क्या सचिन पायलट राजस्थान के जगन रेड्डी बनेंगे...?

क्या सचिन पायलट राजस्थान के जगन रेड्डी बनेंगे...?

नई दिल्ली डेस्क। राजस्थान के पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट को राजनीति में एक लंबा अरसा हो गया है। शुरूआत से पायलट कांग्रेस में रहे हैं और समय के साथ लोकप्रिय भी होते चले गए।  उनके पिता भी कांग्रेस में थे। पिता से विरासत में मिली इस राजनीति को पायलट ने अपने खून-पसीने से सींचा है,तो उन्हीं की तरह दमदारी से राजनीति भी करते हैं।अब जिस तरह की बगावत इस वक्त पायलट ने छेड़ रखी है, उसे देखकर ये कहा जा रहा है कि क्या सचिन पायलट राजस्थान के जगन रेड्डी बनेंगे?आइये इसकी खास वजह को जानने की कोशिश करते हैं,जो जगन रेड्डी से हूबहू मिलती नजर आ रही है।

बता दें कि आंध्र प्रदेश के सीएम जगन मोहन रेड्डी ने भी पायलट की तरह कांग्रेस में रहकर बगावत की थी।आज रेड्डी आंध्रप्रदेश की राजनीति के चमकते सितारे हैं और उनकी लोकप्रियता के इर्दगिर्द भी कोई नहीं जो उनका मुकाबला कर सके।राजस्थान के मामले में अभी तक का इतिहास रहा है कि यहां के लोग तीसरे मोर्चे को पसंद नहीं करते,पर यह वक्त वक्त की बात व परिस्थिति पर निर्भर करता है।पायलट की गहलोत के साथ-साथ कांग्रेस आलाकमान से भी बढ़ती दूरियां ऐसे ही किसी आहट की सुगबुगाहट लगता है कि कांग्रेस में उनका युवा की उम्र में ज्यादा भला नहीं होने वाला है।

समानता ये भी है कि दोनों ने ही कांग्रेस आलाकमान से टकराव लेकर पदयात्रा निकाली। जगन मोहन रेड्डी ने पिता की मृत्यु के छह महीने बाद एक ओदारपु यात्रा यानि शोक पदयात्रा निकालने का निर्णय लिया था और यह तब की परिस्थिति थी जब उनके पिता की मृत्यु के पश्चात स्वाभाविक रूप से मुख्यमंत्री की कुर्सी में उनका हक बन रहा था,पर ऐसा नहीं हो सका।तब कांग्रेस आलाकमान ने उन्हें उनकी पदयात्रा को स्थगित करने के निर्देश,दिए लेकिन जगन ने उनके आदेश को नहीं माना और ये कहते हुए यात्रा को आगे बढ़ाया कि ये उनका निजी मामला है।तब भी रेड्डी परिवार का पूरे आंध्र में सैलाब था।

इसके साथ ही जगन रेड्डी और पार्टी आलाकमान के बीच मतभेद गहराते चले गए।यहां तक कि कांग्रेस के एक बड़े नेता ने इस दरार को किसी बड़ी खाई के रूप में बदलने कोई कसर नहीं छोड़ी।बताया जाता है कि ऐसे कुछ सीनियर नेताओं को इस बात का डर सताने लगा था कि उनके रहते युवाओं का दौर शुरू हो गया तो उनकी पूछपरख का क्या होगा और परिस्थिति स्वरूप आलाकमान से मतभेद के बाद जगन रेड्डी ने एकला चलो की राह चुनने में ही भलाई समझी और अपनी नई वाईएसआर कांग्रेस पार्टी की घोषणा कर दी। इस नई पार्टी में उनके पिता का नाम भी जुड़ा गया।नई पार्टी के दम पर चुनाव लड़ा और बम्फर जीत भी हासिल करी और अपने दम पर देश के इस महत्वपूर्ण राज्य के वो मुख्यमंत्री भी बन गए।विधानसभा में ही नहीं बल्कि लोकसभा के चुनावों में भी उनकी पार्टी ने एकतरफा जीत हासिल कर केन्द्र में भी अपना दबदबा कायम की।

ठीक इसी तरह का इतिहास दोहराता पायलट का भी रुख है। उन्होंने पहले अपनी सरकार के खिलाफ अनशन किया और उसके बाद 11 मई से पदयात्रा निकाली।तपती धूप में भी पायलट की लोकप्रियता के साफ संकेत दिख रहे थे जब हजारों की संख्या में लोग उनसे जुड़ते चले जा रहे थे।तब प्रदेश प्रभारी रंधावा ने यात्रा पर ऐतराज जताया, बावजूद पायलट नहीं माने। इसके बाद प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने ये कहते हुए पल्ला झाड़ा कि ये उनका निजी मामला है। आलाकमान भी उनकी शिकायतों को कोई तवज्जो नहीं दे रहा था। तब से इस बात को बलवती मिलते गई कि पायलट कोई नई पार्टी बनाने की सोच तो नहीं रहे हैं।

पायलट और रेड्डी की समानता व राजनीतिक कदम का भी गजब का मेल है, दोनों का जन्म 70 के दशक में हुआ। दोनों के पिता भी आजीवन कांग्रेस में रहे। यह भी संयोग ही रहा कि दोनों के पिता का निधन भी राजनीति के शिखर पर रहते हुए आकस्मिक दुर्घटना में हुआ।यह भी संजोग है कि दोनों ने अपने पिता की राजनीतिक विरासत को बखूबी रूप से संभाली।यह भी की दोनों ही नेता साल 2000 के करीब कांग्रेस की राजनीति में आए और दोनों पहले सांसद बने,वर्तमान में दोनों नेताओं की युवाओं में अभूतपूर्व क्रेज का होना भी बड़ी वजह है।