सोनिया गांधी ने कहा था 'वो तूम्हें भी मार डालेंगे'। राजीव गांधी का जवाब था, 'मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं वैसे भी मारा जाऊँगा और इसके 7 साल बाद वही हुआ...

सोनिया गांधी ने कहा था 'वो तूम्हें भी मार डालेंगे'। राजीव गांधी का जवाब था, 'मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं वैसे भी मारा जाऊँगा और इसके 7 साल बाद वही हुआ...

संकलन- ब्रजेश सतपथी

इंदिरा गांधी के प्रधान सचिव रहे पीसी एलेक्ज़ेंडर ने अपनी किताब 'माई डेज़ विद इंदिरा गांधी' में लिखा है कि इंदिरा गांधी की हत्या के कुछ घंटों के भीतर उन्होंने ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट के गलियारे में सोनिया और राजीव को लड़ते हुए देखा था। राजीव सोनिया को बता रहे थे कि पार्टी चाहती है कि, 'मैं प्रधानमंत्री पद की शपथ लूँ।' सोनिया ने कहा हरगिज़ नहीं। 'वो तुम्हें भी मार डालेंगे।' राजीव का जवाब था, 'मेरे पास कोई विकल्प नहीं है। मैं वैसे भी मारा जाऊँगा।' सात वर्ष बाद राजीव के बोले वो शब्द सही सिद्ध हुए थे और आज ही के दिन 21 मई, 1991को एक बम धमाके में राजीव गांधी की जान चली गई थी।

21 मई, 1991 को शाम के आठ बजे थे। कांग्रेस की बुज़ुर्ग नेता मारगाथम चंद्रशेखर मद्रास के मीनाबक्कम हवाई अड्डे पर राजीव गांधी के आने का इंतज़ार कर रही थीं। थोड़ी देर पहले जब राजीव गांधी विशाखापट्टनम से मद्रास के लिए तैयार हो रहे थे तो पायलट कैप्टन चंदोक ने पाया कि विमान की संचार व्यवस्था काम नहीं कर रही है। राजीव मद्रास जाने का विचार त्याग गेस्ट हाउस के लिए रवाना हो गए। लेकिन तभी किंग्स एयरवेज़ के फ़लाइट इंजीनियर ने संचार व्यवस्था में आया नुख़्स ठीक कर दिया।

विमान के क्रू ने तुरंत पुलिस वायरलेस से राजीव गांधी से संपर्क किया और राजीव मद्रास जाने के लिए वापस हवाई अड्डे पहुंच गए। दूसरे वाहन में चल रहे उनके पर्सनल सुरक्षा अधिकारी ओपी सागर अपने हथियार के साथ वहीं रह गए। मद्रास के लिए विमान ने साढ़े छह बजे उड़ान भरी। राजीव खुद विमान चला रहे थे। जहाज ने ठीक आठ बज कर बीस मिनट पर मद्रास में लैंड किया। वो एक बुलेट प्रूफ़ कार में बैठ कर मार्गाथम, राममूर्ति और मूपानार के साथ श्रीपेरंबदूर के लिए रवाना हो गए।

रात 10 बज कर 10 मिनट पर राजीव गाँधी श्रीपेरंबदूर पहुंचे। राममूर्ति सबसे पहले मंच पर पहुंचे। पुरुष समर्थकों से मिलने के बाद राजीव ने महिलाओं की तरफ़ रूख़ किया। तभी तीस साल की एक नाटी, काली और गठीली लड़की चंदन का एक हार ले कर राजीव गाँधी की तरफ बढ़ी। जैसे ही वो उनके पैर छूने के लिए झुकी, कानों को बहरा कर देने वाला धमाका हुआ। उस समय मंच पर राजीव के सम्मान में एक गीत गाया जा रहा था...राजीव का जीवन हमारा जीवन है...अगर वो जीवन इंदिरा गांधी के बेटे को समर्पित नहीं है... तो वो जीवन कहाँ का?

