कांग्रेस नेताओं में क्या ऐसा कोई नहीं जो बृजमोहन अग्रवाल को शिकस्त दे सके?इस बार कौन होगा कांग्रेस का चेहरा! क्या है इनसाइड स्टोरी...

कांग्रेस नेताओं में क्या ऐसा कोई नहीं जो बृजमोहन अग्रवाल को शिकस्त दे सके?इस बार कौन होगा कांग्रेस का चेहरा! क्या है इनसाइड स्टोरी...

रायपुर(छत्तीसगढ़)।पिछले तीन दशक से भी ज्यादा समय से छत्तीसगढ़ की राजनीति में धूमकेतु की तरह छाए रहने वाले भाजपा के कद्दावर नेता बृजमोहन अग्रवाल को कांग्रेस पार्टी में अब तक ऐसा कोई नेता नहीं मिला जो चुनावी मैदान में शिकस्त दे सके। दरअसल इसके पीछे की वजह यह माना जाता है कि भाजपा ही नहीं बल्कि अन्य पार्टी के लोग भी नहीं चाहते कि बृजमोहन अग्रवाल पराजित हों। परिणामस्वरूप जब भी कोई विपक्षी पार्टी खास कर कांग्रेस का उम्मीदवार इनके विरुद्ध चुनाव में उतरा प्रत्याशी के व्यक्तिगत क्षमता और लोकप्रियता के हिसाब से वोट की संख्या में जरूर कम ज्यादा का अन्तर आया ,पर हर बार जीत बृजमोहन अग्रवाल की ही हुई।इस तरह से वे अब की बार सातवीं बार के विधायक हैं।कहा ये भी जाता है कि प्रदेश की राजधानी रायपुर से बृजमोहन के चुनाव लड़ने से शेष अन्य तीन सीटों पर भी इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है और यह प्रभाव सिर्फ भाजपा पर ही नहीं बल्कि कांग्रेस के प्लस-माइनस पर भी देखा गया है।अब देखना होगा इस बार साल के अंत में होने वाले चुनाव में इनके मुकाबले कांग्रेस का कौन उम्मीदवार होगा।

चुनाव की दृष्टि से हॉट सीट माने जाने वाले रायपुर दक्षिण विधानसभा के भाजपा विधायक बृजमोहन अग्रवाल को लेकर जनमानस में ये धारणा है कि वे चुनाव के समय ही पार्टी विशेष के कहलाते हैं। परंतु जब वे जनप्रतिनिधि चुन लिए जाते हैं तो सबके सेवक बन जाते हैं।उनके दरबार में किसी काम से कोई भी पार्टी से जुड़ा व्यक्ति क्यों न गया हो खाली हाथ वापस नहीं आता। वे सत्ता में रहें या विपक्ष में विपक्षी नेताओं के बड़े से लेकर छोटे चेहरों का जमावड़ा बंगले में देर रात तक देखी जा सकती है।संसदीय ज्ञान से लेकर प्रशासनिक क्षमताओं से लबालब बृजमोहन अग्रवाल के वक्तव्य बेहद ही तार्किक होते हैं।बावजूद उनको लेकर ये बात भी कही जाती है, खास कर सरकार के विफलताओं को लेकर जब वे हमलावर होते हैं तो उनका विरोध, विरोध नहीं लगता और न ही विपक्षी नेताओं का उनको लेकर ऐसी कोई टिप्पणी।जबकि डॉ रमन सिंह,अजय चंद्राकर और राजेश मूणत जैसे नेताओं के तेवर सरकार के प्रति बहुत ही तल्ख माना जाता है।उनको लेकर ये भी प्रचारित है कि जब टिकट की अधिकृत घोषणा हो जाती है तो सबसे पहले उनके समर्थन में विपक्ष के नेता लामबंद हो जाते हैं। इसलिए दक्षिण विधानसभा को एक ऐसा सीट मान लिया गया है जहां जातिगत समीकरण काम नहीं आता बल्कि कांग्रेस का वही उम्मीदवार बृजमोहन अग्रवाल को शिकस्त दे सकता है जो व्यक्तिगत रूप से उतना ही लोकप्रिय हो जितना कि बृजमोहन अग्रवाल।ऐसा मजबूत प्रत्याशी हो कि कांग्रेस का एक-एक कार्यकर्ता और नेता समर्पित भाव से उसके साथ चले।जब तक पार्टी खुद ईमानदारी से चुनाव नहीं लड़ेगी कोई भी कांग्रेस का प्रत्याशी व्यक्तिगत रूप से चुनाव नहीं जीत सकती।आइये ऐसे कुछ दावेदारों की बात करें।

