मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बहुमत के लिए आवश्यक 46 विधायकों को अपनी टीम में ले कर देश के नेताओं को बता दिया, किला मजबूत कैसे की जाती है

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बहुमत के लिए आवश्यक 46 विधायकों को अपनी टीम में ले कर देश के नेताओं को बता दिया, किला मजबूत कैसे की जाती है


रायपुर। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की गिनती भी देश के युवा मुख्यमंत्रीयों में ही गिनी जाती है और उसी युवा सोच के अनुरूप उन्होंने पिछले 2 दिनों में अपनी सरकार में वो कर दिखाया है, जिसे कोई सपने में भी सोचा न होगा। प्रदेश के 90 सदस्य वाले विधानसभा में सरकार बनाने बहुमत के लिए 46 विधायकों की जरूरत पड़ती है और पिछले 2 दिनों में ठीक 46 विधायकों को भूपेश बघेल ने अपनी टीम में विधिवत लेकर सरकार खतरे में न होने के बावजूद इसकी दीवारों को इतनी मजबूत कर दिया है कि इस किला को दूर दूर तक कोई खतरा छू भी नही सकता। हालांकि भूपेश बघेल को चुनौती देने वाला छत्तीसगढ़ में अपने पार्टी के अन्दर अभी कोई नेता नही है और मुख्यमंत्री के पक्ष में 60 विधायक पूरी तरह से समर्पित रूप से उनके साथ हैं, इस संख्या में ऐसे भी विधायक हैं जिनको किसी पद की लालसा भी नहीं है। 

देश के गिने चुने राज्यों में काबिज कांग्रेस सरकारों को किसी न किसी बहाने खतरा मंडरा रहा है। इसकी वजह ये है कि अब एक-डेढ़ साल में भी विधायक अपनी सदस्यता खोने को तैयार रहते हैं।कर्नाटक के बाद हाल ही के महीनों में मध्यप्रदेश और पिछले कुछ दिनों से राजस्थान की गहलोत सरकार पर खतरा इसके ताजा उदाहरण है। मध्यप्रदेश में एक युवा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया ने तो दिग्विजय सिंह और कमलनाथ जैसे दिग्गज नेताओं को भी पटकनी दे दी वहीं राजस्थान में भी एक युवा नेता सचिन पायलट के भले मनसूबे  कामयाब नही हो सके पर दिल्ली में हाईकमान को ये सोचने मजबूर कर दिया कि उनकी ताकत को इतने हल्का में न लिया जाए। ये बात और है कि छत्तीसगढ़ के भूपेश सरकार की परिस्थितियां बिल्कुल अलग है पर राजनीति में कब क्या हो जाये कि कहावत हमेशा बनी रहती है। वैसे भी आज कल कुछ विधायकों की राजनीतिक आस्था या निष्ठा उतनी मज़बूत नहीं होती जितनी कि वेस्टमिंस्टर मॉडल पर आधारित लोकतांत्रिक व्यवस्था में होनी चाहिए। भूपेश सरकार में राज परिवार से आये दिग्गज मंत्री सिंहदेव की गतिविधियां कभी- कभी भूपेश बघेल को भी ये सोचने मजबूर कर देती है कि केन्द्र की मोदी सरकार की निगाहें छत्तीसगढ़ के लिए भी तिरछी तो नही है।

तमाम इन राजनीतिक उठा पटक से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल बिल्कुल भी अछूते नहीं हैं। कुछ महीनों पहले आई टी के जब छापे पड़े तो शायद ये पहला वार था भूपेश सरकार पर जिसमें निशाना एक तरह से व्यक्तिगत रूप से भूपेश बघेल ही थे परंतु भूपेश सरकार की नींव इतनी कमजोर नहीं कि इससे हिल जाती। इसके बाद राज्य सभा में पसंद के उम्मीदवार की पारी आई तो लगा भूपेश बघेल की बातें दिल्ली सुन नही रही है। इससे ये बात तो तय हो गया था कि कुछ तो बात है और गांधी परिवार के समक्ष भूपेश बघेल की छबि खराब करने झूठी शिकायतें हो रही है। कहते हैं न किसी के महत्वाकांक्षी स्वभाव कभी कभी इंसान को गलत करने मजबूर कर देता है और यहाँ भी वही हो रहा था। बावजूद भूपेश बघेल इन सब से बेफिक्र अपने काम में लगे रहे और एक के बाद एक नई योजनाओं को छत्तीसगढ़ में लागू कर बता दिया की छत्तीसगढ़ का नेतृत्व सही हाथों में सौंपी गई है और भूपेश बघेल एक मंजे हुए खिलाड़ी की तरह शांति पूर्ण ढंग से पर्दे के पीछे सरकार के उस मजबूत किले की नींव रखने शुरू कर दिए जो कांग्रेस के बड़े बड़े नेता सोच भी नही सकते थे। कल ही एक राष्ट्रीय चैनल में एक बड़े कांग्रेस के नेता ने अपना पक्ष रखते हुए राजस्थान के  मामले में कहा था। हाईकमान संख्या बल देखती है कि बहुमत किसके साथ  है और संख्या गहलोत के साथ है।

भूपेश बघेल समझ चुके थे राजनीति में लंबी पारी खेलने के लिए विधायकों का संख्या बल का होना पहले जरूरी है और सभी विधायकों को अपने पक्ष में करना जरूरी है। इसी के साथ एक एक विधायकों को महत्व देने के साथ ही उनके क्षेत्र की समस्या को भी गंभीरता से लेते हुए भूपेश बघेल को तमाम विधायकों को अपने पाले में करने ज्यादा जद्दोजहद करने की जरूरत नही पड़ी। इतनी ज्यादा संख्या में कांग्रेस विधायकों के नाम हैं कि सब को पद भी नहीं दिया जा सकता पर ठीक 46 का आंकड़ा तो यही बताता है कि आज की राजनीति सीखना है तो कोई भूपेश बघेल से सीखे।