांग्रेस पार्टी से दूर-दूर तक कोई सरोकार नहीं था बल्कि उस समय कश्मीर में गवर्नर जगमोहन साहब का राज था और केन्द्र में वीपी सिंह की सरकार थी और वीपी सिंह की सरकार के पीछे पूरी बीजेपी ढाल बन कर खड़ी थी।

देश के इतिहास में जनवरी, 1990 कश्मीरियों के विस्थापन का सबसे बड़ा गवाह रहा है।जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। उस समय सख़्ती के लिए जाने जाने वाले जगमोहन को भाजपा के समर्थन में कार्य कर रही केंद्र की बीपी सिंह की सरकार ने जम्मू-कश्मीर का राज्यपाल बनाकर भेजा। राज्य के मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला ने तब उनकी नियुक्ति का जोरदार विरोध किया और मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इसके बाद राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया। 18 जनवरी को जगमोहन की राज्यपाल चुने जाने की घोषणा हुई और 19 जनवरी को उन्होंने कार्यभार ग्रहण कर लिया।

कश्मीर पर 'कश्मीरनामा' और 'कश्मीर और कश्मीरी पंडित' किताबें लिखने वाले अशोक पांडेय लिखते हैं ''इसी दिन अर्धसैनिक बलों ने घर-घर की तलाशी लेनी शुरू कर दी। सीआरपीएफ के महानिदेशक जोगिंदर सिंह ने उसी दिन रात में श्रीनगर के डाउनटाउन से लगभग 300 युवकों को गिरफ़्तार कर लिया। 20 जनवरी की रात को बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए और ये वही दौर था जब पड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का भी पलायन कश्मीर से हुआ, जो अगले कुछ सालों तक भी चलता रहा।

 इस फिल्म के जरिए विवेक अग्निहोत्री द्वारा पूरे मुस्लिम समाज पर सवाल उठाए गए हैं। फिल्म का समर्थन करने वाले लोगों का कहना यह भी है कि इस फिल्म में कश्मीरी पंडितों के दर्द को पर्दे पर उतारा है, वहीं कुछ लोगों का कहना है कि फिल्म में सिर्फ कश्मीरी पंडितों पर अत्याचार की कहानी दिखाई गई है और दूसरे पक्ष को पर्दे से हटा दिया गया है। इस बीच जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने 'द कश्मीर फ़ाइल्स' पर सवाल उठाते हुए कहा कि फिल्म में तरह-तरह के झूठ दिखाए गए हैं। मीडिया को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा, जब कश्मीरी पंडित यहां से निकले उस वक्त फ़ारूक़ अब्दुल्ला मुख्यमंत्री नहीं थे। उस समय गवर्नर जगमोहन साहब का राज था और वीपी सिंह की सरकार थी। वीपी सिंह की सरकार के पीछे बीजेपी खड़ी थी।

उमर अब्दुल्ला का कहना है कि उस समय कश्मीर छोड़कर जाने वालों में सब मजहब के लोग शामिल हैं। इसमें सिख और मुस्लिम भाई बहन भी शामिल हैं। कुछ ऐसे मुसलमान भी हैं जो अब तक वापिस नहीं आए हैं। फिल्म पर सवाल उठाते हुए उमर अब्दुल्ला कहते हैं, हमें ऐसा माहौल बनाना चाहिए कि वो लोग वापस आएं लेकिन मुझे नहीं लगता कि जो फिल्म बना रहे हैं वो इन लोगों की वापसी चाहते हैं। इस फिल्म से वो चाहते हैं कि वो लोग हमेशा बाहर रहें।

अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भाजपा की केन्द्र सरकार ने कश्मीरी पंडितों के लिए कुछ नहीं किया-

कांग्रेस पार्टी के राष्ट्रीय सचिव व विधायक विकास उपाध्याय कहते हैं, फिल्म में हिन्दू मुस्लिम के बीच हिंसा दिखा कर वर्तमान परिवेश में जहर घोलने का प्रयास किया गया है। आगे वो कहते हैं, जब कश्मीरी पंडितों का पलायन हुआ उस वक्त बीजेपी समर्थित वीपी सिंह की सरकार थी और अब क़रीब 8 साल से केंद्र में बीजेपी की सरकार है लेकिन पलायन किसकी वजह से और किन परिस्थितियों में हुआ, उसकी जांच के लिए कश्मीरी पंडितों की गुहार पर केन्द्र सरकार का क्या रुख है फ़िल्म में कहीं नहीं दिखाया गया है। विकास उपाध्याय कहते हैं,बीजेपी ने प्रचार तो कर दिया कि कश्मीरी पंडितों को बसाएंगे लेकिन पिछले 8 साल से एक भी कश्मीरी पंडित को नहीं बसा सकी। जबकि कांग्रेस की तत्कालीन मनमोहन सरकार ने  जम्मू में पक्के कैंप बना कर दिए, जहां विस्थापित रह सकें। इसके साथ ही पीएम पैकेज भी दिया गया।इस योजना में कश्मीर से विस्थापित लोगों को नौकरियां भी दी गई। जबकि भाजपा सरकार ने अनुच्छेद 370 हटाने के बाद कश्मीरी पंडितों के रह बसर के लिए  कुछ भी नहीं किया।

फिल्म के जरिए भाजपा हिंदुओं को साधना चाहती है-

फिल्म को लेकर भाजपा के शीर्ष नेताओं से लेकर छोटे कार्यकर्ताओं तक की रुचि से स्पष्ट है कि इसमें हिन्दू मुस्लिम के बीच हिंसा को जरिया बना कर हिंदुओं को अपने पक्ष में साधने का एक प्रयास है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था, भारत विभाजन की वास्तविकता पर क्या कभी कोई फ़िल्म बनी...! अब इसलिए आपने देखा होगा कि इन दिनों जो नई फ़िल्म 'द कश्मीर फ़ाइल्स' आई है, उसकी चर्चा चल रही है और जो लोग हमेशा फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन के झंडे बुलंद किए रहते हैं, वो पूरी जमात बौखलाई हुई है बीते पांच-छह दिनों से और इस फ़िल्म की तथ्यों और बाकी चीज़ों के आधार पर विवेचना करने के बजाय, उसके ख़िलाफ़ मुहिम चलाए हुए हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने 'द कश्मीर फ़ाइल्स' के निर्देशक विवेक अग्निहोत्री और अभिनेत्री पल्लवी जोशी से नई दिल्ली में मुलाकात की थी।न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक मोहन भागवत ने फिल्म की तारीफ करते हुए कहा था ''सच की खोज करने वाले सभी लोगों को 'द कश्मीर फ़ाइल्स' फिल्म देखनी चाहिए।

इतना ही नहीं फिल्म की टीम गृह मंत्री अमित शाह से भी मिलने पहुंची थी। अमित शाह ने ट्वीट कर फिल्म के लिए कहा था, ''अपने ही देश में अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए कश्मीरी पंडितों के बलिदान, असहनीय पीड़ा और संघर्ष की सच्चाई इस फिल्म के माध्यम से पूरी दुनिया के सामने आई है, जो एक बहुत ही सराहनीय प्रयास है।