कांग्रेस के अंदर रायपुर जैसे शहरी क्षेत्र से जुड़े विधानसभाओं की बात आती है तो सबसे पहले प्रमोद दुबे के नाम का जिक्र जरूर होता है।इसलिए कि बेहद ही मिलनसार,हँसमुख स्वभाव के उनकी छवि सर्वस्वीकार्यता को परिभाषित तो करती ही है, साथ ही युवाओं की लंबी फौज यदि किसी के पीछे लगातार जुड़ी हुई है तो प्रमोद दुबे के साथ।इसके पीछे की वजह भी है कि उन्होंने रायपुर मेयर का चुनाव जब भारी बहुमत से जीता तो शहर के चारों विधानसभा की जनता उसमें सम्मिलित था और लोकसभा भी इन्हीं के बीच लड़ा। इन परिस्थितियों में यदि दक्षिण से बृजमोहन अग्रवाल को यदि कोई टक्कर दे सकता है तो कांग्रेस में प्रमोद दुबे से शसक्त और कोई नहीं हो सकता।याद होगा जब मेयर के लिए कांग्रेस ने इनका नाम फाइनल किया था,तब खुद बृजमोहन अग्रवाल ने मीडिया से कहा था प्रमोद अच्छे प्रत्याशी हैं।हालांकि पिछली बार राजनीतिक हलकों में ये बात चल पड़ी थी कि इनका नाम पार्टी ने फाइनल कर दिया है परंतु तैयारी में समय की कमी के चलते बृजमोहन अग्रवाल के खिलाफ प्रमोद दुबे ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया।जबकि हमारी फड़ताल में यह बात गलत साबित हुई है की प्रमोद दुबे को टिकट मिल गई थी।वैसे भी प्रमोद दुबे पलायन करने वाले नेताओं में नहीं हैं, कि टिकट मिले और वे इनकार कर दें। बहरहाल साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव की बात करें तो प्रमोद दुबे को पार्टी इस बार प्रत्याशी बना सकती है।इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता।प्रमोद दुबे जीत सकने वाले कैंडिडेट हैं और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के करीबी भी।

कन्हैया अग्रवाल स्वाभाविक रूप से दक्षिण से एक प्रबल दावेदार हैं।पिछली बार कांग्रेस ने इन्हें प्रत्याशी बनाया था और बृजमोहन अग्रवाल जैसे बड़े नेता के सामने इन्होंने पूरी मजबूती के साथ चुनाव भी लड़ा।परंतु कांग्रेस कार्यकर्ताओं का या कहें क्षेत्रीय नेताओं का जिस तरह से उन्हें साथ मिलना था नहीं मिल सका।यहां तक कि मतदान के अंतिम समय में वे अकेले पड़ गए थे और वे चुनाव हार गए।कन्हैया डॉ रमन सरकार के एंटी इनकंबेंसी का जिस तरह से लाभ लेना था ले न सके जबकि पिछला चुनाव एक तरह से बेहतर कर सकने का एक अवसर था।चुनाव हारने के बाद कन्हैया अग्रवाल क्षेत्र में सक्रिय जरूर हैं पर उनका आक्रामक स्वरुप कभी नहीं दिखा।इस बीच नए लोगों को अपने साथ जोड़ कर काम करने और विभिन्न बैठकों में जनहित के मुद्दों को लेकर मुखर जरूर रहे।परंतु प्रदेश में कांग्रेस की सरकार के बावजूद भाजपा विधायक के विरुद्ध जिस तहत का माहौल बनना था नहीं बना सके।इस बार फिर से चुनाव लड़ने की उनकी तैयारी है,अब देखना होगा पार्टी क्या निर्णय लेती है।

एजाज ढेबर वह नाम है जिनकी गिनती मुख्यमंत्री के सबसे करीबियों में गिनी जाती है।ढेबर रायपुर के मेयर  हैं,पर सरकार ने इस बार नया नियम ला कर चुने हुए पार्षदों के बीच बहुमत के आधार पर चुनाव करि और वे मेयर चुन लिए गए। इसलिए ठीक-ठीक यह कह पाना मुश्किल है कि उन्हें उनके वार्ड के इतर अन्य क्षेत्रों में किस तरह का समर्थन मिलेगा। हालांकि मुस्लिम समुदाय के होने के बावजूद ढेबर की धर्म के प्रति उस तरह की कट्टरता कभी नहीं देखी गई जैसा कि विपक्ष दो समुदायों को लेकर सोच रखती है। यह भी की एजाज ढेबर मुस्लिम होने के बावजूद हिन्दू संस्कृति से कभी परहेज नहीं किया।यहां तक कि वे कार्तिक पूर्णिमा में महादेव घाट में स्नान करने, हिन्दू देवी देवताओं का पूजा पाठ से लेकर माथे में तिलक,हाथ में मौली धागा बांध कर इसका सम्मान किया। राजनीति से जुड़े लोगों को यह भी चकित करता है कि ढेबर का मेयर के तौर पर पिछले तीन साल के कार्यकाल में शायद ही किसी को याद हो कि उनका कोई बड़ा राजनीतिक बयान आया हो।इस बीच स्मार्ट सिटी के मद से किये गए करोड़ों रुपए के विभिन्न निर्माण कार्य को लेकर वे भाजपा के निशाने पर लगातार बने हुए हैं।स्वाभाविक रूप से राजनीति में इस मुकाम के बाद कोई भी व्यक्ति विधानसभा की ओर रुख करता है तो एजाज ढेबर की भी दक्षिण विधानसभा से दावेदारी को लेकर इनकार नहीं किया जा सकता।वैसे जानकारों का मानना है कि परिस्थिति वश वे उत्तर विधानसभा से भी चुनाव लड़ सकते हैं।अब देखना होगा कि ऊंट किस करवट बैठता है और पार्टी क्या निर्णय लेती है।