मुख्यमंत्री के दावेदारों में अब मोहन मरकाम भी...आरक्षित 29 आदिवासी सीटों पर मोहन मरकाम की सियासी नजर का क्या है गणित...।

मुख्यमंत्री के दावेदारों में अब मोहन मरकाम भी...आरक्षित 29 आदिवासी सीटों पर मोहन मरकाम की सियासी नजर का क्या है गणित...।

रायपुर डेस्क।जनसामान्य में यह देखा गया है कि आप किसी को डरावोगे तो वह डरेगा,पर बार-बार डरावोगे तो वह डर एक दिन समाप्त हो जाएगा।ठीक यही बात मोहन मरकाम पर भी लागू होती है। बार-बार अध्यक्ष पद से हटाने की खबरों ने उन्हें राजनीतिक रूप से और भी मजबूत कर दिया है।वजह भी यही है कि अब उनकी सियासी बयान ने छत्तीसगढ़ की राजनीति में खलबली मचा कर रख दी है।एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र को दिये इंटरव्यू में उन्होंने एक तरफ तो मुख्यमंत्री बनने की ख्वाहिश जाहिर कर साफ संकेत दे दिया है कि वे अध्यक्ष के बाद वाली जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाने की क्षमता रखते हैं,तो दूसरी तरफ यह इच्छा जाहिर कर 90 में से 29 आरक्षित आदिवासी सीटों पर वहां के मतदाताओं की जन आकांक्षा को कांग्रेस के पक्ष में बरकरार रखने सियासी नजर भी रखते हैं।

ठीक उसी तरह जैसा कि  दिल्ली की कुर्सी का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर गुजरता है। छत्तीसगढ़ में सत्ता का रास्ता बस्तर से होकर गुजरता है। बस्तर में 12 में से 11 विधान सभा सीटों के अलावा पूरे प्रदेश के कुल 90 सीटों की बात करें तो 29 सीट आदिवासी उम्मीदवारों के लिए आरक्षित है।हालांकि कई विधानसभा तो ऐसे भी हैं जहां सामान्य वर्ग के लिए आरक्षित होने के बावजूद वहां आदिवासी चेहरे को ही उम्मीदवार के तौर पर उतारा जाता है।बसना,कटघोरा, प्रेमनगर जैसे सीट सामान्य वर्ग के लिए होने के बाद भी यहां से आदिवासी विधायक हैं,तो मौजूदा विधानसभा में आरक्षित 29 में से 27 सीटों पर कांग्रेस के विधायक हैं।जबकि इस वर्ग में भाजपा के मात्र 2 विधायक ही हैं। अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को इसमें जोड़ दें तो उनके लिए आरक्षित 10 सीट मिला कर कुल 39 हो जाता है।जबकि सरकार बनाने बहुमत का आंकड़ा 46 है।अभी अनुसूचित जाति के 10 में 7 विधायक कांग्रेस के हैं।

उपरोक्त आंकड़ों से स्पष्ट है कि किसी भी पार्टी के लिए आदिवासी चेहरा छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री के लिए एक मजबूत मुद्दा तो है।हालांकि अजीत जोगी के कांग्रेस पार्टी से अलग होने के बाद इस मुद्दे को लेकर आदिवासी नेताओं में बहुत ज्यादा खुलकर दावेदारी नहीं हुई न ही बात हुई। मोहन मरकाम भी मुख्यमंत्री बनने को लेकर जिस तरह से इच्छा जाहिर की है उससे भी यह प्रतीत नहीं होता की वे आदिवासी चेहरा को मुख्यमंत्री का मुद्दा बनाना चाहते हैं।बल्कि इसके लिए उन्होंने पार्टी अध्यक्ष के तौर पर उनके द्वारा किये कार्य, पार्टी को लगातार मिली जीत के साथ ही अपने कार्यकाल के दौरान ही रिकार्ड संख्या में लोगों को कांग्रेस पार्टी का सदस्य बना कर जोड़ने को आधार मानते हैं।मरकाम के कार्यप्रणाली की प्रशंसा कार्यकर्ता ही नहीं करते,बल्कि बताया जाता है राहुल गांधी खुद भी बहुत प्रभावित रहते हैं और एक तरह से मरकाम राहुल गांधी के पसंद भी हैं।कांग्रेस नेताओं के बीच चर्चा तो यह भी है कि छत्तीसगढ़ की प्रभारी कुमारी शैलजा को भी सरल, सहज और ऊर्जावान नेता के तौर पर काम कर रहे मरकाम से कोई शिकायत नहीं है।

मोहन मरकाम के पहले कांग्रेस के दिग्गज और वेटिंग सीएम टीएस सिंहदेव भी कई मौकों पर बेवाक तरीके से अपनी बात रख कर इस बात को खुल कर बोल चुके हैं कि वे मुख्यमंत्री बनना क्यों नहीं चाहेंगे।इस तरह से चुनाव के ठीक पहले मुख्यमंत्री बनने की चाह रखने वाले दिग्गजों की इच्छा सामने आने के बाद पार्टी हाईकमान इस बार भी मुख्यमंत्री के लिए चुनाव के पहले शायद ही कोई नाम की घोषणा करे।पिछली बार भी छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी के नाम पर उनके नेतृत्व में चुनाव लड़ा गया था और पार्टी को ऐतिहासिक जीत हासिल हुई थी।इसका फायदा यह हुआ कि अपने-अपने क्षेत्र के लोग अपने प्रमुख नेता को भावी मुख्यमंत्री के रूप में देख कांग्रेस के पक्ष में वोटिंग की।सरगुजा इलाक़े में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी शुरुआती सभाएं की थीं, उन इलाक़ों की सभी 14 सीटों पर अगर कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार जीत कर आए तो उसके पीछे कहीं न कहीं यह जन आकांक्षा भी थी कि उनके इलाक़े के टीएस सिंहदेव ही मुख्यमंत्री बनेंगे।हालांकि बाद में सिंहदेव इससे चूक गए।