तो क्या कांग्रेस चुनाव के ठीक एक साल पहले मुख्यमंत्री बदलने की तैयारी कर रही है? पढ़िए पूरी इनसाइड स्टोरी...
नई दिल्ली।आखिरकार लंबे समय से जिस बात को लेकर कयास लगाए जा रहे थे,उसके पूरे होने के दिन अब आ गए लगता है।कांग्रेस को अब इस राज्य में मुख्यमंत्री बदलने का सुनहरा मौका मिल गया गया प्रतीत होता है।नए मुख्यमंत्री के बनने से होगा ये की जहाँ कांग्रेस कार्यकर्ताओं में जबरदस्त उत्साह आएगी वहीं कांग्रेस कार्यकर्ताओं में सत्ता में दोबारा वापसी को लेकर काम करने तेजी भी आएगी।वैसे देखा जाए तो ढाई साल पूरे होते ही नेतृत्व परिवर्तन को लेकर प्रदेश से लेकर दिल्ली तक जिस तरह का माहौल बनते बिगड़ते रहा उससे पार्टी दो धड़ों में बंटते भी नजर आई।परंतु अब कांग्रेस हाईकमान के अंतिम निर्णय के बाद पार्टी में शायद ही कोई गुटबाजी रहेगी और मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा को सीधी टक्कर देने कांग्रेस एकजुट नजर आएगी।इससे इस राज्य में अब इतिहास दोहराने का एक अवसर भी होगा।
कांग्रेस में नए अध्यक्ष की तलाश वैसे तो 2019 से चल रही है परंतु उदयपुर के चिंतन शिविर में अध्यक्ष पद के चुनाव के लिए तैयारियों को लेकर जो समय सीमा तय की गई थी उसका डेडलाइन सितंबर माह बहुत करीब है और यह बात भी अब साफ-साफ नजर आने लगी है कि इस बार गांधी परिवार से इतर कोई अध्यक्ष होगा और वह नाम भी करीब-करीब तय है की वो अशोक गहलोत होंगे।वैसे इस नाम पर आश्चर्य भी नहीं होना चाहिए और गौर किया जाए तो इसकी पटकथा बहुत पहले ही लिख ली गई थी। आप यदि ध्यान दें जब राहुल गांधी को लेकर दिल्ली में ईडी की पूछताछ चल रही थी तो आंदोलनरत कांग्रेस नेताओं को सही मायने में अशोक गहलोत ही लिट् कर रहे थे और राहुल गांधी की पूछताछ जिस दिन समाप्त हुई और उन्होंने देश भर के कांग्रेस नेता कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए मंच से सचिन पायलट का नाम लेकर राजनीति में धैर्य की बात कही वहीं तय हो चुका था कि राजस्थान के मुख्यमंत्री पायलट होंगे।इसलिए कि देश के सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस के अध्यक्ष की जिम्मेदारी अब अशोक गहलोत संभालने वाले हैं।
अब सवाल ये उठता है कि आखिर राहुल गांधी अंतिम समय तक अध्यक्ष बनने जारी क्यों नहीं हुए।जबकि पूरी कांग्रेस आज उनके साथ है।कांग्रेस का एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं जो विरोध कर रहा हो। आपको याद होगा 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की हार की ज़िम्मेदारी लेते हुए राहुल गांधी ने अध्यक्ष पद से इस्तीफ़ा दे दिया था।उस वक़्त उन्होंने चार पेज की एक चिट्ठी भी ट्वीट की थी जिसमें कुछ मुद्दे उठाए थे और अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के वजहें भी गिनाईं थी और कुछ ज़रूरी मुद्दे भी गिनाए थे। उस चिट्ठी में एक जगह लिखा था कि इस प्रक्रिया के लिए पार्टी के विस्तार के लिए लोकसभा चुनाव की हार की ज़िम्मेदारी तय किये जाने की ज़रूरत है। इसके लिए बहुत सारे लोग ज़िम्मेदार हैं।लेकिन अध्यक्ष के पद पर रहते हुए मैं ज़िम्मेदारी ना लूं और दूसरों को ज़िम्मेदार बताऊं ये सही नहीं होगा।इसका मतलब साफ़ था कि उनके इस्तीफे के बाद वो चाहते थे कई और जिम्मेदार पद पर बैठे लोग भी इस्तीफ़ा दें। लेकिन उनके अलावा कांग्रेस में और किसी बड़े नेता ने इस्तीफा नहीं दिया। इतना ही नहीं राफेल घोटाले से लेकर चौकीदार चोर है से लेकर व्यक्तिगत तौर पर उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री, आरएसएस और उन तमाम संस्थाओं के साथ जिस पर उन्होंने कब्ज़ा कर रखा है, पूरे ज़ज्बे के साथ लड़ा।बावजूद पार्टी के किसी जिम्मेदार वरिष्ठ नेताओं का उन्हें वैसा साथ या समर्थन नहीं मिला जिसकी वे अपेक्षा करते थे। लगता है यह टीस उनके मन में कहीं न कहीं घर कर गई और उन्होंने तय कर लिया कि अब वे ऐसे नेताओं नेतृत्व नहीं करेंगे।बल्कि स्वतंत्र रूप से पार्टी की मजबूती के लिए सक्रिय बने रहेंगे।यही वजह भी रही होगी कि इसलिए उन्होंने साल 2019 के बाद एक बार भी कभी नहीं कहा कि वे अध्यक्ष की जिम्मेदारी के लिए राजी हैं।
अब तय माना जा रहा है कि कांग्रेस के नए अध्यक्ष अशोक गहलोत होंगे।हालांकि कांग्रेस का अध्यक्ष पद गांधी परिवार से बाहर होने पर सीएम गहलोत ने कहा कि कांग्रेस में जब तक कोई आधिकारिक फैसला नहीं हो जाता तब तक आप या मैं कोई टिप्पणी नहीं कर सकते। अध्यक्ष पद पर जुड़ी उनकी दावेदारी पर सीएम गहलोत ने कहा कि यह बहुत लंबे समय से मीडिया में चल रहा है। फैसला क्या होगा। किसी को कोई मालूम नहीं है। सोनिया गांधी से मुलाकात के संदर्भ में सीएम गहलोत ने कहा कि सोनिया गांधी चिकित्सा जांच के लिए विदेश जा रहीं थीं। हमनें शिष्टाचार मुलाकात की थी। मैं और वेणुगोपाल गुजरात जा रहे थे तो गुजरात के लिए हमने उनसे आशिर्वाद लिया।सूत्रों से पता चला है कि गांधी परिवार ने नए अध्यक्ष के तौर पर गहलोत के नाम पर मुहर लगा दी है और इन हालात में राहुल गांधी के मित्र सचिन पायलट को मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी दी जा रही है।