लालू यादव को सज़ा तो हो गई। पर सीबीआई इन 25 वर्षों में लंबी जाँच और क़ानूनी प्रक्रिया के बाद भी 6 आरोपियों का पता न लगा सकी

लालू यादव को सज़ा तो हो गई। पर सीबीआई इन 25 वर्षों में  लंबी जाँच और क़ानूनी प्रक्रिया के बाद भी 6 आरोपियों का पता न लगा सकी

रांची(झारखंड)।बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय जनता दल प्रमुख लालू प्रसाद यादव को झारखंड में सीबीआई की विशेष अदालत ने चारा घोटाले के पाँचवें मामले में सोमवार को आज पाँच साल की क़ैद की सज़ा सुनाई। कोर्ट ने उन पर 60 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया।गौरतलब हो कि अदालत ने उन्हें 15 फ़रवरी को दोषी ठहराया था।

लू प्रसाद यादव सोमवार को वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए कोर्ट की कार्यवाही में शामिल हुए बावजूद कोर्ट परिसर में भारी भीड़ जमा रही। सुरक्षा के मद्देनज़र पुलिस को अतिरिक्त बल की टुकड़ीयां तैनात करनी पड़ी।लालू प्रसाद यादव के वकील प्रभात कुमार ने न्यूज़ एजेंसी को बताया, लालू यादव की उम्र, सेहत और पशुपालन घोटाले के ही दूसरे मामलों में काटी गयी सजा की अवधि को देखते हुए कोर्ट से उनके लिए न्यूनतम सजा की माँग की थी।

लालू यादव के वकील का कहना है कि वो हाई कोर्ट में सज़ा के ख़िलाफ़ अपील करेंगे।लालू प्रसाद यादव के बेटे और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव ने कहा, "ये आख़िरी फ़ैसला नहीं है। इस फ़ैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। उम्मीद है कि हाई कोर्ट का फ़ैसला लालू जी के हक़ में होगा।"

बता दें कि अदालत ने जगदीश शर्मा समेत 38 दोषियों को 15 फ़रवरी को ही सज़ा सुना दी थी। इन्हें तीन साल तक की सज़ा सुनाई गई।परंतु इन्हें तुरंत जमानत भी मिल गई थी। ज्ञात रहे कि साल 2017 में चारा और पशुपालन घोटाले के अन्य मामलों में सज़ा मिलने के बाद से लालू यादव कुल आठ महीने जेल में रहे हैं और 31 महीने हॉस्पिटल में। इस बीच वे आठ महीने रांची स्थित होटवार की बिरसा मुंडा जेल में रहे। इसके पहले 15 फ़रवरी को दोषी ठहराए जाने के बाद लालू यादव को रांची के बिरसा मुंडा सेंट्रल जेल भेजा गया और वहां से वो रिम्स अस्पताल लाए गए। उन्हें यहाँ के पेईंग वार्ड में एडमिट कराया गया ताकि डॉक्टरों की टीम उनके स्वास्थ्य की निगरानी कर सकें। लालू यादव के वकीलों ने उनकी ख़राब सेहत का हवाला देते हुए सीबीआई कोर्ट में आवेदन किया था जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।

स पूरे मामले के घोटाले का साल 1996 में पर्दाफ़ाश के बाद तत्कालीन बिहार के डोरंडा थाना में 17 फ़रवरी को इसकी FIR (नंबर 60/96) दर्ज करायी गयी थी। उसी साल 11 मार्च को पटना उच्च न्यायालय ने इसकी सीबीआई जाँच का आदेश दिया। इसके बाद सीबीआई ने 8 मई 2001 को 102 आरोपियों के ख़िलाफ़ पहली चार्जशीट दायर की। फिर 7 जून 2003 को 68 दूसरे आरोपियों पर भी चार्जशीट की गई। 26 सितंबर 2005 को कोर्ट ने कुल 170 अभियुक्तों के ऊपर आरोप तय किया था।

इनमें से 55 अभियुक्तों की मौत ट्रायल के दौरान ही हो गई। आठ दूसरे अभियुक्त सीआरपीसी (दंड प्रक्रिया संहिता 1973) के प्रावधानों के मुताबिक़ सरकारी गवाह (अप्रूवर्स) बन गए। दो अभियुक्तों ने पहले ही दोष स्वीकार कर लिया था।इस केस की सबसे दिलचस्प बात यह है कि सीबीआई इसके आरोपी छह लोगों का पिछले 25 सालों की लंबी जाँच और क़ानूनी प्रक्रिया के दौरान पता ही नहीं लगा सकी। वे कोर्ट में फ़रार बताए गए हैं।