टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ कांग्रेस में क्या साइडलाइन किए जा रहे हैं या वो खुद अपने आप को ऐसा करने में लगे हैं...
दिल्ली डेस्क। छत्तीसगढ़ में लगातार 15 वर्षों तक विपक्ष की भूमिका में रही कांग्रेस पार्टी साल 2018 के हुए विधानसभा चुनाव में भारी बहुमत के साथ सत्ता में वापसी करि तो जनसमुदाय में ये संदेश गया कि यह कांग्रेस पार्टी के नेताओं का एक साझा अभियान का परिणाम है। परंतु सरकार के अपने 4 साल के कार्यकाल में महज एक डेढ़ साल ही ऐसा रहा होगा जब पार्टी के अंदर सब कुछ सामान्य रहा।अन्यथा विगत ढाई वर्षों के राजनैतिक घटनाक्रमों को यदि गौर करें तो पार्टी के अंदर अब वैसी एकजुटता नहीं रही जो चुनाव के पूर्व देखी जा रही थी। तब न कोई गुटबाजी थी न ही कोई आंतरिक प्रतिस्पर्धा।सब के जुबान पर सिर्फ एक ही लक्ष्य था पार्टी की जीत।अब तो समय के साथ पार्टी के अंदर "जय बीरू" की जोड़ी को लेकर आये दिन सोशल मीडिया में लिखे जाने वाले लाइनें भी गायब हो गई हैं।बल्कि अब यह स्लोगन बड़े और छोटे भाई की चर्चा तक जा पहुंची है,तो सवाल खड़ा होता है क्या टीएस सिंहदेव छत्तीसगढ़ कांग्रेस में साइडलाइन किए जा रहे हैं या फिर बाबा साहब खुद ही अपने आपको साइडलाइन करने में ही भला समझ रहे हैं।
कांग्रेस के दिग्गज नेता टीएस सिंहदेव राज्य के 90 में से कांग्रेस पार्टी के 71 विधायक होने के बावजूद किन्हीं कारणों से इनमें अधिकांश के बीच भले ही अपने आपको उपेक्षित महसूस करते रहे हों, लेकिन राज्य के लोग उन्हें कांग्रेस के वैकल्पिक चेहरे के तौर पर आज भी देख रहे हैं, कुछ लोग तो इस बार नहीं तो साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए उन्हें मुख्यमंत्री के तौर पर भी देख रहे हैं।इस बीच राज्य की राजनीति में विगत ढाई साल से जो कुछ हो रहा है यह पार्टी के अंदर का सत्ता संघर्ष कहें तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी और यह वैसा मामला नहीं है कि इसे कांग्रेस नेतृत्व से मान्यता की ज़रूरत पड़े।
भले ही परिस्तिथिजन्य ऐसा न लगे परंतु राजनीतिक तौर पर पार्टी के अंदर सिंहदेव को लोकप्रियता के पैमाने पर चुनौती देने वाला कोई नेता मौजूद नहीं है।यही वजह है कि वे जब भी कोई बात करते हैं या अपना अनुभव या तर्क देते हैं तो लोग उसे गंभीरता से लेते हैं,जो चर्चा का विषय बन जाता है। उन्होंने बीच में जब सरगुजा में खुद के विरुद्ध एंटी इनकंबेंसी की बात की थी तो लोग उनके बयान को गलत अर्थ ले रहे थे,बाद में जबकि खुद पार्टी अपने सर्वे में इस बात को स्वीकार किया की 30 फीसदी विधायकों का परफॉर्मेंस ठीक नहीं है।अर्थात इसका असर सरकार के सेहद पर ही पड़ना है।
अब सवाल ये है कि टीएस बाबा को लेकर सरकार के अपने चार साल कार्यकाल के बाद आखिर ये कयास या सवाल पूछे जाने की जरूरत क्यों पड़ रही है कि क्या वे भाजपा में जाएंगे या अलग पार्टी बनाएंगे और खुद बाबा साहब भी ऐसा क्यों बोल रहे हैं कि उनका इस बार चुनाव लड़ने का मन नहीं है।उन्होंने यह भी कहा कि आने वाले समय में उनके राजनीतिक भविष्य का पता चलेगा।तो क्या इसके लिए वह परिस्थितियां जिम्मेदार हैं,जिनकी वजह से बाबा साहब के मूल नेचर के विरुद्ध व्यवहार किया गया।
इस बीच प्रदेश के गृह मंत्री ताम्रध्वज साहू जो सामान्य तौर पर राजनीतिक बयान देने से बचते हैं,एकाएक सिंहदेव के चुनाव न लड़ने के बयान पर मुखर क्यों हो गए और उनको कह डाला कि इससे पार्टी को कोई नुकसान नहीं होगा। बल्कि उन्होंने यह भी अपने वक्तव्य में जोड़ दिया कि फिल इन द ब्लेंकस के लिए कई लोग तैयार रहते हैं।साहू के इस बयान को छत्तीसगढ़ कांग्रेस में टीएस की स्वीकार्यता को कमतर के रूप में देखा जा रहा है।
टीएस सिंहदेव को राजनीति में क्या पक्ष,क्या विपक्ष सबसे बेहद आत्मीय होने का नुक़सान भी उठाना पड़ा है।उनके मूल नेचर में ही नहीं कि बगावती तेवर की झलक दिखाई दे।तमाम अपमान सहने के बाद भी कभी उन्होंने किसी के लिए न ही कटु शब्द का इस्तेमाल किया न ही सरकार के विरुद्ध कोई बयान दिया।बल्कि तकनीकी पहलुओं पर केन्द्र सरकार पर हमला कर सरकार का पक्ष मजबूती के साथ रखते रहे हैं।सरल और सौम्य टीएस सिंहदेव के किसी भी निर्णय में आप नहीं पाएंगे कि उनके भीतर कोई अतिरिक्त महत्वाकांक्षा है और जब बात दोस्ती की हो व्यवहार की हो तो फिर दूसरी तमाम चीज़ें पीछे रह जाती हैं।
बड़े भाई से संबोधित करने वाले बाबा पिछली सरकार के मुख्यमंत्री रमन सिंह तब राज्य का खजाना खाली होने जैसे सवालों पर मज़ाक में कहते थे कि अगर ज़रूरत हुई तो नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव जी से कर्ज ले लेंगे।ऐसे राजनेता की जरूरत क्या अब छत्तीसगढ़ कांग्रेस को नहीं रही जो उन्हें साइडलाइन किया जा रहा है या फिर अतीत में हुए उनके कद के अनुरूप सम्मान न मिलने के चलते वे खुद अपने आपको पार्टी से अलग-थलग करने में भलाई समझ रहे हैं और वह भविष्य की गर्त में छुपी अदृश्य परिस्थिति क्या है जो टीएस अपने बयान में जोड़ते हैं।बस समय का इंतजार है कि क्या होगा?