इतने जोर के धमाके के साथ बम फटा की चारों तरफ धुंआं ही धुंआं छा गया।लोगों के कपड़ो में आग लगी हुई थी, लोग चीख रहे थे और चारों तरफ भगदड़ मची हुई थी।किसी को पता ही नहीं था कि राजीव गांधी जीवित हैं या नहीं।"जब धुआँ छटा तो राजीव गाँधी की तलाश शुरू हुई।उनके शरीर का एक हिस्सा औंधे मुंह पड़ा हुआ था। उनका कपाल फट चुका था और उसमें से उनका मगज निकल कर उनके सुरक्षा अधिकारी पीके गुप्ता के पैरों पर गिरा हुआ था जो स्वयं अपनी अंतिम घड़ियाँ गिन रहे थे।

जीके मूपनार ने एक जगह लिखा है, "जैसे ही धमाका हुआ लोग दौड़ने लगे। मेरे सामने क्षत-विक्षत शव पड़े हुए थे। राजीव के सुरक्षा अधिकारी प्रदीप गुप्ता अभी ज़िंदा थे। उन्होंने मेरी तरफ़ देखा। कुछ बुदबुदाए और मेरे सामने ही दम तोड़ दिया मानो वो राजीव गाँधी को किसी के हवाले कर जाना चाह रहे हों। मैंने उनका सिर उठाना चाहा लेकिन मेरे हाथ में सिर्फ़ मांस के लोथड़े और ख़ून ही आया। मैंने तौलिए से उन्हें ढक दिया।"

मूपनार से थोड़ी ही दूरी पर जयंती नटराजन अवाक खड़ी थीं। बाद में उन्होंने भी एक इंटरव्यू में बताया, "सारे पुलिस वाले मौक़े से भाग खड़े हुए। मैं शवों को देख रही थी, इस उम्मीद के साथ कि मुझे राजीव न दिखाई दें। पहले मेरी नज़र प्रदीप गुप्ता पर पड़ी... उनके घुटने के पास ज़मीन की तरफ मुंह किए हुए एक सिर पड़ा हुआ था... मेरे मुंह से निकला ओह माई गॉड...दिस लुक्स लाइक राजीव।"वहीं खड़ी नीना गोपाल आगे बढ़ती चली गईं, जहाँ कुछ मिनटों पहले राजीव खड़े हुए थे।

नीना बताती है, "मैं जितना भी आगे जा सकती थी, गई। तभी मुझे राजीव गाँधी का शरीर दिखाई दिया। मैंने उनका लोटो जूता देखा और हाथ देखा जिस पर गुच्ची की घड़ी बँधी हुई थी। थोड़ी देर पहले मैं कार की पिछली सीट पर बैठकर उनका इंटरव्यू कर रही थी। राजीव आगे की सीट पर बैठे हुए थे और उनकी कलाई में बंधी घड़ी बार-बार मेरी आंखों के सामने आ रही थी। जहाँ राजीव का शव पड़ा हुआ था वहीं लाल कारपेट के एक हिस्से में आग लगी हुई थी।" वहाँ मौजूद इंस्पेक्टर राघवन ने उसके ऊपर कूद कर जलती हुई कारपेट को बुझाया। इतने में राजीव गांधी का ड्राइवर मुझसे आकर बोला कि कार में बैठिए और तुरंत यहाँ से भागिए। मैंने जब कहा कि मैं यहीं रुकूँगी तो उसने कहा कि यहाँ बहुत गड़बड़ होने वाली है। हम निकले और उस एंबुलेंस के पीछे पीछे अस्पताल गए जहाँ राजीव के शव को ले जाया जा रहा था।"

सोनिया गांधी को इस पूरे घटना की जानकारी कैसे मिली और प्रियंका गांधी ने पूरे हालात को कैसे संभाला कल के अंक में क्रमसः जारी...